जन्तु जगत किसे कहते हैं | जंतु जगत के प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें
जब रूधिर का प्रवाह शरीर में बंद नली के माध्यम से न होकर देहगुहा (haemocoel) द्वारा हो, तब इसे खुला परिवहन तंत्र कहते हैं। उदा० - तिलचट्टा ।
General Competition | Science | Biology (जीव विज्ञान) | जन्तु जगत
- जंतु जगत (animal kingdom) के जीवों की प्रमुख विशेषताएँ-
- सभी जीव बहुकोशिकीय होते हैं तथा यूकैरोयोटीक कोशिका के बने होते हैं।
- सभी जीव परपोषी या विषमपोषी (hetrotrophic) होते हैं ।
- इन जीवों का शरीर द्विस्तरीय (Diploblastic) अथवा त्रिस्तरीय (Triploblastic ) हो सकता है।
- द्विस्तरीय जीवों का शरीर दो स्तर (germinal layer) का बना होता है। बाहरी स्तर Ectoderm तथा भीतरी स्तर Endoderm कहलाता है।
- त्रिस्तरीय जीवों का शरीर तीन स्तर का बना होता है। बाहरी स्तर Ectoderm, मध्यस्तर Mesoderm तथा भीतरी स्तर Endoderm कहलाता है।
- जीवों का शरीर का आकार तीन तरह के हो सकते हैं-
- द्विपार्श्व सममित (Bilateral Symmetry)- ऐसा शरीर जिनके बॉये तथा दॉये भाग में समान संरचना रहती है द्विपार्श्व सममित कहलाते हैं। उदा० - मेढ़क
- अरीय सममित (Radial Symmetry)- जब जंतु का शरीर को केंद्र स्थान से काट लगाने पर एक से अधिक समान भाग में बाँटा जा सके तो वह अरीय सममित कहलाता है । उदा०-- हाइड्रा ।
- असममित (Asymmetrical)- जब जीवों का शरीर किसी भी तरह से दो समान भाग में नहीं बॉटा जा सके तो वह शरीर असममित कहलाता है । उदा०-- घोंघा ।
- जीवों के शरीर में वास्तविक देहगुहा (Coelom) हो भी सकता है, नहीं भी हो सकता है।
- शरीर के दीवार और आहारनाल के बीच खाली जगह को देहगुहा (Coleom) कहते हैं ।
- जीवों में खुला रूधिर परिवहन तंत्र या बंद रूधिर परिवहन तंत्र होते हैं।
- जब रूधिर का प्रवाह शरीर में बंद नली (जैसे- धमनी, शिरा) द्वारा होता है तब इसे बंद रूधिर परिवहन तंत्र कहते हैं। उदा० मानव ।
- जब रूधिर का प्रवाह शरीर में बंद नली के माध्यम से न होकर देहगुहा (haemocoel) द्वारा हो, तब इसे खुला परिवहन तंत्र कहते हैं। उदा० - तिलचट्टा ।
जंतु जगत में आने वाले प्रमुख संघ
1. Porifera ( पोस्फेिरा)
- पोरिफेरा जीव जलीय है। अधिकांश समुद्र में रहते हैं तथा कुछ मीठे जल में । यह जल में स्थित किसी ठोस अथवा चट्टानों से चिपके रहते हैं।
- इनका शरीर बहुकोशिकीय होते हैं परन्तु उत्तक नहीं बनते हैं। शरीर द्विस्तरीय (Diploblastic) होते हैं तथा शरीर की आकृति अंडाकार, बेलनाकार या अनियमित तरह के होते हैं ।
