जैव अणु किसे कहते हैं | जैव अणु क्या है | जैव अणु क्या है समझाइए
जीवित तंत्र में पाये जाने वाले समस्त अणु जैसे- कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, लिपिड (वसा), मिन चैत्र अणु (Biomolecules) कहलाते हैं। जैत्र अणु जीवित प्राणी के शरीर के निर्माण तथा उनकी वृद्धि एवं पोषण के लिए उत्तरदायी है।
General Competition | Science | Biology (जीव विज्ञान) | जैव अणु : भोजन के अवयव
- जीवित तंत्र में पाये जाने वाले समस्त अणु जैसे- कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, लिपिड (वसा), मिन चैत्र अणु (Biomolecules) कहलाते हैं। जैत्र अणु जीवित प्राणी के शरीर के निर्माण तथा उनकी वृद्धि एवं पोषण के लिए उत्तरदायी है।
- जैव अणु कार्बनिक पदार्थ है जिन्हें हम अपने भोजन के माध्यम से प्राप्त करते हैं। पौधों में ये क्षमता है कि वह अपने लिए जैव अणु का निर्माण स्वयं कर सकते हैं।
- प्रमुख जैव अणु का विवरण इस प्रकार है-
कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate)
- कार्बोहाइड्रेट कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन का पुच यौगिक है, जिसका सामान्य सूत्र Cx (H,ON होता है। कार्बोहाइड्रेट को कार्बन का हाइड्रेट भी कहते हैं। कार्बोहाइड्रेट में हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन का अनुपात 2:1 होता है।
- वर्त्तमान में कई ऐसे कार्बोहाइड्रेट प्राप्त हुए हैं जिनमें कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन के अलावे अतिरिक्त तत्व भी होते है और उनमें हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन का अनुपात 2: 1 नहीं होता है। अत: कार्बोहाइड्रेट की नवीनतम परिभाषा इस प्रकार दी जाती है-
- कार्बोहाइड्रेट एक ऐसा यौगिक है जिसमें कम से कम एक हाइड्रॉक्सिल ग्रुप (OH) एवं एक कीटोन ग्रुप होता है अथवा ऐल्डिहाइड (CHO) ग्रुप होता है।
- कार्बोहाइड्रेट प्राकृतिक यौगिक है जो मुख्यतः पौधों में पाये जाते हैं। प्राकृतिक कार्बोहाइड्रेट जीवन की तीन मूलभूत आवश्यकता-भोजन (glucose), वस्त्र तथा आवास (Cellulose) को पूरा करते है।
- कार्बोहाइड्रेट को तीन मुख्य भागों में बाँटा गया है- मोनोसैकेराइड, ओलिगोसैकेराइड तथा पॉलीसेकेराइड
1. मोनोसैकेराइड (Monosaccharide)
- यह सबसे सरलतम कार्बोहाइड्रेट जिसमें कार्बन परमाणु की संख्या 2 से 7 तक होती है।
- प्रमुख मोनोसेकैराइड कार्बोहाइड्रेट- ग्लिसरेल्डिहाइड (C3H6O3). इरिथ्रोज (C4H8O2). राइबोज (C5H10O5). ग्लूकोज (C6H12O6), प्रक्टोज (C6H12O6), गैलेक्टोज (C6H12O6), मोनोहेप्टुलोज (C7H14O7)
2. ओलिगोसैकेराइड (Oligosaccharide)
- ओलिगोसैकेराइड वे कार्बोहाइड्रेट हैं जिसका जल अपघटन (Hydrolysis) करने पर 2-10 मानोसैकराइड कार्बोहाइड्रेट के अणु प्राप्त होत हैं।
- जल अपघटन द्वारा प्राप्त मोनोसैकंराइड अणु की संख्या के आधार पर यह निम्न प्रकार के हो सकते हैं।
- Disaccharide— वे कार्बोहाइड्रेट जिसका जल अपघटन करने पर 2 मोनोसैराइड के अणु प्राप्त होते हैं डाईसैकेराइड कहलाते हैं। उदाहरण- सुक्रोज, माल्टोज, लैक्टोज
- सुक्रोज को Cane-Sugar, माल्टोज को Malt-Sugar तथा लैक्टोज को Milk sugar कहा जाता है।
