संसदीय समूह | भारत की राजव्यवस्था | UPSC

संसदीय समूह | भारत की राजव्यवस्था | UPSC


संसदीय समूह

समूह का औचित्य

एम.एन. कौल तथा एस.एल. शकधर ने भारतीय संसदीय समूह की व्याख्या बड़े अच्छे तरीके से निम्न प्रकार से की है:
विभिन्न संसदों के बीच संबंधों की स्थापना एवं विकास राष्ट्रीय संसदों की नियमित गतिविधियों का एक अंग रहा है। हालांकि अंतर-संसदीय संबंधों को बढ़ावा देना सांसदों के कार्य का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, हाल ही में इसमें एक बढ़ोतरी देखने को मिली है जिसका कारण है-आज के वैश्विक वातावरण में राष्ट्रों की परस्पर निर्भरता। यह जरूरी है कि सांसद लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए हाथ मिलाएं और दुनिया के समक्ष चुनौतियों को अवसरों में बदलने के लिए मिलकर काम करें जिससे उनके देशों में शांति और समृद्धि आए और पूरी दुनिया में भी। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों के सांसदों का इसीलिए एक फोरम है जहां वे अपने सभी समस्याओं पर चर्चा कर सकते हैं, उनका समाधान खोज सकते हैं। ऐसे मंच पर पुरानी एवं नयी पीढ़ी के सांसदों के बीच ही नहीं, बल्कि अलग-अलग संसदीय व्यवस्थाओं के सांसदों के बीच भी विचारों का आदान-प्रदान हो सकेगा और नये विचार निकल सकेंगे। निःसंदेह अंतर-सरकारी सम्मेलनों में भी इन समस्याओं पर चर्चा होती है लेकिन ये चर्चाएं उतनी खुली नहीं हो पातीं जैसा कि विधायकों के सम्मेलन में संभव हो पाता है।
अंतर संसदीय संबंध, इस प्रकार आज बड़े महत्व के हैं जबकि पूर्ण दुनिया वे समस्याओं से घिरी है जो समस्याएं आज किसी एक संसद के समक्ष हैं, वहीं कल किसी अन्य के समक्ष हो सकती है। इसलिए आवश्यकता है कि विभिन्न संसदों के बीच एक कड़ी बनी रहे। यह कड़ी भारत द्वारा विभिन्न विदेशी संसदों के साथ प्रतिनिधि मंडलों, शुभेच्छा दौरों, पत्राचार, दस्तावेजों आदि के आदान-प्रदान के द्वारा बनाए रखी जाती है। इस कार्य में भारतीय संसदीय समूह (Indian Parliamentary Group, IPG) एक माध्यम बनता है जो कि अंतरसंसदीय संघ के राष्ट्रीय समूह तथा राष्ट्रमंडलीय संसदीय संघ (CPA) की भारतीय शाखा के रूप भी कार्य करता है।

समूह का गठन

भारतीय संसदीय समूह (IPG) एक स्वायत निकाय है। इसकी स्थापना 1949 में संविधान सभा के एक प्रस्ताव के अनुपालन में हुई थी।
समूह की सदस्यता हर संसद सदस्य के लिए खुली है। भूतपूर्व सांसद भी इसके सहयोगी सदस्य हो सकते हैं। लेकिन सहयोगी या सम्बद्ध सदस्यों को सीमित अधिकार ही प्राप्त होते हैं। उन्हें आइपीयू और सीपीए के सम्मेलनों एवं बैठकों में प्रतिनिधित्व की पात्रता नहीं दी जाती, यात्रा - रियायतें भी नहीं मिलती, जो सीपीए की कुछ शाखाओं पर दी जाती हैं ।
लोकसभा अध्यक्ष समूह के पदेन अध्यक्ष होते हैं। लोकसभा के उपाध्यक्ष (डिप्टी स्पीकर) तथा राज्यसभा के उप-सभापति इस समूह के पदेन उपाध्यक्ष होते हैं। लोकसभा के महासचिव समूह के पदेन महासचिव होते हैं।