- इनका पूरा शरीर छिद्रयुक्त (holes ) रहता है । इस छिद्र को Ostia (ऑस्टीया ) कहते हैं। शरीर में एक बड़ा छिद्र होते हैं। जिसे Osculum (अपवाही रंध्र) कहते हैं ।
- पोरीफेरा जीव का शरीर कठोर बाह्य कंकाल (Exoskelton) से ढँका रहता है जिसपर काँटे के समान रचना होती है। इन काँटों को Spicules (स्पिकूल्सा) कहते हैं। बाह्य कंकाल कैल्शियम कार्बोनेट के बने होते हैं।
- इन जीवों में प्रजनन लैंगिक तथा अलैंगिक दोनों विधि से होता है। अलैंगिक जनन मुकुलन ( Budding) द्वारा या Regeneration (पुनरूद्भवन) द्वारा होता है ।
- फोरीफेरा उभयलिंगी (hermaphrodite) होते हैं तथा इनमें निषेचन आंतरिक होते हैं।
- प्रमुख जीव- साइकन, स्पंज, स्पंजिला युस्पांजिया, यूप्लेक्टेला, हायलोनेमा
2. Coelenterata or Nideria (सीलेंटरेटा या नाइडेरिया)
- इस संघ के अधिकांश जीव समुद्र में रहते हैं। कुछ मीठे जल में भी पाये जाते हैं। इनका शरीर उत्तक तक विकसित रहता है। इसमें कोई अंग या अंग-तंत्र नहीं पाये जाते हैं।
- जीव के शरीर दो स्तर का बना होता है।
- जीव के मुख के चारों ओर लंबे-लंबे संस्पर्शक (tentacels) रहते हैं। जीव के शरीर में सुरक्षा हेतु शिकार पकड़ने हेतु दंश कोशिकाएँ (nematocysts) पाये जाते हैं।
- इनमें लैंगिक तथा अलैंगिक दोनों प्रकार से प्रजनन होता है। अलैंगिक प्रजनन मुकुलन द्वारा होता है।
- प्रमुख जीव- फाइसेलिया (पुर्तगाली युद्धपोत), ऑरिलिया (जेलीफीश) हाइड्रा, सीएनीमोन, फँजिया (कोरल बनाता है ।)
3. Platyhelminthes (प्लेटीहेल्मिन्थीज)
- इस संघ के जीवन को चपटा कृमि और फीता कृमि कहते हैं क्योंकि जीव का शरीर चपटा या फीते के समान होता है। शरीर तीन स्तर का बना होता तथा इनमें अंग का विकास होना शुरू हो जाता है।
- इस संघ के अधिकांश जीव परजीवी हैं जिनके कारण यह मनुष्य, पालतू तथा जंगली जानवर में विभिन्न प्रकार के रोग फैलाते हैं। परजीवी शरीर से जुड़ने एवं भोजन ग्रहण करने हेतु इन जीवों के शरीर में काँटे ( Suckers) पाये जाते हैं।
- इस जीव में पाचन तंत्र पाये जाते हैं। पाचन तंत्र में मुँह पाया जाता है परंतु मलद्वार (Anus) नहीं पाया जाता है। अन्य तंत्र (श्वसन - तंत्र, परिवहन तंत्र कंकाल तंत्र आदि) का इस जीवों में अभाव रहता है ।
- इस संघ के शरीर में विशेष प्रकार की कोशिका पाये जाते हैं जिसे फ्लेम कोशिका (Flame cells) कहते हैं । फ्लेम कोशिका द्वारा इन जीवों में जल संतुलन तथा उत्सर्जन का कार्य होता है।
- ये जीव उभयलिंगी होते हैं तथा इसमें निषेचन आंतरिक होता है।
- प्रमुख जीव- फैसिओला हेपेटीका, टीनियासोलियम, प्लैनेरिया ।
- प्रमुख तथ्य-
- फैसिओला हैपेटीका को Liver Fluke कहा जाता है। यह लीवर में रोग फैलाता है ।
