जैव विविधता क्या है | जैव विविधता किसे कहते हैं | जैव विविधता क्या है उदाहरण सहित समझाइए

 जैव विविधता क्या है | जैव विविधता किसे कहते हैं | जैव विविधता क्या है उदाहरण सहित समझाइए


जैव विविधता शब्द का प्रयोग पृथ्वी पर पाये जाने वाले जीवों के विविधता के संदर्भ में किया जाता है। जैव विविधता में प्राणियों में पाए जाने वाले समस्त जीन, समस्त जातियाँ तथा पारिस्थितिक तंत्र समाहित है।


General Competition | Science | Biology (जीव विज्ञान) | जैव विविधता

  • जैव विविधता शब्द का प्रयोग पृथ्वी पर पाये जाने वाले जीवों के विविधता के संदर्भ में किया जाता है। जैव विविधता में प्राणियों में पाए जाने वाले समस्त जीन, समस्त जातियाँ तथा पारिस्थितिक तंत्र समाहित है।
  • 1992 में रियो डि जेनेरियो में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन में जैव विविधता को निम्न तरीक से प्ररिभाषित किया गया-
    " जैव विविधता " समस्त (जलीय, सागरीय एवं स्थलीय) पारिस्थितितंत्र के जीवों के मध्य अंतर और साथ ही उन सभी पारिस्थितिकी तंत्र जिनके ये भाग हैं, में पाई जाने वाली विविधता है। जैव विविधता में एक प्रजाति के अन्दर पाई जाने वाली विविधता, विभिन्न जातियों के बीच की विविध ता तथा पारिस्थितिकीय विविधता सम्मिलित है। "
  • जैव विविधता (Biological diversity) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग नार्से तथा मैकमैनस ने किया था। आगे चलकर डब्ल्यू. जी. रोजेने ने 'Biological diversity' शब्द को संक्षिप्त कर 'Biodiversity' शब्द दिया।

जैव विविधता के प्रकार

  • जैव विविधता तीन प्रकार की होती है, अनुवांशिक विविधता, प्रजातीय विविधता तथा पारिस्थितिक विविधता ।
  1. अनुवंशिक विविधता (Genetic Diversity)
    • अनुवंशिक विविधता का आशय एक ही जाति के जीवों के जीन में पाई जाने वाली विविधता से हैं एक जाति के सदस्य लगभग हर दृष्टिकोण से समान होते हैं फिर भी उनमें कुछ अंतर जरूर होता है।
    • जातियों में पाये जाने वाले अनुवंशिक विविधता का बहुत अधिक महत्व है। जिस जाति में अनुवंशिक विविधता अधिक होती है उसके अंदर पर्यावरण में होने वाले बदलाव के लिए अनुकूलन करने की क्षमता अधिक होती है।
    • हमलोग विभिन्न किस्म के आम, चावल, बैंग द खाते हैं यह अनुवंशिक विविधता का ही परिणाम है। भारत में 1000 से भी ज्यादा आम का किस्म पाया जाता वही धान के लगभग 50,000 किस्म का पता लगाया गया है।
    • भारत के हरित क्रांति अनुवंशिक विविधता का ही परिणाम है क्योंकि एक ही जाति की विभिन्न किस्म में पाई जाने वाली विविधता का इस्तेमाल कर एक उन्नत किस्म तैयार की जाती है।
  2. प्रजाति विविधता (Species Diversity)
    • किसी पारिस्थितिकी तंत्र के समुदाय के जातियों में जो विविधता मौजूद है उसे जाति या प्रजाति विविधता कहा जाता है। प्रजाति विविधता से हमें यह पता चलता है कि एक समुदाय में कितने प्रकार की जातियाँ मौजूद है।
    • पृथ्वी पर सर्वाधिक जातिय विविधता उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। इस क्षेत्र में जातीय विविधता सर्वाधिक होने के निम्न कारण हैं-
      1. उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र लाखों वर्षों से अबाधित रहा है, यहाँ कोई विशेष पर्यावरण परिवर्तन नहीं हुआ जिसके कारण जातियों का उद्भव तथा विकास के पर्याप्त समय मिला। 
      2. पृथ्वी पर सर्वाधिक सौर ऊर्जा की प्राप्ति इन्हीं क्षेत्रों को उपलब्ध होती है, जिसके कारण यहाँ कि उत्पादकता अत्यधिक है ओर यह परोक्ष रूप से जातीय विविधता को बढ़ावा दिया है।
      3. उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र के मौसमी परिवर्तन भी ज्यादा नहीं होता है जिसके कारण यहाँ का निकेत (Niche) स्थिर रहता है। जिसके कारण अत्यधिक जाति विविधता हुई।
  3. पारिस्थतिकी विविधता (Ecological Diversity)
    • एक पारिस्थितिकी तंत्र या एक प्रकार के आवास में रहने वाले जीवों समुदाय तथा दूसरे पारिस्थितिकी तंत्र या दूसरे प्रकार के आवास में निवास करने वाले जीवों के समुदाय में जो विविधता पायी जाती है, उसे पारिस्थितिकी विविध ता कहते हैं। पारिस्थितिकी विविधता को सामुदाय विविधता भी कहा जाता है।
    • विभिन्न प्रकार के आवास तथा निकेत ही पारिस्थितिकी विविधता के लिये उत्तरदायी होते हैं, इसके अतिरिक्त पोषणचक्र, आहार श्रृंखला तथा ऊर्जा प्रवाह में होने वाला परिवर्तन पारिस्थितिक विविधता को बढ़ावा देता है।
    • पारिस्थितिकी विविधता को तीन प्रकार में विभाजित किया गया है, अल्फा विविधता, बीटा विविधता तथा गामा विविधता ।
    1. अल्फा विविधता (Alpha Diversity)
      • किसी एक समुदाय या परितंत्र में पाये जाने वाले प्रजाति विविधता ही अल्फा विविधता है। अल्फा विविधता का मापन कर किसी परितंत्र के अंदर एक समुदाय की कुल प्रजातियों की संख्या और प्रजातियों की आनुवंशकी के आधार पर उनमें पाई जाने वाली समरूपता का भी आकलन कहा जाता है।
    2. बीटा विविधता (Beta Diversity)
      • एक वास स्थान में विभिन्न समुदाय के बीच पाई जाने वाली विविधता बीटा विविधता कहलाती है। जितनी ज्यादा वास स्थानों में भिन्नता होगी उतनी ही ज्यादा उस क्षेत्र की बीटा विविधता होगी।
    3.  गामा विविधता (Gama Diversity)
      • लैंडस्केप स्तर पर पाई जानी वाली विविधता को गामा विविधता कहा जाता है। गामा विविधता में अल्फा तथा बीटा दोनों ही विविधता समाहित है। गामा विविधता के द्वारा किसी भौगोलिक क्षेत्र के आवासों की भिन्नता या विषमता का पता चलता है।