- Trisaccharide- इस कार्बोहाइड्रेट का जल अपघटन करने पर तीन मोनोसैकेराइड की अणु प्राप्त हो हैं। उदाहरण- रैफीनोज (C18H32O16)
- रैफिनोज कपास की रूई में पाया जाता है इसका जल अपघटन करने पर गैलेक्टोज, फ्रक्टोज तथा ग्लूकोज की प्राप्ति होती है।
- Disaccharide— वे कार्बोहाइड्रेट जिसका जल अपघटन करने पर 2 मोनोसैराइड के अणु प्राप्त होते हैं डाईसैकेराइड कहलाते हैं। उदाहरण- सुक्रोज, माल्टोज, लैक्टोज
3. पॉलीसेकेराइड (Polysaccharide)
- ये कई मोनोसैकेराइड अणु के संयोजन से पॉलीसैकेराइड कार्बोहाइड्रेट बनता है।
- पॉलीसैकेराइड को जटिल कार्बोहाइड्रेट या उच्च अणुभार वाले कार्बोहाइड्रेट कहते है। ये कार्बोहाइड्रेट न तो स्वाद में मीठे होत हैं न ही जल में घुलते है।
- मोनोसैकेराइड तथा ओलिगोसैकेराइड स्वाद में मीठे होते हैं तथा जल में घुलनशील होते हैं।
- प्रमुख पॉलीसेकेराइड कार्बोहाइड्रेट निम्न है-
- सेल्युलोज - यह पौधे के कोशिकाभित्ति का मुख्य घटक है। प्रकृति में सबसे ज्यादा पाये जाने वाले कार्बोहाइड्रेट सेल्युलोज है।
- ग्लाइकोजेन - यह जंतु के शरीर में अतिरिक्त भोजन के रूप में संचित होता हैं यह जल में घुलनशील होता है।
- स्टार्च - यह सभी प्रकार के अनाजों (गेहूँ, मक्का) तथा आलू में पाया जाता है।
- हैपेरीन- यह संयोजी उत्तक के मास्ट कोशिकाओं में पाया जाता है तथा यह रूधिर को जमने से रोकता है।
- काइटीन- यह कीटो (Arthropoda) का बाह्य कंकाल का निर्माण करता है।
- जंतु (Human and Animal) के शरीर में कार्बोहाइड्रेट के कार्य-
- श्वसन के दौरान ऊर्जा उत्पन्न करने में मुख्य रूप कार्बोहाइड्रेट (Glucose) का उपयोग किया जाता है।
- यह शरीर के टूट-फूट तथा मरम्मत में सहायक होते है।
- यह ग्लाइकोजेन में परिवर्त्तित होकर यकृत में संचित रहता है। इसके अलावे ये पेशीय ग्लाइकोजेन के रूप में पेशीयों में संचित रहता है।
- यह वसा में भी रूपांतरित हो सकता है।
प्रोटीन (Protein)
- प्रोटीन ग्रीक भाषा के प्रोटीओस (Proteious) शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है- 'सर्वोच्च महत्व' । प्रोटीन का नामकरण मूल्डर ( Mulder) ने किया था।
- प्रोटीन उच्च अणुभार वाले नाइट्रोजन युक्त कार्बनिक पदार्थ है। प्रोटीन मुख्य रूप से कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन से बना होता है। इसके अलावे प्रोटीन में सल्फर, फॉस्फोरस, आयोडिन तथा धातु में आयरन, कॉपर, जिंक तथा मैंगनीज पाये जा सकते है।
- प्रोटीन ऐमीनो अम्ल का बहुलक है। प्रोटीन में ऐमीनो अम्ल जिस बंधन से जुड़े रहते हैं उसे पेप्टाइड बंधन कहते है। प्रोटीन का जब आंशिक जल-अपघटन किया जाता हे तो पेप्टाइड प्राप्त होता है तथा पूर्ण जल अपघटन होने पर ऐमीनो अम्ल बनता है।
- गुणों के आधार पर तीन प्रकार के प्रोटीन होते हैं- सरल प्रोटीन, संयुग्मी प्रोटीन तथा व्युत्पन्न प्रोटीन ।
- सरल प्रोटीन (Simple Protein ) - यह प्रोटीन केवल अमीनो अम्ल के ही बने होते हैं। प्रमुख सरल प्रोटीन निम्न है-
- ग्लोब्युलीन : यह प्रोटीन जंतु तथा पौधा दोनों में पाया जाता है। अंडपीत (अंडा के पीले भाग) में यही प्रोटीन होता है। यह प्रोटीन जल में अघुलनशील परंतु अम्ल में घुलनशील होता है।