- टीनिया सोलियम को फीता कृमि कहते हैं। फीता कृमि का पोषक सुअर होता है। सुअर का अधपका मांस खाने से यह मनुष्य के आंत में पहुँचकर घाव उत्पन्न करता है।
- प्लैनेरिया परजीवी न होकर स्वतंत्र रूप से रहते हैं ।
4. Aschelminthes (ऐस्केल्मिन्थीज)
- एस्केल्मिन्थीज जीव को निमेटोडा तथा गोलकृमि कहते हैं। इसका शरीर पतले धागे की तरह होते है तथा दोनों सिरा नुकीला होता है।
- ये जीव जलीय, स्थलीय या परजीवी होते हैं।
- इस जीव का आहारनाल (पाचनतंत्र) पूर्ण विकसित होता है परंतु अन्य अंग - तंत्र का अभाव होता है।
- नर तथा मादा जीव अलग-अलग होते हैं तथा निषेचन इसमें आंतरिक होता है।
- प्रमुख जीव- एस्केरिस, एंकाइलोस्टोमा, वुचेरेरिया, हुकवर्म, पीनवर्म आदि ।
- प्रमुख तथ्य-
- एस्केरिस मनुष्य के आंत में पाया जाता है तथा स्केरिएसिस रोग को फैलाता है।
- वुचेरिया कृमि द्वारा मनुष्य में फाइलेरिया (हाथी पॉव) रोग होता है।
5. Annelida (ऐनेलिडा)
- जंतु जगत में वास्तविक देह गुहा की उपस्थिति ऐनेलिडा संघ से ही शुरू हुआ है। इस जीव का शरीर खंडित (Segments), द्विपार्श्व सममित तथा त्रिस्तरीय होते है ।
- ऐनेलिडा जीव प्रायः स्वतंत्र जीवी जीवन व्यतीत करते हैं ।
- इस जीव में बंद रक्त परिवहन तंत्र पाया जाता है, उत्सर्जन वृक्कक (Nephridia) द्वारा होता है, श्वसन त्वचा या क्लोम (gills) द्वारा होता है ।
- इस जीवों में तंत्रिका तंत्र का भी विकास हुआ है।
- इस संघ के कुछ जीव एकलिंगी तथा कुल उभयलिंगी होता है।
- प्रमुख जीव- नेरीस, हिरुडिनेरिया, केंचुआ, समुद्री चूहा, जोंक आदि ।
- प्रमुख तथ्य-
- नेरीस को सीपी कृमि के नाम से भी जाना जाता है ।
- समुद्री चूहा का वास्तविक नाम एप्रोडाइट है।
- केंचुआ का वैज्ञानिक नामक फेरीटिमा पोस्थमा है यह मिट्टी को भुराभुरा कर उसकी उर्वराशक्ति को बढ़ाते हैं। केंचुआ को किसान का मित्र कहा जाता है ।
6. Arthropoda ( आथ्रोपोडा )
- यह संघ एनीमल किंगडम का सबसे बड़ा संघ जिनमें कीट, मकड़ी अन्य जीव आते हैं। ये जीव परजीवी एवं स्वतंत्र जीवी दोनों प्रकार के हो सकते हैं।
- आथ्रोपोडा सभी प्रकार के वासस्थान (जल, स्थल, वायु) में पाये जाते हैं। कई आथ्रोपोडा जीव मनुष्य द्वारा खाये जाते हैं।
- आथ्रोपोडा का शरीर द्विपार्श्व सममित त्रिस्तरीय तथा खंडित रहता है। शरीर के ऊपर बाह्य कंकाल रहता है जिसे क्यूटिकल कहते हैं।
- इन जीवों में श्वसन गिल्स, ट्रैकिया या बुक लंग (Book lungs) द्वारा होता है। उत्सर्जन हेतु इसमें विशेष अंग होते हैं जिसे- मैलपीगियन नालिकाएँ कहते हैं।
- इस जीव में खुला रक्त परिवहन तंत्र पाये जाते हैं।
- आथ्रोपोडा एकलिंगी होते हैं।