जैव विविधता की प्रवणता

  • पृथ्वी पर हर जगह जैव विविधता एक समान नहीं है हीं है। उच्च अक्षांश • उच्च अक्षांश से निम्न अक्षांश की ओर अथवा ध्रुव से भूमध्य रेखा की ओर बढ़ने पर जैव विविधता में वृद्धि होती है। इसी प्रकार पर्वतीय क्षेत्रों में जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती है जैव विविधता में कमी आने लगता है।
  • अक्षांशों में प्राय: उच्च अक्षांश से निम्न अक्षांश की ओर तथा पर्वतीय क्षेत्रों में ऊपर से नीचे की ओर आने पर प्रजातियों के संख्या में अंतर ही " जैव विविधता प्रवणता" कहलाता है।
  • जैव विविधता प्रवणता का मुख्य कारण यह है कि कहीं प्रजातियों के लिए विकास की परिस्थितियाँ पर्याप्त है तो कहीं बहुत कठीन परिस्थितियाँ है जहाँ प्रजातियों के जीवित रहने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

भारत में जैव विविधता का वितरण (Distribution of Biodiversity in India)

  • विश्व में अब तक ज्ञात जीवित स्पीशीज (जाति) की संख्या लगभग 1.8 मिलीयन (18 लाख) है, जिनमें 70 प्रतिशत से अधिक ज्ञात स्पीशीज जंतुओं (Animal) की है, जबकि पौधे जिनमें शैवाल, कवक, ब्रायोफाइट्स, टेरिडोफाइट्स, आवृतबीजी तथा अनावृत्तबिजी सम्मिलित है उनका प्रतिशत 22 है। शेष प्रजाति सूक्ष्मजीवों की है।
  • 'रॉबर्ट में' के अनुमान के मुताबिक विश्व के अभी 22 प्रतिशत स्पोशीब का पता लगाया जा सका है, अभी भी अनेकों प्रजाति का पता लगाना बाकी है। रॉबर्ट में के अनुसार विश्व में जातीय विविधता लगभग 7 मिलियन है।
  • भारत विश्व के जैव विविधता बाहुल क्षेत्रों में से एक है। विश्व के 17 बड़े जैव विविधता वाले क्षेत्रों में भारत भी शामिल है। जैव विविधता की दृष्टि से भारत विश्व के 10 तथा एशिया के 4 शीर्ष देशों में शामिल है।
  • IUCN के अनुसार भारत में जीवों की 91.000 प्रजातियाँ पायी जाती है. इसके अलावे भारत में पादपों की लगभग 47,500 प्रजातियाँ पायी जाती है। भारत में पाये जाने वाले सूक्ष्मजीव, पौधा, जन्तु की प्रजाति की अनुमानित संख्या निम्न है -
टैक्सॉनस्पीशीज की संख्या
1. जीवाणु850
2 शैवाल12480
3. कवक23,000
4. लाइकेन2000
5. ब्राइयोफाइट्स2850
6. टेरिडोफाइट्स1100
7. अनावृतबीजी64
8. आवृत्तबीजी17500
9. कीट68389
10. मत्स्व2546
11. उभयचर309
12. सरीसृप456
13. पक्षी1232
14. स्तनधारी390
  • भारत के विभिन्न क्षेत्रों में जैव विविधता का प्रतिशत निम्न है-
भौगोलिक क्षेत्रजैव विविधता का प्रतिशत
1. पश्चिमी हिमालय10%
2. मध्य भारत तथा गंगा का मैदानी क्षेत्र9%
3. पश्चिमी मरूस्थलीय भाग1%
4. पूर्वी घाट24%
5. पश्चिमी घाट26%
6. उत्तर-पूर्व30%
7. शेष भाग10%
  • भारत के विभिन्न क्षेत्रों की जलवायु में भिन्नता के कारण जन्तुओं एवं वनस्पतियों की प्रजातियों में विविधता पाई जाती है। जैव विविधता की दृष्टि से भारत के 10 जैव भौगोलिक क्षेत्र हैं जिनमें जलवायु, स्थलाकृति, मृदा आदि में भिन्नता पायी जाती है।

जैव विविधता का महत्व (Importance of Biodiversity)

