मराठा साम्राज्य | मध्यकालीन भारत का इतिहास

General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | मराठा साम्राज्य
मराठा के पूर्वज मेवाड़ के सिसोदिया वंश के शासक लोग हुआ करते थे। सिसोदिया वंश के शासक अपने आप को सूर्यवंशी कहा करता था ।
मराठो के उदय के कई सारे कारण थे जिसमें जदुनाथ सरकार, एम०जी राणडे, सरदेसाई जैसे इतिहासकारो का मानना है कि मराठा साम्रज्य का उदय औरंगजेब के हिन्दु विरोधी नीति के कारण हुआ ।
ग्रांट डफ नामक विद्धान ने मराठो के उत्पति को आकस्मिक अगिनकाण्ड की भाँति बताया है ।
मराठा साम्रज्य के संस्थापक के रूप में शिवाजी का विवरण देखने को मिलता है | शिवाजी का जन्म अप्रैल 1627 ई0 में महाराष्ट्र के पूणे के शिवनेर दूर्ग मे हुआ था। इनके पिता शाहजी भोसलें जबकि माता जीजा बाई थी कालांतर में शाहजी भोंसले ने तुकाबाई मोहित से विवाह किया । इस प्रकार तुकबाई माहिते शिवाजी के सौतेली माँ हुई। शाहजी भोसले अपनी उपेक्षित पत्नी जीजाबाई तथा शिवाजी को पूना का जागीर सौंप कर खुद बीजापूर के सुल्तान के अधीन नौकरी कर लिया इस प्रकार शिवाजी को अपने पिता शाहजी भोंसले से पुना की जागीर प्राप्त हुआ। शिवाजी के संरक्षक दादाजी कोंडदेव थे इन्हीं के दिशा-निर्देशन में शिवाजी ने हिन्दु धर्म तथा हिदुत्व की रक्षा की शपथ ली । दादाजी कोंडदेब के दिशा निदेर्शन में ही शिवाजी मात्र 18 वर्ष की उम्र में 1645 ई. तक राजगढ, कोण्डाना, तोरण जैसे किला को जीतकर अपने आकर्षक व्यक्तित्व का परिचय दिया । यह भी मराठा साम्म्रज्य के उदय का कारण बना। दादाजी कोंडदेव को शिवाजी का राजनीतिक गुरू माना जाता है इनका निधन 1647 ई में हो गया। शिवाजी के अध्यात्मिक गुरू गुरूरामदास थे इन्होने दासबोध नामक ग्रंथ की रचना किया है। रामदास महाराष्ट के भक्ति अदोलन के एक प्रमुख संत हुआ करते थे। शिवाजी का विवाह मात्र 13 वर्ष की अवस्था में 1640 ई. में साईबाई निम्बालकर के साथ हुआ ।
शिवाजी में 1656 ई. में रायगढ़ को अपनी राजधनी बनाया | और शासन करना शुरू किया शिवाजी की बढ़ रही शक्तियों को कुचलने हेतू बीजापूर के सुल्तान ने 1659 ई में अफजल खाँ को भेजा। लेकिन शिवाजी ने अफजल खाँ की हत्या कर दी इससे शिवाजी का मान-सम्मान और प्रतिष्ठा काफी बढ़ा। 1660 ई. शिवाजी के समकालीन मुगल बदशाह औरंगजेब ने शिवाजी की बढ़ रही शक्तियों के कुचलने हेतू शाइस्ता खाँ को भेजा । शाइस्ता खाँ शिवाजी को पराजित नहीं कर सका । शाइस्ता खाँ येन-केन-प्राकारेण शिवाजी से अपना जान बचाकर भागा तत्पश्चात् औरंगजेब ने शिवाजी को घेरने हेतु जयसिंह को भेजा ।