- प्रमुख जीव - झींगा, केकड़ा, तिलचट्टा, बिच्छू, मकड़ी आदि ।
- कीट वर्ग तथा मकड़ी में प्रमुख अंतर-
- कीट में 3 जोड़े टांग होते हैं और मकड़ी में चार जोड़े टांग होते हैं।
- मकड़ी स्थलीय होते हैं और कीट स्थलीय और जलीय दोनों होते हैं।
- मकड़ी में उड़ने हेतु प्रायः पंख नहीं होते हैं जबकि कीट में पंख होते हैं ।
- कीट में ट्रैकिया द्वारा श्वसन होता है और मकड़ी में ट्रैकिया एवं बुकलंग दोनों के द्वारा श्वसन होता है ।
- प्रमुख तथ्य-
- सिल्वर फीश एक कीट है इसमें पंख नहीं पाये जाते हैं।
- तिलचट्टा के हृदय में 13 कक्ष होते हैं।
- मकड़ी में विशेष अंग पाये जाते हैं। जिसे स्पिनटेट्स कहते हैं। स्पिनटेट्स के मदद से मकड़ी जाला बुनती है।
- कीट का जीवन चक्र में चार अवस्था होती है।अंडा → लार्वा → प्यूपा → कीट
- मनुष्य के लिये उपयोगी प्रमुख कीट- एपीस इंडिका ( मधुमक्खी), बांबिक्स (रेशम कीट), लैसीफर ( लाख कीट) ।
- प्रमुख हानिकारक कीट जो रोग फैलाते हैं-
- घरेलू मक्खी - यह टायफाइड, हैजा तथा डायरिया जैसे रोग फैलाते हैं।
- सैण्ड फ्लाई- यह कालाजार रोग का वाहक है ।
- एडीज मच्छड़- यह डेंगु, चिकुनगुनिया तथा जापानी इंसैफैलाइटिस रोग का वाहक है ।
- सी-सी मक्खी यह स्पिलिंग सिनकेस रोग का वाहक है ।
7. Mollusca ( मोलस्का)
- मोलस्क जीव स्थल पर मीठे पानी या समुद्र में पाये जाते हैं। इस जीव का शरीर कोमल होता है जिनमें अधिकांश मंद गति से चलनेवाले जीव हैं।
- जीव के शरीर पर पाये जाने वाले कोमल झिल्ली को प्रचार (Mantle) कहते हैं। कोमल झिल्ली को सुरक्षा देने हेतु शरीर पर कैल्शियम कार्बोनेट का बना एक कवच रहता है।
- आहारनाल इस जीव का पूर्ण विकसित होता है। श्वसन क्लोम (gills) या फुफ्फुस ( Pulmonarysac) द्वारा होता है।
- इनका हृदय, हृदयावरण (Pericardium) में बंद रहता है तथा रक्त परिसंचरण तंत्र खुला होता है।
- यह एकलिंगी होते हैं तथा इसमें आंतरिक निषेचन होता है।
- प्रमुख जीव- काइटन घोंघा (Pila), सीप, सिपिया, ऑक्टोपस
- प्रमुख तथ्य-
- सीपिया समुद्री जीव है जिसे कटलफीश भी कहते हैं।
- ऑक्टोपस समुद्री जीव है इससे आठ लम्बी-लम्बी भुजाये होते हैं। इसे डेविलफीश, श्रृंगमीन भी कहते हैं ।
- पाइला (Pila) को घोघा भी कहा जाता है।
8. Echinodermata ( इकाइनोडमेटा)
- इस संघ के जीव में समुद्र में रहते हैं तथा इनके त्वचा पर कोटे (Spires) पाये जाते हैं।
- इस जीव में जल परिवहन तंत्र (water Vascular System) पाया जाता है जो प्रचलन, भोजन ग्रहण तथा श्वसन में जीवों के सहायक होते हैं।
- इस जीव में उत्सर्जन अंग नहीं पाये जाते हैं।
- नर और मदा- अलग होते हैं तथा निषेचन आंतरिक होता है।