  • जैव विविधता पृथ्वी पर जीवन का आधार है जो मनुष्य के लिए अपना अस्तित्व बनाये रखने में अत्यधिक सहायक है। मनुष्य की लगभग सभी आवश्यकता प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पृथ्वी पर पायी जाने वाले विशाल जैव विविधता से ही प्राप्त होता है। जैव विविधता का महत्व निम्नलखित है-
    1. जैव विविधता से मनुष्य को अत्यधिक तथा विविध प्रकार के उत्पाद प्राप्त होते हैं, जिससे मनुष्य की अपनी आवश्यकता पूरी होती है तथा वे लाभ का भी अर्जन करते हैं। उच्च पैदावार होने वाले संकरण बीज भी जैव विविधता के बिना तैयार नहीं किया जा सकता है।
    2. पृथ्वी पर फैले विशाल जैव विविधता में कई ऐसे पादप हैं जिनमें चिकित्सा संबंधी गुण पाये जाते हैं। इन पादपों की सहायता से दर्द निवारक दवाई, मलेरिया तथा कैंसर दवाई बनायी जाती है। पृथ्वी पर सबसे ज्यादा औषधीय पौधों की भरमार विषुवत रेखीय प्रदेश तथा उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों में है।
    3. मनुष्य को हमेशा ही प्रकृति का सौन्दर्य काफी प्रभावित करता है। प्रकृति का सौन्दर्य विभिन्न प्रकार के फल तथा फूल वाले पादप, विभिन्न प्रकार में जीव-जन्तु के कारण है। अगर जैव विविधता में क्षरण होगा तो निश्चित ही प्रकृति के सौन्दर्य का जो अद्भूत नजारा हम देखते हैं वो लुप्त हो जाएगा।
    4. जैव विविधता परितंत्र को स्वस्थ तथा स्थिर बनाये रखते हैं। जैव विविधता नष्ट होने से परितंत्र में असंतुलन पैदा हो जाता है। आज पर्यावरण में ग्लोबल वार्मिंग तथा अम्लीय वर्षा जैसी समस्या जो आयी है, यह जैव विविधता के क्षरण का ही परिणाम है।
    5. जैव विविधता, कृषि के अनुवंशिक पदार्थ का स्त्रोत है जो कृषि के भविष्य के लिए अत्यधिक महत्व रखती। कृषि में पायी जाने वाली जैव विविधता हमारे परिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करती है और उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर मनुष्य ही नहीं वरण सभी प्रजातियों का पोषण करती है।

जैव विविधता के ह्रास के कारण (Causes of Biodiversity losses)

  • पृथ्वी की जैव विविधता का बहुत ही तीव्रगति से ह्रास हो रहा है। कई जन्तु तथा पादपों की जातियाँ पृथ्वी से विलुप्त हो गये हैं और कई विलुप्त के कगार पर है। जैव विविधता के ह्रास होने कई कारण है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारण है मानव की अपनी गतिविधियाँ। मनुष्य अपनी जनसंख्या बेतहाशा तरीके से बढ़ा रहा है और आवश्यकता की पूर्ति के लिए जैव विविधता का अत्यधिक दोहन कर रहा है। जैव विविधता के ह्रास होने का प्रमुख कारण निम्न है-
    1. जैत्र विविधता का क्षरण होने का मुख्य कारण है प्राकृतिक आवासों का नष्ट हो जाना। सड़क निर्माण, भवन निर्माण, कृषि विकास हेतु आज लगातार जगलों को नष्ट कया जा रहा है जिससे कई जीव के प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाते हैं और उसे मजबूरन दूसर आवास में पलायन करना पड़ता है जहाँ उसे अत्यधिक संघर्ष के साथ जीवन यापन करना पड़ता है।
    2. विदेशी जाति का पारिस्थितिकी तंत्र में प्रवेश भी जैव विविधता के लिए खतरा हैं। जब कोई नई जाति किसी क्षेत्र में प्रवेश करती है तो इसे विदेशी जाति कहते हैं। कुछ विदेशी जाति नये पारिस्थितिकी तंत्र में बड़ी तेजी से अपनी संख्या बढ़ाती है जो स्थानीय जाति में कमी या उनकी विलुप्ति के कारण बनती है। जलकुंभी, गाजर घास, अफ्रीकन कैटफीश ये विदेशी जाति हैं जो भारत में आकर यहाँ के स्थानिक जाति के लिए खतरा उत्पन्न कर दिया है।
    3. जब एक प्रजाति विलुप्त होती है तो उस पर आश्रीत जीव भी विलुप्त हो जाते हैं, इसे सह विलुप्तता (Coextinction) कहते हैं। सहविलुप्तता भी जैव विविधता के ह्रास का एक कारण है।
    4. प्रदूषण के कारण वर्त्तमान समय में पर्यावरण में बढ़ता प्रदूषण भी जैव विविधता के लिए खतरा उत्पन्न कर दिया है। जल तथा वायु दोनों ही दूषित हुआ है जिसके कारण पारिस्थितिकी तंत्र के कई संवेदनशील जातियाँ विलुप्त हो गये हैं या विलुप्ती के कगार पर है।
    5. बाढ़, भूकम्प, भूस्खलन, वनाग्नि जैसे प्राकृतिक आपदा के कारण भी जैव विविधता के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। प्राकृतिक आपदाओं के कारण जीवों के आवास नष्ट हो जाते हैं जिसे उस क्षेत्र की प्रजातियाँ संकट में आती है। प्राकृतिक आपदा पारिस्थितिकी तंत्र के उत्पादकता को भी कम कर देते हैं।

जैव विविधता का संरक्षण (Conservation of Biodiversity)