जयसिंह ने शिवाजी के राज्य को चारों ओर घेर लिया। तत्पश्चात् शिवाजी और जयसिंह के बीच 1665 ई. में पुरंदर की संधि हुई । इस संधि के तहत् शिवजी अपने 35 किलों में से 23 किला मुगलों को सौंप दिया। साथ ही साथ इस संधि के तहत् शिवाजी मुगल राजदरबार में उपस्थित होने के शर्त के तहत् मई 1666 ई. में शिवाजी मुगलों के आगरा दरवार में उपस्थित हुए। लेकिन जब शिवाजी को मुगल राजदरबार में उचित सम्मान नहीं मिला तत्पश्चात् वे औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह कर दिया । शिवाजी के विद्रोह के पश्चात् उन्हें कैद कर आगरा के जयपुर भवन में रखा गया। लेकिन शिवाजी तुरंत षड्यंत्र के तहत् अगस्त 1666 ई. में जयपुर के भवन से भागने में सफल हुआ ।
शिवाजी ने मुगलों के मुख्य व्यापारिक केंद्र सुरत को दो बार 1664 तथा 1670 में लुटा । शिवाजी से प्रभावित होकर औरंगजेब शिवाजी के शासनकाल के दौरान उन्हें "राजा" की उपाधि प्रदान की। शिवाजी के शासनकाल के दौरान उन्हें सहयोग देने हेतू 8 मंत्रियों का एक परिषद था जसे अष्टप्रधान कहा जाता था। जो निम्न है-
- पेशवा- प्रधानमंत्री को पेशवा कहा जाता था । यह सबसे महत्वपूर्ण पद था ।
- सर-ए-नौबतः - सेनापति को कहा जाता था ।
- अमात्यः- राजस्व मंत्री या मंत्री को कहा जाता था ।
- सुमन्तः - विदेश मंत्री को कहा जाता था ।
- वाकयानवीस:- गुप्तचर को कहा जाता था ।
- चिटनिस :- पत्र को आदान-प्रदान करने वाला ।
- पंडितराव :- धार्मिक एवं दान विभाग प्रमुख ।
- न्यायधिशः - न्यायिक कार्य करने वाला ।
- शासन-प्रशासन करते हुए अंततः 1680 ई. में शिवाजी का निधन हुआ उनके उत्तराधिकारी के रूप में उनके पुत्र शम्भा जी बना।
- शिवाजी ने अपना पहला राजनीतिक अभियान 1643 ई. में सिंहगढ़ के किला का किया। वही शिवाजी के अंतिम राजनीतिक अभियान 1676-78 के दौरान कर्नाटक का अभियान रहा है । इस अभियान के अंतर्गत शिवाजी ने 1678 ई. में जिंजी के किला का अभियान किया । यहाँ का किलादार अब्दुल्ला हब्शी था । इस अभियान के पश्चात् शिवाजी बीमार रहने लगें और अंततः 1680 ई. में "ज्वर (बुखार)" से उनका निधन हो गया। शिवाजी की सात पत्नी थी उनमें से पुतलीबाई शिवाजी के निधन के पश्चात् सती हो गयीं
शिवाजी के उत्तराधिकारी
- शिवाजी के उत्तराधिकरी के रूप में उसके पुत्र शम्भाजी का विवरण देखने को मिलता है। उन्होनें उज्जैन के प्रसिद्ध विद्वान कवि कलश को अपना सलाहकार बनाया । इनका मुगलों के साथ हमेशा संघर्ष होते रहा था । अंततः 1689 ई. में मुगल सेनापति मर्खरम खाँ ने शम्भाजी और कवि कलश की हत्या कर दी । शम्भाजी के उत्तराधिकारी के रूप में उसके बड़े भाई राजाराम का विवरण देखने को मिलता है। इन्होनें अपनी द्वितीय राजधानी सतारा को बनाया । मुगलों से संघर्ष करते हुए 1700 ई. में मारे गए। इनका उत्तराधिकारी इनका अल्प वयस्क पुत्र शिवाजी द्वितीय बना। शिवाजी द्वितीय की माता ताराबाई थी जो कि मराठा साम्राज्य की वास्तविक संरक्षिका शिवाजी द्वितीय के शासनकाल के दौरान बनी रही थी ।