कार्बनिक रसायन विज्ञान | कार्बनिक रसायन विज्ञान क्या है | कार्बनिक पदार्थ की परिभाषा

 कार्बनिक रसायन विज्ञान | कार्बनिक रसायन विज्ञान क्या है | कार्बनिक पदार्थ की परिभाषा


प्रारंभ में ऐसी मान्यता था की कार्बनिक यौगिक सिर्फ सजीव - स्त्रोतों से ही प्राप्त किया जा सकता है, इन्हें प्रयोगशाला में नहीं बनाया जा सकता है।


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  • प्रारंभ में ऐसी मान्यता था की कार्बनिक यौगिक सिर्फ सजीव - स्त्रोतों से ही प्राप्त किया जा सकता है, इन्हें प्रयोगशाला में नहीं बनाया जा सकता है। इस सिद्धान्त को जीवनशक्ति का सिद्धान्त (Vital force theory) कहा गया जिसके प्रतिपादक बर्जीलियस थे।
  • वोहलर ने जीवन शक्ति सिद्धान्त को गलत साबित कर दिया। उन्होंने प्रयोगशाला में अमोनियम सायनेट यौगिक को गर्म करके प्रथम कार्बनिक यौगिक - यूरिया का निर्माण किया ।
  • कार्बन को सार्वभौमिक तत्व कहा जाता है क्योंकि हमारे दैनिक जीवन की अधिकांश पदार्थ, दवाई, प्लास्टिक आदि में कार्बन अनिवार्य अवयव हैं।
  • कार्बन के परमाणु आपस में संयोग कर श्रृंखला (Chains) बना सकते हैं। कार्बन में उपस्थित इस गुण को श्रृखंलन गुण (Catenation Property) कहते हैं। श्रृंखलन गुण के कारण ही कार्बन अधिक से अधिक यौगिक बना सकता है। कार्बन इतना श्रृखंलन का गुण अन्य किसी तत्व में नहीं पाया जाता है।
  • कार्बन हमेशा अन्य तत्वों के साथ सहसंयोजी यौगिक ही बनाता है क्योंकि कार्बन के अंतिम कक्षा में 4 इलेक्ट्रॉनिक ग्रहण करना पड़ेगा या हिलियम जैसे स्थायी विन्यास प्राप्त करने हेतु 4 इलेक्ट्रॉन त्याग त्याग करना पड़ेगा। यह दोनों ही स्थिति असंभव है क्योंकि इसमें अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अतः कार्बन हमेशा इलेक्ट्रॉन की साझेदारी करता है। इसी गुण क कारण कार्बन को अद्वितीय तत्व कहा जाता है ।
  • कार्बन के चारो संयोजकता (इलेक्ट्रॉन) किस प्रकार व्यवस्थित रहते हैं इसकी जानकारी सबसे पहले वॉन्ट हॉफ तथा ले—बेल ने दिया। उन्होंने बतलाया कार्बन की चारों संयोजकता एक नियमित चतुष्फलक के चारो शीर्षों की ओर निर्देशित रहती है । यदि कार्बन के चारों संयोजकता को चार रेखा द्वारा सूचित किया जाए तो कार्बन के किन्हीं दो संयोजकता के बीच 109° 28' का कोण बनता।
  • कार्बनिक यौगिक में कार्बन का होना अनिवार्य है, इसके अलावे कार्बनिक यौगिक में हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, हैलोजन फॉस्फोरस, गंधक तथा कुछ धातु विद्यमान रहते हैं । कार्बनिक यौगिक मुख्य रूप से कार्बन तथा हाइड्रोजन के बने होते हैं। कार्बन तथा हाइड्रोजन से बने यौगिक को हाइड्रो कार्बन कहते हैं। हाइड्रोकार्बन दो प्रकार के होते हैं ।
  1. संतृप्त हाइड्रोकार्बन (Saturated Hydrocarbon)
    • वे हाइड्रोकार्बन जिनमें कार्बन की चारों संयोजकता एकल बंधन ( Single bund) द्वारा संतुष्ट रहता है। संतृप्त हाइड्रोकार्बन कहलाता है। संतृप्त हाइड्रोकार्बन को Alkane या फैराफीन भी कहा जाता है। संतृप्त हाइड्रोकार्बन का सामान्य सूत्र CnHzn+2 होता है।
      उदा०:- CH4 (मेथेन), C2H6 (एथेन), C3H8 (प्रोपेन)
  2. असंतृप्त हाइड्रोकार्बन (Unsaturated Hydrocarbons)
    • वे हाइड्रोकार्बन जिनमें कार्बन का चारों संयोजकता एकल-बंधन द्वारा संतुष्ट नहीं रहती है असंतृप्त हाइड्रोकार्बन कहलाता है। असंतृप्त में कार्बन परमाणु आपस में Double bond या Triple bond द्वारा जुड़े होते हैं। असंतृप्त हाइड्रोकार्बन दो प्रकार के होते हैं ।
      1. Alkene— वे असंतृप्त हाइड्रोकार्बन जिनमें दो कार्बन परमाणु के बीच द्विबंधन ( C = C) रहता है Akene कहलाता है। Akene का सामान्य सूत्र - CnHzn होता है।
        उदा०:- C2H4 (इथीन), C3H6 (प्रोपीन), C4H8 ( ब्यूटीन)
      2. Alkyne— वे असंतृप्त हाइड्रोकार्बन जिनमें दो कार्बन परमाणु के बीच त्रिबंधन (C = C) होते हैं Alkene कहलाता है | Alkyne का सामान्य सूत्र - CnHzn-2 होता है। 
        उदा०:- C2H2 (इथाइन), C3H4 (प्रोपाइन) C4H6 (ब्यूटाइन)
    ऐलिफैटिक कार्बनिक यौगिक:-
    • वैसे कार्बनिक यौगिक जिनके अणु में सभी कार्बनिक यौगिक एक खुली श्रृंखला में होती है ऐलिफैटिक कार्बनिक यौगिक कहलाते हैं। इसे एसाइक्लिक यौगिक भी कहते हैं।
    • Alkane, Alkene, Alkyne सभी ऐलीफैटिक कार्बनिक यौगिक के अंतर्गत आते हैं।
    ऐरोमैटिक कार्बनिक यौगिक
    • वैसे कार्बनिक यौगिक जिनके अणु में कार्बन परमाणु एक बंद वलय के रूप में रहते हैं ऐरोमैटिक कहलाते हैं।
      उदा० - बेंजीन, फिनॉल, एनीलीन आदि