  • जैव विविधता संरक्षण वे उपाय है जिनके द्वारा पौधों एवं जंतुओं को लगातार जीवित रखना, उनकी उचित वृद्धि तथा विकास एवं प्रजनन को सुनिश्चित किया जाता है। जैव विविधता संरक्षण के मुख्य उद्देश्य निम्न है-
    1. पारिस्थितिकी तंत्र के जैविक तथा अजैवक भागों का आपस में संतुलन बनाए रखना ताकि पर्यावरण में भी संतुलन बना रहे।
    2. संकट ग्रस्त तथा दुर्लभ जातियों की रक्षा करना ।
    3. सभी जातियों का पूर्ण जीन पुल (Gene pool) का संरक्षण करना। एक जाति या इसकी एक समष्टि (आवादी) मँ कुल अनुवंशिक विविधता जीन पुल कहलाती है ।
    4. मानव हित में जीव धारियों का उपयोग संतुलित रूप से करना ।
  • जैव विविधता का संरक्षण पेड़-पौधे एवं जन्तु को बचाने या पर्यावरण संतुलन बनाये रखने हेतु परम आवश्यक है तथा मनुष्य की यह नैतिक जिम्मेदारी भी है कि उसे जो जैविक धरोहर मिला है उसको वह आने वाले पीढ़ी के लिए संभाल कर रखे। जैव विविधता के संरक्षण के दो मुख्य विधि है-
    1. स्व स्थानों संरक्षण (In situ Conservation )- जब जीव जन्तु एवं एवं वनस्पतियों का संरक्षण उनके अपने प्राकृतिक आवास में किया जाता है तो इसे स्व स्थानों संरक्षण कहा जाता है। स्व स्थाने संरक्षण काफी सस्ता तथा आसान तरीका है। इसके अंतर्गत 'उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, . जैव मंडल आगार (Biosphere Reserve) आदि आते हैं।
    2. बाह्य स्थाने संरक्षण (Ex situ Conservation)- कभी-कभी स्थितियाँ ऐसी आ जाती है, कि पौधे या जंतु संकटग्रस्त या आपत्तिग्रस्त श्रेणी में आ जाते हैं और उनका विलुप्त होने का खतरा प्रवल हो जाता है। इस स्थिति में जंतु या पौधों को उनके अपने प्राकृतिक आवास से निकालकर अन्यंत्र ले जाकर संरक्षण करना पड़ता है। इस तरह के संरक्षण को बाह्य स्थाने संरक्षण कहा जाता है। इसके अंतर्गत वनस्पतिक उद्यान, जंतु उद्यान, चिड़ियाँघर, वीज बैंक, जीन बैंक, क्रायोप्रिजरवेशन शामिल है।
1. राष्ट्रीय उद्यान (Natioal Park)
  • ऐसे प्राकृतिक पारिस्थति तंत्र जो जैव विविधता से समृद्ध होते हैं और उसका संरक्षण करना अत्यंत आवश्यक होता है, उस क्षेत्र को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के राज्य राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर सकता है।
  • राष्ट्रीय उद्यान घोषित क्षेत्र में जंतुओं का शिकार प्रतिबंधीत रहता है तथा राष्ट्रीय उद्यान के वन्य जीवों के अलावा अन्य जीवों के चारण पर भी प्रतिबंध होता है। इन क्षेत्रों में किसी भी तरह के हथियार का प्रयोग वर्जित रहता है।
  • वर्त्तमान में राष्ट्रीय उद्यानों की संख्या भारत में 94 से बढ़कर 103 हो गई है। जिनमें सर्वाधिक राष्ट्रीय उद्यान मध्य प्रदेश तथा अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में है।
  • भारत का सर्वप्रथम राष्ट्रीय उद्यान हैली नेशनल पार्क है जो 1936 में बनाया गया था। वर्तमान में इसे जिम कार्बेट नेशनल पार्क के नाम से जाना जाता है।
2. वन्यजीव अभ्यारण्य (Wildlife Sanctuaries)
  • अगर राज्य किसी क्षेत्र को जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण मानता हो तो उसे वन्यजीव संरक्षण अधनियम 1972 के तरह वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित कर सकता है।
  • वन्यजीव अभ्यारण्य में मानव गतिविधि की अनुमति दी जाती है। इन क्षेत्रों में जानवरों को चराने, लकड़ी इकट्ठा करने तथा पर्यटन की अनुमति होती है परंतु मानव का बसना प्रतिबंधित होता है।
  • वन्यजीव अभ्यारण्य का गठन किसी विशेष प्रजाति को संरक्षण देने हेतु किया जाता है। जैसे- एशियाई शेर को संरक्षण देने हेतु गिर वन्य जीव अभ्यारण्य (गुजरात) का गठन, ठीक उसी तरह बाघ को संरक्षण देने हेतु पन्ना (मध्य प्रदेश), सिमलीपाल (ओडिशा) वन्य जीव अभ्यारण्य का गठन किया गया है।
  • सरकार वन्यजीव अभ्यारण्य को राष्ट्रीय उद्यान भी घोषित कर सकती है परंतु राष्ट्रीय उद्यान को वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित नहीं किया जा सकता है।
  • भारत में वर्त्तमान समय में 543 वन्यजीव अभ्यारण्य हैं जिनमें टाइगर तथा पक्षी अभ्यारण्य भी शामिल है।
3. जैवमंडल आभार (Biosphere Reserve)
  • बायोस्फीयर रिजर्व अवधारणा का विकास 1975 में यूनेस्को के द्वारा किया गया है। यह क्षेत्र प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक भू-दृश्य का प्रतिनिधि क्षेत्र है जो स्थलीय, जलीय भाग में फैले होते हैं। बायोस्फीयर रिजर्व में न सिर्फ जैव विविधता को संरक्षित किया जाता है बल्कि यह परंपरागत संसाधनों के प्रयोग को बढ़ावा देने के साथ ही परितंत्र के कार्यप्रणाली और प्रारूप को समझने में मदद करता है।