1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् मुगल बादशाह बहादुरशाह प्रथम वनें इन्होनें शम्भाजी के पुत्र साहुजी को मुगल कैद से छोड़ दिया । तत्पश्चात् साहुजी महाराष्ट्र लौटे। साहुजी ने ताराबाई से अपने अधिकार की माँग की। इसी संदर्भ में 1707 ई. ताराबाई और साहुजी के बीच खेड़ा का युद्ध हुआ । इस युद्ध में बालाजी विश्वनाथ के साथ देने के कारण साहुजी की जीत हुई तत्पश्चात् साहुजी 1708 ई. में सतारा में अपना राज्याभिषेक करवाया और छत्रपति की उपाधि धारण की ।साहुजी ने अपना पेशवा बालाजी विश्वनाथ को बनाया। पेशवा का पद वंशानुगत था। पेशवा लोग पुणे में रहा करते थें । बालाजी विश्वनाथ को मराठा साम्राज्य का द्वितीय संस्थापक माना जाता है।
पेशवा काल (1713-1720)
- बालाजी विश्वनाथ को प्रथम पेशवा माना जाता है । इनका शासनकाल 1713-1720 है। इनके निधन के पश्चात् अगले पेशवा बाजीराव प्रथम बनें हैं। इनका शासनकाल 1720-40 है।
बालाजी विश्वनाथ (1713 - 1720)
- बालाजी विश्वनाथ (1713-1720) मराठा साम्राज्य के पहले पेशवा थे, जिन्होंने शाहू को मराठा शासक के रूप में स्थापित करने और गृहयुद्ध को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, मुगल बादशाह से चौथ और सरदेशमुखी वसूलने का अधिकार प्राप्त किया, और पेशवा के पद को वंशानुगत बनाया, जिससे मराठा शक्ति की नींव रखी गई। उनके पुत्र बाजीराव प्रथम उनके उत्तराधिकारी बने।
बाजीराव प्रथम (1720-40)
- ये अपने शासनकाल के दौरान कुल 29 युद्ध लड़े। इन्हें रिचर्ड टेम्पल नामक विद्वान ने लड़ाकू पेश्वा का उपाधि प्रदान किया। मस्तानी नामक मुस्लिम महिला के साथ संबंध होने के कारण यह काफी अधिक चर्चा में रहा था । 1728 ई. में इनका संघर्ष हैदराबाद के निजाम के साथ हुआ था । इस संघर्ष को पालखेड़ा के युद्ध के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में बाजीराव प्रथम की जीत हुई । इस युद्ध की समाप्ति "मुंशी शिवगाँव की संधि" के तहत् हुआ है। ये दिल्ली के उपर आक्रमण करने वाला प्रथम पेशवा था । इन्होनें 1737 ई. में दिल्ली पर आक्रमण किया उस समय मुगल बादशाह मुहम्मदशाह रंगीला था । जो दिल्ली छोड़ने को तैयार हो गया । इन्होनें 1739 ई. में पुर्तगालियों से वसीन का क्षेत्र छीन लिया। इनका निधन 1740 ई. में हो गया ।
बालाजी बाजीराव (1740-61)
- इन्हें भारतीय इतिहास में नाना साहब के नाम से जाना जाता है। इनके शासनकाल के दौरान 1749 ई. में मराठा छत्रपति साहुजी का निधन हो गया । इन्हीं के शासनकाल के दौरान 1750 ई. में संगोला की संधि हुई। यह संधि मराठा पेशवा तथा छत्रपति के बीच हुआ । इस संधि के तहत् छत्रपति की सारी शक्तियाँ मराठा पेशवा ने अपने में समेकित कर लिया। इनके शासनकाल में पानीपत का तृतीय युद्ध हुआ ।
पानीपत का तृतीय युद्ध