समूह के उद्देश्य

समूह के निम्नलिखित उद्देश्य हैं:
  1. संसद सदस्यों के बीच आपसी संपर्क बढ़ाना।
  2. सार्वजनिक महत्व के प्रश्नों का अध्ययन करना जो कि संसद में उठने वाले हैं, साथ ही संगोष्ठियों एवं उन्मुखीकरण पाठ्यक्रमों का आयोजन एवं समूह के सदस्यों के बीच सूचना निस्सरण के लिए दस्तावेजों का प्रकाशन |
  3. राजनीतिक, सुरक्षा संबंधी, आर्थिक, सामाजिक एवं शिक्षा संबंधी समस्याओं पर व्याख्यान आयोजित करना सांसदों एवं गणमान्य व्यक्तियों द्वारा ।
  4. विदेशी दौरों का आयोजन, इस उद्देश्य से कि अन्य देशों की संसदों के सदस्यों से सम्पर्क विकसित हो ।

समूह के कार्य

समूह द्वारा सम्पन्न किए जाने वाले कार्य एवं गतिविधियां निम्नवत् हैं:
  1. समूह भारत की संसद तथा विश्व की अन्य संसदों के बीच एक कड़ी का कार्य करता है। इस कड़ी को प्रतिनिधिमंडलों, शुभेच्छा मिशनों, पत्राचार एवं दस्तावेजों के आदान-प्रदान द्वारा बनाए रखा जाता है।
  2. समूह (क) अंतर संसदीय संघ के राष्ट्रीय समूह (IPU), तथा (ख) राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (CPA) की मुख्य शाखा के रूप में कार्य करता है।
  3. संसद सदस्यों का भारत दौरे पर आए विदेशी राज्याध्यक्षों का संबोधन एवं प्रमुख व्यक्तियों द्वारा वार्ताओं का आयोजन समूह करता है।
  4. सामयिक रुचि एवं महत्व के संसदीय विषयों पर संगोष्ठियों का समय-समय पर राष्ट्रीय एवं अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजन।
  5. समूह के सदस्य, जब विदेशी दौरों पर जाने वाले होते हैं. आईपीयू एवं सीपीए के राष्ट्रीय समूहों के सचिवों एवं सीपीए की शाखाओं के सचिवों को उनका परिचय भेजा जाता है। दौरे वाले देशों के भारतीय मिशनों को सहायता एवं शिष्टाचार के लिए समुचित रुप से सूचित किया जाता है।
  6. विदेश जाने वाले भारतीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल में उन्हीं सांसदों को सम्मिलित किया जाता है, जो प्रतिनिधिमंडल के गठन के छह माह पूर्व समूह के सदस्य बन चुके होते हैं।
  7. सदस्यों को सूचनाओं की अनवरत पहुंच के लिए हर तिमाही एक आईपीजी न्यूजलेटर का प्रकाशन किया जाता है। इसे हर सदस्य एवं सम्बद्ध सदस्य को भी नियमित रूप से भेजा जाता है।
  8. समूह के निर्णयानुसार सर्वोत्कृष्ट सांसद के लिए एक पुरस्कार का गठन 1995 में किया गया था, जो हर वर्ष प्रदान किया जाता है। पांच सदस्यों की एक समिति का गठन लोकसभा अध्यक्ष करते हैं, जो पुरस्कार के लिए नाम आमंत्रित एवं तय के करती है।
  9. द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने के लिए समूह संसदीय मित्रता समूहों का गठन। अन्य देशों की संसदों के साथ मिलकर करता है। मित्रता समूह के लक्ष्य एवं उद्देश्य राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक सम्यको का बनाए रखना होता है। साथ ही संसदीय गतिविधियों सूचनाओं एवं अनुभवों का आदान-प्रदान भी।

समूह एवं अंतर- संसदीय संघ (IPU)