  • जैत्रमंडल आगार की घोषणा तथा नामकरण केंन्द्रीय सरकार द्वारा किया जाता है और यह क्षेत्र जिस देश में रहता है संपूर्ण अधिकार उसी देश के पास रहता है। भारत में कुल 18 बायोस्फीयर रिजर्व है ।
  • एक बायोस्फीयर रिजर्व तीन हिस्सों में बँटा रहता है-
    1. क्रोड क्षेत्र (Core Zone)- बायोस्फीयर रिजर्व का सबसे ज्यादा संरक्षित क्षेत्र क्रोड क्षेत्र होता है। यहाँ मनुष्य को कोई भी क्रियाकलाप की आज्ञा नहीं होती है। बायोस्फीयर रिजर्व का क्रोड क्षेत्र एक राष्ट्रीय उद्यान भी हो सकता है।
    2. बफर क्षेत्र (Buffer Zone)- क्रोड क्षेत्र के चारों ओर का क्षेत्र बफर क्षेत्र कहलाता है। इस क्षेत्र में सीमित गतिविधियाँ की अनुमति होती है। इस क्षेत्र का उपयोग शोध अनुसंधान, शिक्षा, पर्यटन मनोरंजन आदि क्रियाओं के लिए किया जाता है।
    3. पेरिफेरल क्षेत्र (Peripheral Zone)- बफर क्षेत्र के बाहर के क्षेत्र को पेरिफेरल क्षेत्र कहते हैं। इस क्षेत्र में पारस्थितिकी तंत्र को बिना क्षति पहुँचाये मानव गतिविधि की अनुमति होती है।
  • भारत के प्रमुख जैवमंडल आगार-
    • नीलगिरि, नंदा देवी, नोकरेक, सुन्दरवन, कंचनजंघा, पंचमढ़ी आदि ।
4. वानस्पतिक उद्यान (Botanical Garden)
  • वानस्पतिक उद्यान एक कृत्रिम आवास जहाँ विश्व के विभिन्न क्षेत्रों के पादप की महत्वपूर्ण तथा विशिष्ट प्रजाति को संग्रह किया जाता है। वानस्पतिक उद्यान में संकटग्रस्त पादपों को भी संरक्षित किया जाता है।
  • वानस्पतिक उद्यान में शोध तथा अनुसंधान के माध्यम से विश्व के विभिन्न क्षेत्रों के आवासों की वानस्पतिक प्रजातियों का एक स्थानीय आवासीय क्षेत्रों में विकास एवं संरक्षण के लिए तकनीक विकसित की जाती है। इसके अलावे पादप की उत्पादन क्षमता बढ़ाने, रोगमुक्त रखने हेतु विदेशी प्रजाति या उन्नत प्रजाति से उसका संरक्षण कराकर नये-नये किस्म के पादप तैयार किये जाते हैं।
5. चिड़ियाँघर (Zoo )
  • चिड़ियाँघर एक कृत्रिम आवास है जहाँ जीव-जंतु, पक्षी एवं जीवों की दुर्लभ तथा संकटग्रस्त प्रजाति को रखा जाता है। चिड़ियाँघर का निर्माण जैव विविधता के बाह्य स्थाने संरक्षण हेतु किया जाता है परंतु आजकल यह मानव के प्रमुख मनोरंजन केन्द्र का भी स्थल बन चुका है।
  • भारत में स्थित सभी चिड़ियाँघरों का संचालन हेतु सभी मानकों का निर्धारण केन्द्रीय चिड़ियाँघर प्राधिकरण द्वारा की जाती है, जिसकी स्थापना भारतीय वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत किया गया है।
6. जीन पूल सेंटर (Gene Pool Centre)
  • एक जाति में कुल अनुवंशिक विविधता को जीन पूल कहते हैं। जीन पूल सेंटर के स्थान हैं वहाँ फसलों की महत्वपूर्ण प्रजातियाँ और स्थानिक जंतुओं की प्रजातियाँ पाई जाती है और इन केन्द्रों पर अनुर्वेशिक विविधता को एकत्र करने का प्रयास किया जाता है ताकि भविष्य में प्रयोग में लाया जा सके। जीन पूल केन्द्र के अंतर्गत विश्व के महत्वपूर्ण जैव विविधता वाले क्षेत्र शामिल हैं, इनमें प्रमुख निम्न हैं-
    1. दक्षिण एशिया उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र
    2. दक्षिण-पश्चिम एशिया क्षेत्र
    3. पूर्वी एशिया, चाइना एवं जापान का क्षेत्र
    4. भूमध्य सागरीय क्षेत्र
    5. यूरोप
    6. दक्षिण अमेरिका का एंडीज पर्वत
7. जीन बैंक (Gene Bank)
  • जीन बैंक के अंतर्गत वृक्षों के बीजों, जंतुओं के स्पर्म एवं एवं अण्डा को सामान्य तापक्रम पर एक जैक्कीय फ्रीज में रखा जाता है और आवश्यकता पड़ने पर उसे उपयोग में लाया जाता है।
  • भारत में तीन मुख्य संस्थान है जो जीन बैंक के तरह कार्य करता है, यह निम्न हैं-
    1. राष्ट्रीय पादप अनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, नई दिल्ली केन्द्र पर फसलों, पादपों तथा पादप के अन्य जाति के बीजों को संरक्षित रखा जा सकता है।
    2. राष्ट्रीय पशु अनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, करनाल में पालतू पशुओं के अनुवंशिक पदार्थ (स्पर्म, अंडा आदि) को संरक्षित किया जाता है।
    3. राष्ट्रीय मत्स्य अनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, लखनऊ में मछलियों के अनुवंशिक पदार्थों का संरक्षण एवं रख-रखाव किया जाता है।
8. क्रायोप्रिजर्वेशन (Cryo preservation)
  • इस तकनीक के अंतर्गत पादप तथा जंतु के अनुवंशिक पदार्थ (कोशिका, उत्तक, अंग आदि) को द्रव नाइट्रोजन में अत्यंत ही निम्न ताप पर रखा जाता है। बाह्य स्थाने संरक्षण की यह तकनीक काफी आधुनिक तकनीक है जो लम्बे समय तक अनुवंशिक पदार्थों की कार्यक्षमता को बनाए रखता है। 

