झारखण्ड की चित्रकला व शिल्पकला | झारखण्ड सामान्य ज्ञान

झारखण्ड की चित्रकला व शिल्पकला
> चित्रकला का नाम
> जादोपटिया चित्रकला
> विशेषता
> जादो (चित्रकार) एवं पटिया (कागज या कपड़ा के छोटे-छोटे टुकड़े) को जोड़कर बनाया जाने वाला चित्रफलक है।
> यह चित्रकारी मुख्यतः संथालों में प्रचलित है ।
> इस चित्रकला में कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों को जोड़कर निर्मित 15-20 फीट चौड़े पटों पर चित्रकारी की जाती है। प्रत्येक पट पर 4 से 16 तक चित्र बनाये जाते हैं।
> इसमें चित्रकारी हेतु मुख्य रूप से लाल, हरा, पीला, भूरा व काले रंगों का प्रयोग होता है।
> इन चित्रों की रचना करने वाले को संथाली भाषा में जादो कहा जाता है।
> इसमें बाघ देवता और जीवन के बाद के दृश्यों का चित्रण किया जाता है।
> यह चित्रकला दुमका जिले में अत्यंत प्रसिद्ध है।
> चित्रकला का नाम
> सोहराय चित्रकला
> विशेषता
> यह चित्रकारी सोहराय पर्व से जुड़ी है।
> यह चित्रकारी वर्षा ऋतु के बाद घरों की लिपाई-पुताई से शुरू होता है।
> इस चित्रकारी में कला के देवता प्रजापिता या पशुपति का चित्रण मिलता है तथा पशुपति का सांढ़ की पीठ पर खड़ा चित्रण किया जाता है।
> 'मंझू सोहराय' तथा 'कुर्मी सोहराय' इस चित्रकला की दो प्रमुख शैलियाँ हैं।
> यह चित्रकला हजारीबाग जिले में अत्यंत प्रसिद्ध है।
> सोहराय व कोहबर चित्रकला को 2020 में जीआई टैग (भौगोलिक संकेतक) प्रदान किया गया है। यह झारखण्ड में किसी भी श्रेणी में प्राप्त होने वाला पहला जीआई टैग है। इसके लिए सोहराय कला विकास सहयोगी समिति, हजारीबाग द्वारा आवेदन दिया गया था।
> चित्रकला का नाम
> कोहबर चित्रकला
> विशेषता
> कोहबर का सामान्य अर्थ 'गुफा में विवाहित जोड़ा' होता है।
> विवाहित महिला द्वारा अपने पति के घर कोहबर कला का चित्रण किया जाता है।
> इसमें घर-आंगन में विभिन्न ज्यामितीय आकृतियों में फूल-पत्ती, पेड़-पौधे व नर-नारी का चित्रण किया जाता है।
> यह चित्रकारी मुख्यतः बिरहोर जनजाति में प्रचलित है।
> इसमें सिकी (देवी) का चित्रण मिलता है।
> कोहबर चित्रकला को 2020 में जीआई टैग प्रदान किया गया है।
> चित्रकला का नाम
> गंजू चित्रकला
> विशेषता
> इस कला में पशुओं, वन्य तथा पालतू जानवरों एवं वनस्पतियों की तस्वीरें बनाई जाती हैं।
> इस चित्रकला के माध्यम से संकटग्रस्त जानवरों को रीति-रिवाजों में दर्शाया जाता है।
> चित्रकला का नाम
> पईत्कर चित्रकला
> विशेषता
> यह चित्रकारी अमादुबी (सिंहभूम) गाँव में अत्यंत प्रसिद्ध है, जिसके कारण इस गाँव को पईत्कर का गाँव भी कहा जाता है।
> इसे झारखण्ड का स्क्रॉल चित्रकला भी कहा जाता है। यह प्राचीन काल से झारखण्ड में विद्यमान है। माना जाता है कि इसकी शुरूआत सबर जनजाति द्वारा की गई थी। इसे भारत का सबसे पुराना आदिवासी चित्रकला माना जाता है।
> यह चित्रकला गरूड़ पुराण में भी मिलती है।
> झारखण्ड के अतिरिक्त यह चित्रकला बिहार, उड़ीसा तथा पश्चिम बंगाल में भी लोकप्रिय है।
> इस चित्रकला के माध्यम से जनजातियों द्वारा विभिन्न कहानियों तथा स्थानीय रीति का वर्णन किया जाता है ।
> इसके माध्यम से जीवन के बाद होने वाली घटनाओं का वर्णन किया जाता है।
> चित्रकला का नाम
> राना, तेली एवं प्रजापति चित्रकला
> विशेषता
> इन तीन चित्रकलाओं का प्रयोग उक्त तीन उपजातियों द्वारा किया जाता है।
> इस चित्रकला में पशुपति (भगवान शिव) को पशुओं एवं पेड़-पौधों के देवता रूप में प्रदर्शित किया जाता है।
> इस चित्रकला में धातु के तंतुओं का प्रयोग किया जाता है।
> कोहबर व सोहराय चित्रकला में अंतर
> शिल्पकला
> डोकरा कला
> डोकरा कला दस्तकारी की एक प्राचीन कला है जो झारखण्ड की संस्कृति का एक अहम हिस्सा है।
> यह भारत के साथ-साथ विदेशों में भी लोकप्रिय है।
> इसमें पुरानी मोम-कास्टिंग तकनीक का उपयोग करके अत्यंत सुंदर मूर्तियों का निर्माण किया जाता है।
> इस कला में मधुमक्खियों से प्राप्त मोम का प्रयोग किया जाता है।
> इस कला में तांबा, जस्ता, रांगा (टिन) आदि धातुओं के मिश्रण की ढलाई करके मूर्तियाँ, बर्तन व अन्य सामान बनाए जाते हैं ।
> इस कला का उपयोग करके निर्मित मूर्ति का सबसे प्राचीन उदाहरण मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त नृत्य करती हुई लड़की की प्रसिद्ध मूर्ति है।
> इस कला का संबंध मलार जाति से है।
> इसे घढ़वा कला भी कहा जाता है।
> वर्तमान समय में बाजार की अनुपलब्धता के कारण इस कला का अस्तित्व खतरे में है।