- प्रमुख जीव- तारा मछली ( Star Fish), समुद्री खीरा, सी अर्चिन, ब्रिटल स्टार एंटीडॉन आदि ।
- प्रमुख तथ्य-
- स्टारफीश का वैज्ञानिक नाम एस्टेरियस है। इसकी आकृति तारों के समान होता है।
- एण्टीडॉन को Father Fish कहा जाता है।
9. Hemichordata ( हेमीकॉर्डेटा)
- इस संघ के जीव छोटा तथा कृमि (Worm) की तरह होता है। यह जीव समुद्र के किनारे सुरंग बनाकर रहता है।
- इसमें नोटोकॉर्ड पाये जाते हैं, जो शरीर के केवल अगले भाग में ही रहते हैं।
- नर तथा मादा अलग-अलग होते हैं तथा निषेचन बाह्य (External) होता है।
- प्रमुख जीव- बैलैनोग्लोसस, हार्डमैनिया, एम्फीऑक्सस, बैंकिओस्टोमा
10. Chordata (कॉर्डेटा)
- यह जल तथा स्थल पर पाये जाने वाले जीव है। इसमें नोटोकॉर्ड पाये जाते हैं।
- इसमें बंद रक्त परिवहन तंत्र पाये जाते हैं।
- संघ कॉर्डेटा को तीन उपसंघ ( Sub - Phylum) में बाँटा गया है- 1. यूरोकॉर्डेटा, 2. सिफैलोकॉर्डेटा, 3. वर्टिब्रेटा ।
- सब फाइलम बर्टिब्रेटा का प्रमुख विशेषताएँ-
- इस जीव के नोटोकॉर्ड मेरूदंड रज्जु (Vetebral Column) में परिवर्तित हो जाता है।
- इन जीवों के मस्तिष्क क्रेनियल नामक खोल में बंद रहता है।
- इन जीवों में विकसित संवेदी अंग पाये जाते हैं।
- कॉर्डेटा सब फाइलम को पांच प्रमुख वर्गों में बाँटा गया है, ये है- मत्स्य (Pisces), एम्फीबिया ( Amphibia), रेप्टीलिया ( Reptilia ), एवीज (Aves), स्तनी (Mammalia)
11. मत्स्य (Class-Pisces)
- इस वर्ग के अंतर्गत सभी समुद्री एवं भीठे जल में रहने वाले मछली आते हैं।
- मछलियों का शरीर धारा रेखीय होता है, त्वचा शल्कों (Scales ) से टॅकी होती है तथा तैरने हेतु पंख (Fins) तथा मांसल पूँछ पाये जाते हैं।
- मछली में श्वरान क्लोम (Gills) द्वारा होता है। क्लोम के मदद से मछली जल में घुली ऑक्सीजन का प्रयोग श्वसन हेतु करता है।
- मछली अनियततापी (Cold blooded) होते हैं तथा ये जल में अंडे देते हैं।
- कुछ मछलियों का अंतः कंकाल केवल उपास्थि का बना होता है (जैसे- शार्क) तथा कई मछलियाँ का कंकाल अस्थि का बना होता है (जैसे- रेहु)
- प्रमुख जीव- सिनकिरोपस स्पलेंड्डिस (मँडारिनफिश), टेरोइस वोलिटंस (लॉयनफीश), स्टिंगरे (दशरे), स्कॉलियोडॉन (डॉगफिश), एक्सोसीटस ( उड़न मछली), एनाबास (क्लाईविंग पर्च), हिप्पोकैम्पस (समुद्री घोड़ा) ।
- प्रमुख तथ्य-
- डारिन फिश, लॉयन फिश, ऐंग्लर फिश, डॉग फिश, फ्लाइंग फिश, समुद्री घोड़ा वास्तविक मछली है जबकि हेल फिश, क्रेफिश, सिल्वर फिश, कटल फिश, स्टारफिश, जेलीफिश मछली वर्ग के जीव नहीं है।
- गेम्बूसिया मछली मच्छड़ों के नियंत्रण में सहायक होते हैं क्योंकि यह मच्छड़ के लार्वा को खा जाते हैं ।