आईपीयू एक अंतरर्राष्ट्रीय संगठन है संप्रभु राज्यों की संसदों का। वर्तमान में आईपीयू में 153 देशों की संसद शामिल हैं। इसका लक्ष्य दुनिया भर के लोगों के बीच शांति व सहयोग के लिए काम करना तथा दृढ़ प्रतिनिधिक संस्थाओं की स्थापना करना है। यह संपर्क, समन्वय तथा संसदों एवं सांसदों के बीच अनुभवों का साझा संभव बनाता है। सभी सदस्य देशों के बीच प्रतिनिधिक संस्थाओं के कामकाज के बारे में बेहतर ज्ञान एवं समय प्रदान करने में अपना योग देता है। यह सभी अंतरर्राष्ट्रीय महत्व के ज्वलंत मुद्दों पर अपने विचार अभिव्यक्त करता है ताकि संसदीय कार्रवाइयों का प्रभावी कार्यान्वयन किया जा सके। यह अंतरर्राष्ट्रीय संस्थाओं के कामकाजी मानकों एवं क्षमताओं में सुधार के उपाय भी सुझाता है।
समूह की सदस्यता के प्रमुख लाभ, जहां तक आईपीयू के राष्ट्रीय समूह के रूप में इसके कार्य करने की बात है, वे निम्नलिखित हैं:
  1. यह भारतीय संसदीय प्रतिनिधिमंडलों को आईपीयू के सदस्य देशों के संसद सदस्यों अथवा सांसदों से सम्पर्क बढ़ाने में सहयोग देता है।
  2. यह आयोजन विभिन्न देशों में समकालीन ५र्तनों एवं सुधारों के अध्ययन एवं समझ बढ़ाने का अ र प्रदान करता है।
  3. बाहरी देशों की यात्रा के दौरान यह सांसदों को उन सांसदों से मिलने-जुलने में मदद करता है। यही काम वह भारत दौरे पर आए सांसदों के लिए करता है।
  4. समूह के सदस्य अंतर-संसदीय सम्मेलनों में भारतीय प्रतिनिधि मंडल के सदस्य के रूप में विदेशों की यात्रा करने के लिए अर्ह (eligible) होते हैं।
हाल के अतीत में, समूह के सदस्य आईपीयू के विभिन्न निकायों में विभिन्न पद धारण करते रहे हैं, जैसे-आईपीयू की विभिन्न समितियों में पदाधिकारी, रैपर्टर प्रारूप समिति का अध्यक्ष आदि और इसी आधार से वे आइपीयू बैठकों में विभिन्न मुद्दों पर भारत का पक्ष रखते रहे हैं।

समूह एवं राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (CPA)

सीपीए 175 राष्ट्रस्तरीय, राज्यस्तरीय, प्रांतस्तरीय एवं क्षेत्रीय संसदों के लगभग 17,000 राष्ट्रमंडल सांसदों का संघ है। इसका लक्ष्य संवैधानिक विधायी, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था के बारे में ज्ञान एवं समझ को बढ़ाना है, विशेषकर राष्ट्रमंडल के देशों एवं उन देशों के बीच जिनका कि इनके साथ नजदीकी ऐतिहासिक एवं संसदीय सम्बद्धता है। इसका मिशन लोकतांत्रिक अभिशासन के बारे में जानकारी एवं समझ बढ़ाकर संसदीय लोकतंत्र को आगे ले जाना है। जानकार संसदीय समुदाय का निर्माण करके राष्ट्रमंडल की लोकतांत्रिक प्रतिबद्धताओं को गहरा करना तथा इसके सांसदों एवं विधायकों के बीच अधिकाधिक सहयोग बढ़ाना भी इसका उद्देश्य है।
इस समूह की सदस्यता के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं, भारत सीपीए की मुख्य शाखा के रूप में:
  1. सम्मेलन एवं संगोष्ठी: सदस्यता से अधिवेशनों एवं क्षेत्रीय सम्मेलनों, संगोष्ठियों, दौरों-भ्रमण तथा प्रतिनिधिमंडलों के आदान-प्रदान में सहभागिता का अवसर मिलता है।
  2. प्रकाशनः सभी सदस्यों को 'दि पार्लामेंटेरियन' त्रैमासिक तथा न्यूजलेटर 'फर्स्ट रीडिंग' प्रत्येक दूसरे माह प्राप्त होता है।
  3. सूचना: सीपीए सचिवालय के संसदीय सूचना एवं संदर्भ केन्द्र सदस्यों को संसदीय, संवैधानिक एवं राष्ट्रमंडल मुद्दों पर सूचनाएं प्रदान करता है।
  4. परिचय: सीपीए शाखाएं अन्य देशों/क्षेत्रों के भ्रमण के दौरान परिचयों का आयोजन करती हैं।
  5. संसदीय सुविधाएं: अन्य राष्ट्रमंडल देशों के भ्रमण के समय सदस्यों के प्रति संसदीय शिष्टाचार बरता जाता है, विशेषकर चर्चाओं एवं स्थानीय सदस्यों तक उनकी पहुंच बनाई जाती है।
  6. यात्रा सुविधाएं: कुछ शाखाएं अपने नामित सदस्यों के लिए प्रतिवर्ष राष्ट्रमंडल या अन्य देशों का अध्ययन-भ्रमण या दौरा आयोजित करती हैं - राजनीतिक एवं प्रक्रियात्मक विकास की स्थिति के तुलनात्मक अध्ययन के लिए।
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