जैव विविधता हॉट स्पॉट (Biodiversity Hot spots)

  • जैव विविधता हॉट स्पॉट ऐसे क्षेत्र होते हैं जहाँ जैव विविधता प्रचुर मात्रा में उपस्थित रहते तथा वहाँ स्थानीय प्रजाति की प्रचुरता पायी जाती है। हॉट स्पॉट स्व स्थाने संरक्षण का उदाहरण हैं।
  • हॉट स्पॉट के अवधारणा का प्रतिपादन नॉर्मन मायर्स ने किया था। किसी भी क्षेत्र को हॉट स्पॉट घोषित करने हेतु निम्न मापदण्ड बनाये गये हैं-
    1. इस क्षेत्र में 1500 से अधिक स्थानिक पौधों की प्रजाति होनी चाहिये ।
    2. यहाँ कि 70 प्रतिशत प्राथमिक वनस्पतियाँ नष्ट हो चुकी है।
  • वर्त्तमान में विश्व में 36 हॉट स्पॉट है जो पृथ्वी के स्थलीय क्षेत्रों को 2.3 प्रतिशत भाग पर फैले हुए है परंतु इन हॉट स्पॉट क्षेत्रों में विश्व के पौधे, पक्षी, स्तनधारी, सरीसृप, उभयचरों की 60 प्रतिशत प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • हॉट स्पॉट में भी कुछ हॉट स्पॉट ऐसे हैं जहाँ स्थानिक प्रजाति की काफी अधिक प्रचुरता है, ऐसे हॉट स्पॉट को Hottest Hotspots कहा जाता है। Hottest Hotspots की श्रेणी में विश्व के 8 हॉट स्पॉट क्षेत्र को रखा गया है।
  • भारत में कुल 4 हॉट स्पॉट है जिनमें 2 को Hottest Hotspots की श्रेणी में रखा गया है। भारत के 4 हॉट स्पॉट हैं- 1. पूर्वी हिमालय या हिमालय क्षेत्र, 2. इण्डो वर्मा क्षेत्र, 3. पश्चिमी घाट और 4. सुण्डालैण्ड |
  • भारत के 4 हॉट स्पॉट पूरी तरह से भारतीय क्षेत्र में नहीं है। भारत के अंतर्गत आने वाले हॉट स्पॉट क्षेत्रों में पश्चिमी घाट हॉट स्पॉट क्षेत्र में 64.95 प्रतिशत, इंडो- वर्मा में 5.13 प्रतिशत, हिमालय क्षेत्र में 44.37 प्रतिशत और सुंडालैण्ड हॉट स्पॉट में 1.28 प्रतिशत क्षेत्र सम्मिलित है।

रेड डाटा बुक (Red Data Book)

  • आपत्तिग्रस्त प्राणी और पौधों की सूची एवं उनकी जानकारी एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित की गई है, जिसे रेड डाटा बुक नाम दिया गया है। यह रेड डाटा बुक IUCN (International Union for Conservation of Nature) वैश्विक प्रजाति कार्यक्रम तथा प्रजाति उत्तरजीविता आयोग के साथ मिलकर प्रकाशित करता है।
  • IUCN की Red Data Book में प्रजाति को उनकी स्थिति के अनुसार कुल नौ श्रेणी में रखा गया है। यह श्रेणी निम्न है-
    1. विलुप्त (Extinct or Ex)- जिस प्रजाति का कोई सदस्य जीवित न हो तथा विश्व के सभी आवासों में उनकी संख्या है- बिल्कुल समाप्त हो चुकी हो विलुप्त प्रजाति कहलाती है। विगत दशकों में जो प्रजाति विलुप्त हो गई, उनमें मुख्य डोडो (मॉरीशस), स्टीलर्स सी कॉउ (रूस), थाईलैसीन (आस्ट्रेलिया) तथा अफ्रीका के शेर की तीन उपप्रजाति- बाली, नावन, कैस्पियन |
    2. वन से विलुप्त (Extinct in the Wirld or EW)- जिस प्रजाति की समस्त जीव अपने प्राकृतिक आवास से खत्म हो गया हो और अब वह चिड़ियाँघर या अन्य कृत्रिम आवास में ही बचा हो, उसे वन से विलुप्त माना जाता है।
    3.  गंभीर संकट ग्रस्त (Critically Endangered or CR)- गंभीर संकट ग्रस्त प्रजाति विलुप्त के अत्यधिक नजदीक होते हैं। इस श्रेणी में रखने के मापदण्ड निम्न है-
      1. यदि प्रजाति की जनसंख्या 250 से कम हो और 3 वर्षों में 25% की कमी आ रहा हो।
      2. यदि 10 वर्षों में प्रजाति की जनसंख्या में 90% से अधिक की कमी हो ।
      3. केवल 50 या उससे कम परिपक्व सदस्य संख्या शेष हो । 
      4. यदि 10 वर्षों में 50% तक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा हो ।
        • प्रमुख भारतीय प्रजाति जो गंभीर संकटग्रस्त है- इंडियन बस्टर्ड, जेरडॉन कॉर्सर, गुलाबी सिर वाली बत्तख, सफेद पट वाला बगुला, हिमालयन बटेर, साइबेरियन क्रेन, गंगा शार्क, पग्मी हॉल, घड़ियाल आदि।
    4. संकट ग्रस्त (Endangered or EN )- संकट ग्रस्त प्रजाति का वन से विलुप्त होने का खतरा बना रहता है। इस श्रेणी में रखने के निम्न मापदण्ड है-
      1. यदि 10 वर्षों में प्रजातियों की 70% जनसंख्या में कमी देखी जाती है।
      2. यदि केवल 250 या उससे कम परिपक्व सदस्य शेष हो ।
      3. 20 वर्षों में 20% प्रजाति के विलुप्त होने की आशंका हो ।
      4. प्रजाति की जनसंख्या 2500 से कम हो और 5 वर्षों के अंदर 20% कमी होने की संभावना हो ।
        • भारत के प्रमुख संकटग्रस्त प्रजाति- सॉफिश, संगाई हिरण, शेर जैसी पूँछवाला बंदर, नीलगिरी ताहर, सुनहरा लंगूर, हम तेंदुआ, गंगा डॉल्फिन, लाल पाण्डा, पैंगोलीन आदि ।
    5. सुभेद्य (Vulnerable or VU)- इसमें ऐसे प्रजाति को रखा जाता है जो निकट भविष्य में वनों में संकटग्रस्त हो जाएंगे। इस श्रेणी के मापदण्ड निम्न हैं-
      1. प्रजाति की संख्या में 10 वर्षों में 50% से अधिक की कमी दर्ज की गई हो । 
      2. प्रजातियों की जनसंख्या 10,000 से कम हो और 10 वर्षों में 10% की कमी आ रही हो ।
      3. केवल 1000 या उससे कम परिपक्व सदस्यों की संख्या शेष हो ।
        • प्रमुख भारतीय प्रजाति जो सुभेद्य की श्रेणी में हैं- तेंदुआ, एक सींग वाला गैंडा, चीता, चार सींग वाला मृग, भारतीय बाइसन, Dugong ( समुद्री गाय ), स्लोथ भालू
    6. निकट संकट (Near Threatened or NT)- इसके अंतर्गत वे प्रजाति आते हैं जो निकट भविष्य में संकटग्रस्त (EN) हो सकते है।
    7. संकट मुक्त (Least Concern or LC ) - ऐसे प्रजाति जो विस्तृत क्षेत्र में पाये जाते हैं तथा जिन्हें कोई विशेष खतरा नहीं है, संकट मुक्त श्रेणी में आते हैं।
    8. ऑकड़ों का अभाव (Data Deficient )- जब प्रजाति आवास तथा जनसंख्या का सही आकलन नहीं हो पाता है तो ऐसे प्रजाति IUCN इस श्रेणी में रखता है।
    9. अनाकलित (Not Evaluted)