- मछली के हृदय में केवल अशुद्ध रक्त रहता है।
- पाषाण मछली (Stone Fish) सर्वाधिक विषैली मछली है।
12. एम्फिबिया (Class- Amphibia)
- ये जल तथा स्थल दोनों जगह रहने हेतु अनुकूलित होता है। इनके त्वचा ग्रंथिमय होता है।
- ये जीव श्वसन - त्वचा, गिल्स, फेफड़ा तीनों माध्यम से कर सकते हैं।
- एम्फीबिया अनियततापी (Cold blooded) जंतु है इनका हृदय में तीन कक्ष होते हैं I
- इसका अंतः कंकाल अस्थित का बना होता है ।
- इसमें बाह्य निषेचन होता है। एम्फिबिया के लार्वा को टैडपोल कहते हैं।
- प्रमुख जीव- मेढ़क, टोड, दादुर, हायला सैलामेंडर आदि ।
- प्रमुख तथ्य-
- इन जीवों में शीत एवं ग्रीष्म निष्क्रियता पायी जाती है।
- मेढ़क की टर्रटाराहट वास्तव में मैथुन की पुकार है जो केवल नर मेढ़क उत्पन्न करते हैं । मादा मेढ़क में वाककोश (Vocal cord) नहीं होते हैं जिसके कारण मादा मेढ़क टर्रटराहत उत्पन्न नहीं करते हैं।
- हायला वृक्ष पर रहता है इसे वृक्ष मेढ़क कहते हैं।
13. सरीसृप (Class - Reptilia )
- सरीसृप जीव अधिकांश स्थल पर रहते हैं तथा जल में रहते हैं। ये जीव रैंगकर चलते हैं।
- सरीसृप अनियततापी (Cold blooded) जीव है, इन जीवों का त्वचा शल्कों से ढँका रहता है। त्वचा में कोई ग्रंथि नहीं पायी जाती है।
- सरीसृप का हृदय तीन कक्षीय है परंतु मगरमच्छ का हृदय चार कक्षों में बँटा होता हैं। इनमें श्वसन फेफड़ा के द्वारा होता है।
- इन जीवों में निषेचन आंतरिक होते हैं तथा ये जीव जल में अंडे न देकर स्थल पर अंडे देते हैं।
- प्रमुख जीव- कछुआ, सभी प्रकार के सॉप, छिपकली, आदि ।
- प्रमुख तथ्य-
- डायनासोर करोड़ों वर्ष तक पृथ्वी के सबसे प्रमुख जीव था । यह सरीसृप वर्ग के जीव था, जो ट्राइएसिक काल में पैदा हुए तथा क्रिटेशियस युग में विलुप्त हो गये ।
- बोआ, पायथन (अजगर), बुलस्नेक, किंगस्नेक, हाइड्रोफिश (जलीय सॉप) जहरीले नहीं होते हैं। बंगेरस (करैत) सबसे विषैला सॉप है।
- जहरीले साप की विष ग्रंथियाँ मानव के लारग्रंथि के समांग है। इनके जहरीले दांत मैक्सिलरी दंत के रूपांतरित रूप है।
- हैमीडेक्टीलस घरेलू छिपकली है, हिलोडर्मा विषैली छिपकली है तथा ड्रेको उड़ने वाला छिपकली है ।
- गिरगिट के त्वचा में एक विशेष प्रकार Colour Pigment पाये जाते है जिसके कारण इसके त्वचा का रंग बदल जाता है।
- किंग कोबरा एक मात्र साँप है जो घोंसला बना कर रहता है। कोबरा भोजन हेतु दूसरे सॉप को भी आहार बना लेता है।
14. पक्षी (Class - Aves)
- पक्षी नियततापी (Warm blooded) तथा उड़ने वाले जीव हैं। इनका शरीर परो (Feathers) से ढँके होते हैं तथा अग्रपाद पंखों में रूपांतरित हो जाते हैं।