- हिस्टोन : यह प्रोटीन हिमोग्लोबिन के ग्लोबीन में तथा थाइमस ग्रंथि में पाया जाता है। यह प्रोटीन जल में घुलनशील होता है।
- एल्ब्युमीन : यह प्रोटीन अंडे के उजले भाग में पाया जाता है। इसकी थोड़ी सी मात्रा दूध में भी पाया जाता है।
- प्रोटामीन : यह प्रोटीन सालमन तथा हेरिंग मछलियों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
- युग्मित प्रोटीन (Conjugaed Protein)
- इस प्रोटीन में ऐमीनो अम्ल के अतिरिक्त अन्य तत्व के अणु भी उपस्थित रहते है।
- प्रमुख युग्मित प्रोटीन-
- क्रोमोप्रोटीन: इस प्रोटीन में ऐमीनो अम्ल के अतिरिक्त Fe, Cu, Mg या Co के अणु उपस्थित रहते है। यह प्रोटीन रक्त के हिमोग्लोबीन तथा नेत्र के रेटीना में पाये जाते हैं।
- न्यूक्लिओप्रोटीन : यह ऐमीनो अम्ल तथा न्यूक्लिक अम्ल (DNA, RNA) अणु का बना प्रोटीन है जो मुख्य रूप से कोशिका के केन्द्रक में पाया जाता है।
- ग्लाइकोप्रोटीन: यह कार्बोहाइड्रेट तथा ऐमीनो अम्ल का बना प्रोटीन है। लार में पाये जाने वाला म्यूसिन एक ग्लाइकोप्रोटीन है।
- फॉस्फोप्रोटीन : इस प्रोटीन में ऐमीनो अम्ल के अतिरिक्त फॉस्फोरिक अम्ल पाया जाता है। दूध में पाया जानेवाला कंसीन प्रोटीन एक फॉस्फोप्रोटीन है।
- युग्मित प्रोटीन (Dervied Protein)
- साधारण तथा युग्मित प्रोटीन का जल अपघटन करने पर जो प्रोटीन प्राप्त होता है उसे व्युत्पन्न प्रोटीन कहते है।
- प्रोटिन्स, पेप्टोन्स, पेप्टाइड्स, प्रोटिओसेस आदि व्युत्पन्न प्रोटीन है।
- सरल प्रोटीन (Simple Protein ) - यह प्रोटीन केवल अमीनो अम्ल के ही बने होते हैं। प्रमुख सरल प्रोटीन निम्न है-
- आण्विक संरचना का आकृति (अणु का) के आधार पर प्रोटीन दो प्रकार के होते हैं, रेशेदार प्रोटीन तथा गोलीय प्रोटीन ।
- रेशेदार प्रोटीन (Fibrous Protein)- इस प्रोटीन में कई पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ मजबूत अंतराण्विक बल द्वारा जुड़कर रेशेदार संरचना में रहती है। ये जल में अविलेय होते है।
- बाल, त्वचा, ऊन में पाया जाने वाला किरेटीन तथा मांसपेशी में पाये जाने वाला मायोसीन रेशेदार प्रोटीन है।
- गोलीय प्रोटीन (Globular Protein) - इस प्रोटीन में पॉलीपेप्टाइड अणु गोलाकार संरचना से जुड़े रहते है । हीमोग्लोबिन, इंसुलीन गोलीय प्रोटीन के उदाहरण है।
- रेशेदार प्रोटीन (Fibrous Protein)- इस प्रोटीन में कई पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ मजबूत अंतराण्विक बल द्वारा जुड़कर रेशेदार संरचना में रहती है। ये जल में अविलेय होते है।
- ऐमीनों अम्ल (Amino Acid)
- ऐमीनो अम्ल वे पदार्थ है जिसें एमीनो ग्रुप (-NH2) तथा कार्बोक्सिलिक ग्रुप (-COOH) उपस्थित रहता है।
- प्रोटीन बनने की मूल इकाई अमीनो अम्ल है। ऐमीनो अम्ल के अणु आपस में संयोजित होकर पॉलीपेप्टाइड बनाता है। पॉलीपेप्टाइड के अणु संयोजित होकर प्रोटीन बनाते है।
- ग्रोटीन बनने में न्यूनतम 20 ऐमीनो अम्ल भाग लेते है। ये ऐमीनो अम्ल पौधो खुद तैयार कर सकते हैं परंतु जंतु में कुछ ही ऐमीनो अम्ल तैयार हो सकते हैं सभी नहीं ।
- ऐमीनो अम्ल को दो मुख्य भागों में वर्गीकृत किया गया है-