जैव विविधता से संबंधित प्रमुख कानून

1. रामसर आर्द्रभूमि संधि (1971)
  • आर्द्रभूमि के जैव विविधता को संरक्षण हेतु 1971 में ईरान के रामसर एक सम्मेलन हुआ और शहर के नाम पर ही इस सम्मेलन को रामसर सम्मेलन कहा जाने लगा। इस सम्मेलन के समझौतों को 1975 में लागू किया गया और भारत 1982 में इस समझौते में शामिल हुआ।
  • रामसर समझौता या संधि के कार्यान्वयन हेतु भारत सरकार ने 1985-86 के दौरान राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम चलाया। वर्त्तमान में भारत के 115 आर्द्रभूमि में से 92 आर्द्रभूमि रामसर संधि के अंतर्गत शामिल है।
2. कार्टाजेना जैव सुरक्षा प्रोटोकॉल (2000)
  • जैव विविधता संरक्षण का यह समझौता कोलंबिया के कार्टाजेना शहर में 29 जनवरी 2000 को सम्पन्न हुआ तथा समझौते की शर्तों को 11 सितंबर 2003 को लागू कया गया।
  • इस संधि के तहत ऐसे जैनेटिक बीज या पशु को प्रतिबंधित करना शामिल है जो पर्यावरण को हानि पहुँचा सकता है। 
3. नागोया प्रोटोकॉल (2010)
  • नागोय सम्मेलन वर्ष 2010 में जापान के नगोया शहर में हुआ था। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य था - आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से वाले लाभों के स्वस्थ एवं समान बँटवारा तथा जंगल, कोरलरीफ और जैव विविधता का सुरक्षा । 
  • भारत भी इस सम्मेलन में शामिल है।
4. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम (1972)
  • 1972 में स्कॉट होम सम्मेलन के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु भारत सरकार यह कानून पास किया जिसका मुख्य उद्देश्य था- वन्य जीव की रक्षा, तस्करी तथा अवैध शिकार से बचाव एवं अवैध व्यापार पर रोक लगाना। इसी अधिनियम के तहत सलाहकारी निकाय ‘वन्य जीव सलाहकार बोर्ड' स्थापित किया गया जो राज्य एवं केन्द्रशासित प्रदेशों को राष्ट्रीय उद्यान, अभ्यारण्य की पहचान करने में मदद करता है।
5. राष्ट्रीय वन्य जीव कार्य योजना (1983)
  • भारत में प्रथम राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना 1983 में अपनाई गई जिसे आगे चलकर संशोधित किया गया। राष्ट्रीय वन्य जीव कार्य योजना का मुख्य उद्देश्य है-
    1. राष्ट्रीय वन्य जीव कार्यक्रम से अन्य संबंधित कार्यक्रम को एकीकृत करना ।
    2. वन्यजीव के अवैध शिकार तथा व्यापार पर रोक लगाना ।
    3. संकटपन्न जैव विविधता की पहचान कर उसे संरक्षित करना ।
    4. संरक्षित क्षेत्र में वृद्धि कर उसका वैज्ञानिक प्रबंधन करना ।
6. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (1986)
  • संसद द्वारा 23 मई, 1986 को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम पारित किया गया। इसका भी संदर्भ 1972 के स्टॉक होम पृथ्वी सम्मेलन से था। पर्यावरण संरक्षण के अलावे प्रदूषण के लिए भी यह एक सशक्त एवं व्यापक अधिनियम है।
7. पशु क्रूरता अधिनियम (1960)
  • पशुओं पर हो रही क्रूरता रोकने के लिए यह अधिनियम पारित किया गया। इस अधनियम के तहत पशुओं के पंजीकरण, जन्मदर नियंत्रण, परिवहन के लिए पशुओं के उपयोग संबंधि प्रावधान, कसाईघर संबंधी प्रावधान की व्याख्या की गई है। इसी अधिनियम में पशुओं को सर्कस से मुक्त कराने का प्रावधान है।
8. जैव विविधता अधिनियम (2002)
  • जैव विविधता के संरक्षण के लिए भारतीय संसद द्वारा वर्ष 2002 में इसे पारित किया गया, जिसके तहत तीन कार्यकारी इकाई का गठन किया गया।
    1. राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (चेन्नई)
    2. राज्य जैव विविधता बोर्ड
    3. जैव विविधता प्रबंधन समितियाँ ।
9. राष्ट्रीय वन नीति (1988)
  • भारत में पहली बार 1894 में ही गया। नये सिरे से राष्ट्रीय वन नीति 1988 में का कम से कम एक तिहाई क्षेत्रफल वनों लागू • किया गया था पुनः आजादी के बाद 1952 में इसमें संशोधन किया बनाई गई। इस नीति में यह लक्ष्य बनाया गया कि देश की कुल क्षेत्रफल एवं वृक्षों से अच्छादित होनी चाहिए जिसमें पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में यह दो तिहाई से कम नहीं होना चाहिए।
  • पर्यावरण, वन, जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 1988 के राष्ट्रीय वन नीति को प्रतिस्थापित कर नई वन नीति (2016) लागू करने हेतु जनता से सुझाव आमंत्रित किये है।