- पक्षी के जबड़ों में दांत नहीं होते हैं। इनमें श्वसन फेफड़ा के माध्यम से होता है तथा हृदय चार कक्षों में बंटा होता है।
- पक्षी के अस्थि खोखली होती है तथा इनमें वायुकोष (Air Cavity) भरे होते हैं ।
- पक्षियों में शब्दिनी (Syrynx) नामक बाद्य अंग होते हैं । पक्षियों की चहचहाहट यही से उत्पन्न होता है।
- पक्षियों में एक अंडाशय होता है । मलाशय तथा मूत्राशय के जगह एक ही अंग पाये जाते हैं ।
- प्रमुख जीव- समस्त पक्षी
- पक्षियों के संबंध में प्रमुख तथ्य-
- शुतुरमुर्ग पृथ्वी का सबसे ऊँचा एवं विशालतम पक्षी है। यह अफ्रीका में पाया जाता है। ऐमु दूसरा विशालतम पक्षी है यह आस्ट्रेलिया में पाया जाता है। शुतुरमुर्ग तथा एम दोनों उड़ने में असमर्थ है।
- पेंग्विन जलीय पक्षी है जो उड़ने में असमर्थ है। यह पक्षी दक्षिणी गोलार्द्ध में पाया जाता है।
- सबसे छोटा पक्षी गुंजन पक्षी (हर्मिंग बर्ड) है। यह पक्षी आगे-पीछे दोनों तरफ उड़ान भर सकता है।
- कबूतर में विशेष प्रकार के श्वेत पोषक द्रव बनता है जिसे कपोत दूध ( Pigeon's milk) कहते हैं ।
- उड्नहीन पक्षी किवी न्यूजीलैंड में पाया जाता है।
- उड्नहीन पक्षी जैसे शुतुरमुर्ग, किवी, ऐमु मे कूटक (Kell) नहीं पाये जाते हैं। कूटक एक प्रकार की हड्डी है जो पक्षियों को उड़ने में मदद करता है।
15. स्तनधानी (Class - Mammalia)
- स्तनधारी वर्ग के जीवों का प्रमुख लक्षण है- डायफ्रॉम की उपस्थिति, मादा में दुग्ध ग्रंथि (स्तन ग्रंथि) का पाया जाना, त्वचा पर रोम का पाया जाना तथा बाह्य कर्णपल्लव की उपस्थिति।
- स्तनधारी नियततापी (Warm Blooded) होते हैं इनका हृदय चार कक्षों में बँटा होता है । श्वसन फेफड़ों द्वारा होता है I
- इन जीवों में अंतः निषेचन पाया जाता को भी है तथा मादा शिशुओं को जन्म देती है। कुछ स्तनधारी अंडा तथा अपरिपक्व बच्चे जन्म देते हैं ।
- स्तनधारी के तीन उपवर्ग है-
- प्रोटोथेरिया- ये अंडे देने वाले स्तनधारी है। प्रोटोथेरिया के लक्षण सरीसृप से मिलते-जुलते हैं । उदा०- एकिडना (मोनोट्रिम), प्लैटीपस (बत्तख चोंचा) आदि ।
- एकिडना को कँटिला चींटीखोर भी कहते हैं ।
- मेटाथिरिया - ये अपरिपक्व बच्चे को जन्म देने वाला स्तनधारी है। अपरिपक्व बच्चे विकसित होने तक मादाजीव में उपस्थित मार्सुपियन थैली में होता है । उदा० - कंगारू, कोएला
- यूथेरिया - ये पूर्ण परिपक्व बच्चे को जन्म देने वाला स्तनधारी है। उदा०- मानव, बंदर, हाथी, कुत्ता आदि ।
- प्रोटोथेरिया- ये अंडे देने वाले स्तनधारी है। प्रोटोथेरिया के लक्षण सरीसृप से मिलते-जुलते हैं । उदा०- एकिडना (मोनोट्रिम), प्लैटीपस (बत्तख चोंचा) आदि ।