- आवश्यक ऐमीनो अम्ल : ये वो अमीनो अम्ल है जो जंतु के कोशिकाओं द्वारा संश्लेषित नहीं हो सकते है अतः भोजन के माध्यम से इसे लेना जरूरी होता है।
- आवश्यक ऐमीनो अम्ल की संख्या 10 है, ये है- वेलीन, ल्यूसीन, आइसोल्यूसीन, फिनाइल एलेनीन, ट्रिप्टोफेन, थ्रियोनीन, मिथियोनीन, लाइसीन, आर्जीनीन, हिस्टिडीन ।
- अनावश्यक ऐमीनो अम्ल : ये ऐमीनो अम्ल वे है जो जंतु के कोशिकाओं में संश्लेषित हो सकते है। इस प्रकार के ऐमीनो अम्ल मुख्यतः यकृत में बनते है ।
- अनावश्यक ऐमीनो अम्ल की संख्या भी 10 हैं, ये है- ग्लाइसीन, एलेनीन, टाइरोसीन, सीरीन, प्रोलीन, हाइड्रॉक्सीप्रोलीन, सिस्टीन, सिस्टाईन, ऐस्पार्टिक एसिड, ग्लूटानिक एसिड |
- आवश्यक ऐमीनो अम्ल : ये वो अमीनो अम्ल है जो जंतु के कोशिकाओं द्वारा संश्लेषित नहीं हो सकते है अतः भोजन के माध्यम से इसे लेना जरूरी होता है।
- प्रोटीन के स्त्रोतपादप स्त्रोत : मटर, सोयाबीन, राजमा, चना, मूंग आदि ।जंतु स्त्रोत: पनीर, दूध, मछली, मांस, अंडा
- जंतु स्त्रोत से प्राप्त प्रोटीन में सभी आवश्यक ऐमीनो अम्ल होते हैं। सोयाबीन एक मात्र गैर- पशु प्रोटीन स्त्रोत है जिसमें भी आवश्यक ऐमीनो अम्ल पाये जाते हैं।
- प्रोटीन के कार्य
- प्रोटीन मानव शरीर की सामान्य क्रियाविधि एवं वृद्धि हेतु जरूरी होते हैं।
- कोशिका जीवद्रव्य बनने के लिये, टूटी-फूटी कोशिका के मरम्मत के लिए प्रोटीन आवश्यक है।
- प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट की तरह ऊर्जा को भी उत्पन्न कर सकता है।
- प्रोटीन जंतु के शरीर में हॉर्मोन तथा एंजाइम बनने हेतु भी जरूरी है।
- प्रोटीन का विकृतिकरण (Denaturation)ताप, दाब, pH - परिवर्तन या अन्य किसी भौतिक या रसायनिक परिवर्तन के कारण जब प्रोटीन की संरचना बिखर जाती है और प्रोटीन की सक्रियता समाप्त हो जाती है तो इसे ही प्रोटीन का विकृतिकरण कहते है।
लिपिड (Lipids)
- लिपिड के अंतर्गत वसा (Fats), तेल, घी, जैसे- यौगिक आते है । लिपिड भी कार्बोहाइड्रेट की तरह हाइड्रोजन, कार्बन, आक्सीजन से मिलकर बना होता है परंतु दोनों में इन तत्वों का अनुपात अलग-अलग होता है।
- लिपिड या वसा ग्लिसरॉल तथा फैटी अम्ल से मिलकर बना होता है। इसका सामान्य सूत्र CH3(CH2)n-COOH है।
- लिपिड को तीनों भागों में बाँटा गया है- साधारण लिपिड, संयुक्त लिपिड तथा व्युत्पन्न लिपिड।
- सभी प्रकार के लिपिड जल में अघुलनशील तथा कार्बनिक विलायक में घुलनशील होता है।
1. साधारण लिपिड (Simple lipid)
- साधारण लिपिड फैटी अम्ल तथा ऐल्कोहॉल का एस्टर है। वसा (Fats), तेल (Oil) तथा मोम (Wax) साधारण लिपिड है।
- कमरे के ताप पर जो लिपिड ठोस होते हैं वह वसा (Fats) कहलाते हैं एवं जो कमरे के ताप पर तरल रहते हैं उसे तेल (Oil) कहा जाता है ।
- वसा या तेल की विशेषता उसमें उपस्थित फैटी अम्ल पर निर्भर करता है। फैटी अम्ल के आधार पर दो प्रकार के वसा होते हैं-
- संतृप्त वसा (Saturated Fats ) - यह संतृप्त वसा अम्ल द्वारा बना होता है। संतृप्त वसा अम्ल (Fatty Acid) के सभी C-परमाणु, हाइड्रोजन के द्वारा संतृप्त रहते हैं तथा कमरे के ताप पर ठोस होते हैं।