- यह युद्ध 1761 ई. में मराठों और अफगानों के बीच हुआ। इस युद्ध में मराठों का नेतृत्व सदाशिव राव भाऊ और विश्वास राव भाऊ ने किया था । ये दोनों युद्ध लड़ते हुए हुए मारे गए। इस युद्ध में अफगानों का नेतृत्व अहमदशाह अब्दाली ने किया। इस युद्ध में मराठों की हार हुई। इस युद्ध के हार को ना सह पाने के कारण बालाजी बाजीराव का निधन 1761 ई. में हो गया ।बालाजी बाजीराव का उत्तराधिकारी माधव राव ( 1761 - 72 ) बना। इन्होनें मराठों की खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस लौटाने का प्रयास किया । इन्होनें मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय को दिल्ली की गद्दी पर बैठाया । अचानक 1772 ई. में TV नामक बिमारी के कारण इनका निधन हो गया। माधवराव का उत्तराधिकारी उसका भाई नारायण राव बना । नारायण राव की हत्या उनके चाचा रघुनाथ राव ने कर दी और खुद को पेशवा घोषित किया। रघुनाथ राव के पश्चात् अगले पेशवा नारायण राव के पुत्र माधव नारायण राव द्वितीय बनें जो अल्प वयस्क था। इनके शासनकाल के दौरान बारह भाई सभा परिषद नामक संस्था शासन प्रशासन को देखा करती थी। 12 भाई सभा परिषद में दो महत्वपूर्ण सदस्य नाना फडनवीश और महादजी सिंधिया थें। नाना फडनवीश का वास्तविक नाम बालाजी जर्नादन भानू था । इन्हें ग्रांड टफ नामक विद्वान ने मराठों का मैक्यावेली कहकर पुकारा है। माधव नारायण राव द्वितीय के बाद के पश्चात् अगले पेशवा बाजीराव द्वितीय बनें हैं।
बाजीराव द्वितीय
- यह अंतिम पेशवा था । बाजीराव द्वितीय अंग्रेजो की मदद से पेशवा बना था । सहायक संधि को स्वीकार करने वाला प्रथम पेशवा बाजीराव द्वितीय था। मराठों के पतन में सर्वाधिक योगदान बाजीराव द्वितीय का ही रहा है। इनके शासनकाल के दौरान द्वितीय और तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध हुआ है। वहीं प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध माधवनारायण राव द्वितीय के शासनकाल के दौरान हुआ था । तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध के दौरान अंग्रेजी कंपनी ने मराठा पेशवा पद को 1818 ई. में समाप्त कर दिया तथा बाजीराव द्वितीय को पेंशन देकर कानपुर के निकट विदुर भेज दिया । यहीं 1853 ई. में बाजीराव द्वितीय का निधन हो गया। इनका अपना कोई पुत्र नहीं था लेकिन इन्होनें एक पुत्र गोद लिया था उसका नाम घोंदू पंत था । इन्हें भारतीय इतिहास में नाना साहेब के नाम से जाना जाता है। इनके पिता बाजीराव द्वितीय के निधन के पश्चात् अंग्रेजी सरकार ने पेंसन देना बंद कर दिया जिसकी पैरवी इन्होनें अपने सलाहकार को इंग्लैंड भेजकर करवाया। इसके बावजूद अंग्रेजी सरकार नाना साहेब को पेंसन देने से इंकार कर दिया। जिस कारण नाना साहेब 1857 के विद्रोह में कानपूर से भाग लिए और जब इनकी हार होने लगीं तो ये नेपाल भाग गये । उसके पश्चात् इनका कोई खबर नहीं मिली ।
आंग्ल मराठा युद्ध
- कुल मिलाकर भारतीय इतिहास में तीन आंग्ल-मराठा युद्ध हुए हैं।