भारत के प्रमुख पर्यावरणीय संगठन

1. पर्यावरण शिक्षा केन्द्र (Centre for Environment Education or CEE)
  • इसकी स्थापना वर्ष 1984 में हुआ था। इसका मुख्यालय अहमदाबाद में स्थित है। यह केन्द्र पर्यावरण के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देता है। पर्यावरण शिक्षा केन्द्र भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अन्तर्गत आता है।
2. सलीम अली पक्षी विज्ञान और प्राकृतिक इतिहास केन्द्र (Salim Ali Centre for Ornithology and Natural History)
  • यह केन्द्र पक्षियों के संरक्षण हेतु प्रतिबद्ध है साथ ही यह जैव विविधता संरक्षण के लिए आवश्यक तकनीकी एवं वैज्ञानिक सहायता प्रदान करता है।
  • भारत के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अन्तर्गत इसकी स्थापना 5 जून, 1990 को कोयम्बटूर किया गया।
3. भारतीय वन्य जीव संस्थान (Wildlife Institute of India or WII)
  • यह संस्था भारत के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्था है। इसकी स्थापना 1982 में हुई तथा इसका मुख्यालय उत्तराखण्ड के देहरादून में स्थित है।
  • यह संस्था वन्यजीव अनुसंधान एवं प्रबंधन के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम तथा अकादमिक कोर्स का संचालन करता है।
4. भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India-FSI)
  • भारत सरकार द्वारा 1965 में शुरू किये गये 'प्री इन्वेस्टमेंट सर्वे ऑफ फॉरेस्ट रिसोर्सेस' के स्थान पर 1981 में भारतीय वन सर्वेक्षण का गठन किया गया। यह संगठन भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत आता है। इसका मुख्यालय उत्तराखंड के देहरादून में स्थित है। यह संस्था नियमित अंतराल में देश के वन संसाधनों के मूल्यांकन का कार्य करता है।
5. भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (Botanical Survey of India or BSI)
  • इसकी स्थापना सर्वप्रथम 1890 में हुई थी । पुनः भारत सरकार द्वारा 29 मार्च, 1954 को इसका नये सिरे से पुर्नगठन किया। इसका मुख्यालय कोलकाता में स्थित है।
  • भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन सर्वेक्षण, प्रलेखन और संरक्षण के माध्यम से देश के वन्य पादप संसाधनों संबंधी वर्गिकी और पुष्पण अध्ययन करने के लिए एक शीर्ष अनुसंधान संगठन है।
6. भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (Zoological Survey of India - ZSI )
  • इस संस्था की स्थापना 1 यह संस्था भी पर्यावलाई, 1916 को की गई थी। इसका मुख्यालय अलीनगर (कोलकाता) में स्थित है तथा वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन है।
  • यह संस्था का उद्देश्य, प्राकृतिक रूप से अत्यधिक महत्वपूर्ण जानवरों के विषय में सर्वे, अन्वेषण एवं अनुसंधान द्वारा जानकारी इकट्ठा करना है। इस संस्था द्वारा 'भारत की प्राणिजात' नामक पत्रिका का प्रकाशन होता है।
7. CPR - पर्यावरण शिक्षा केन्द्र
  • इसकी स्थापना पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार तथा सी. पी. रामास्वामी अय्यर फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। यह संस्था दक्षिण भारत में पर्यावरण शिक्षा के लिए किये जा रहे प्रयास में अग्रणी केन्द्र है और अधिक से अधिक लोगों तक जागरूकता एवं पर्यावरण हितों को बताने के लिए कई कार्यक्रम चलाता है।
  • यह संस्था चेन्नई में स्थित है।
8. Centre for Science and Environment (CSE)
  • CSE एक गैर-सरकारी संगठन है जिसकी की स्थापना 1980 अनिल कुमार अग्रवाल द्वारा नई दिल्ली में की गई थी।
  • इस संस्था का मुख्य उद्देश्य है पर्यावरण और विकास के संबंधों का अध्ययन, अनुसंधान और मूल्यांकन कर सतत् विकास के प्रति लोगों में चेतना जागृत करना । प्रसिद्ध पत्रिका 'डाउन टू अर्थ' का प्रकाशन इसी संस्था द्वारा किया जाता है।
9. बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS)
  • BNHS की स्थापना 15 सितंबर 1883 को बम्बई में आठ प्रकृतिवादियों द्वारा किया गया था। जिनमें आत्माराम पांडुरंग भी शामिल थे।
  • इस संगठन ने भारत में जैव विविधता एवं पर्यावरण संरक्षण के लए अनुसंधान कार्य करने वाला सबसे बड़ा गैर सरकारी संगठन है। यह बॉम्बे नचुरल हिस्ट्री सोसाइटी नाम से एक जर्नल तथा हॉर्नबिल नामक मैग्जीन का प्रकाशन करता है। इस संगठन का लोगों हॉर्नबिल पक्षी है।
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