- प्रमुख संतृप्त वसा-(क) ब्यूटिरिक अम्ल - यह मक्खन में पाया जाता है।(ख) कैपरिलिक अम्ल - यह नारियल के तेल तथा ताड़ के तेल में पाया जाता है।(ग) पैलमिटिक अम्ल - यह ताड़ के तेल तथा जंतु से प्राप्त वसा में पाये जाते हैं।(घ) ऐराकिडिक अम्ल - यह मटर (Peanut) के तेल में पाया जाता है।
- प्रमुख संतृप्त वसा-
- असंतृप्त वसा (Unsaturated Fats )- यह वसा असंतृप्त वसा अम्ल (Fatty acid) से बना होता है। इस वसा अम्ल के सभी C- परमाणु, हाइड्रोजन द्वारा संतृप्त नहीं रहते है। असंतृप्त वसा ही तेल (Oil) है और यह कमरे के ताप पर तरल रहता है।
- प्रमुख असंतृप्त वसा-(क) पालमिटोलेईक अम्ल - दूध तथा सारडाइन में यह पाया जाता है।(ख) उलेइक अम्ल - यह जैतून (Oilve) के तेल में पाया जाता है।(ग) इरूसिक अम्ल - यह सरसों के तेल में पाया जाता है।
- प्रमुख असंतृप्त वसा-
- अधिकांश जंतु से प्राप्त वसा संतृप्त वसा होता है तथा पौधों से प्राप्त असंतृप्त वसा होता है। भोजन में असंतृप्त वसा को प्राथमिकता देनी चाहिये क्योंकि संतृप्त वसा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
2. संयुक्त लिपिड (Compound lipid)
- वह लिपिड में फैटी अम्ल तथा ऐल्कोहॉल के अतिरिक्त फोस्फोरस, नाइट्रोजन, सल्फर या प्रोटीन पाये जा सकते है।
- प्रमुख संयुक्त लिपिड है- फॉस्फोलिपिड, ग्लाइकोलिपिड, सल्फोलिपिड, लिपोप्रोटीन ।
3. व्युत्पन्न लिपिड (Dervied lipid)
- यह वसा साधारण तथा संयुक्त वसा के जल-अपघटन (Hydrolysis) से प्राप्त होता है।
- जंतु में पाया जाने वाला कोलेस्टेरॉल, पौधे में पाया जाने वाला - एरगोस्टेरॉल जंतुओं के लिंग हॉर्मोन (Sexhormone) में उपस्थित स्टेरॉयड्स (Steroids) व्युत्पन्न लिपिड है।
लिपिड के कार्य-
- जंतु इसे ऊर्जा स्त्रोत के रूप में प्रयोग होता है।
- जंतु में कई पकार के विटामिन तथा हॉर्मोन बनने हेतु लिपिड आवश्यक है।
- इसका इस्तेमाल परिरक्षक तथा रौशनी उत्पन्न करने में किया जाता है।
- लिपिड भोजन में अच्छे स्वाद और गंध उत्पन्न करता है।
- कोशिका झिल्ली बनने हेतु लिपिड एक अनिवार्य घटक है।
विटामिन (Vitamins)
- विटामिन जटिल कार्बनिक यौगिक है जिसकी थोड़ी मात्रा मानव एवं जंतुओं के अच्छे स्वास्थ्य तथा वृद्धि हेतु अनिवार्य होता है।
- विटामिन को सहायक आहार कहा जाता है। विटामिन मनुष्य तथा जंतुओं के शरीर में नहीं बनता है परंतु पौधों में इसका निर्माण हो सकता यही कारण है कि पौधे का उत्पाद विटामिन के अच्छे स्त्रोते होते हैं।
- मनुष्य के शरीर में विटामिन निर्मित नहीं हो सकते हैं परंतु दो विटामिन A तथा K का संश्लेषण मनुष्य के शरीर में हो सकता है। शरीर में विटामिन A का संश्लेषण कैरोटीन से जबकि विटामिन K का संश्लेषण शरीर के आहारनाल में उपस्थित जीवाणु के माध्यम से होता है।
- विटामिन की थोड़ी मात्रा मनुष्य का जन्तु के लिए अनिवार्य है। इसी कमी से शारीरिक तंत्र में गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है जिससे कई, रोग शरीर में उत्पन्न हो जाते हैं। हाँलाकि, कमी वाले विटामिन को लेने से विटामिन के अभाव में होने वाले रोग दूर हो जाते हैं। शरीर में होन वाले विटामिन की कमी को 'हाइपोविटामिनांसिस' कहा जाता है।