क्रियाशील मूलक (Functional Group)
  • किसी कार्बनिक यौगिक में उपस्थित वह समूह जिसपर यौगिक का रसायनिक गुण निर्भर करता है क्रियाशील समूह कहलाता है ।
मजातीय श्रेणी (Homologous Series)
  • कार्बनिक यौगिक की वह श्रेणी जिसके सभी सदस्यों को एक सामान्य सूत्र द्वारा व्यक्त किया जा सकता है, जिनमें समान क्रियाशील समूह उपस्थित रहते हैं। जिसके किसी भी दो क्रमागत सदस्य के अणुसूत्र में सदा - CH2 का अंतर रहता है, सजातीय श्रेणी कहलाता है।
    उदा०— Alkane का सजातीय श्रेणी
सजातीय श्रेणी के गुण-
  1. सजातीय श्रेणी को एक ही सामान्य सूत्र द्वारा व्यक्त किया जा सकता है।
  2. सजातीय श्रेणी के किन्हीं दो क्रमागत अणुसूत्रों में CH2 का अंतर होता है।
  3. सजातीय श्रेणी के सभी यौगिक की बनाने की विधि प्रायः समान होता है।
  4. सजातीय श्रेणी के यौगिकों के रसायनिक गुण प्रायः समान होते हैं।
  5. सजातीय श्रेणी के यौगिक के भौतिक गुण (द्रवणांक, क्वथनांक, घनत्व) में क्रमबद्ध परिवर्तन होते रहता है। 
UPAC Nomenclature
  • Alkane का नामांकरण
    • Alkane संतृप्त हाइड्रोकार्बन हैं। Alkane श्रेणी के प्रथम चार सदस्य सामान्य नाम से जाने जाते हैं-
      CH4 (मेथेन). C2H6 (एथेन), C3H8 (प्रोपेन), C4H10 (ब्यूटेन ) 
    • Alkane में चार सदस्य के बाद वाले कार्बनिक यौगिक के नामकरण उसमें उपस्थित कार्बन परमाणु की संख्या को ग्रीक संख्याओं के नाम के अंत में एन (ane) जोड़कर किया जाता है ।
      उदा०-
      1. C5H12
        • कार्बन परमाणु की संख्या 5 है। 5 को ग्रीक में पेंटा कहा जाता है अतः
          पेंटा + एन → पेंटेन 
          C5H12 - पेंटेन
      2. C6H14
        हेक्सा + एन → हेक्सेन (C6H14)
    • Alkane के अणु से एक हाइड्रोजन निकालने पर जो समूह आता है उसे एल्किल समूह कहते हैं। एल्किल समूह का नामकरण में संगत Alkane के नाम से एन हटाकर 'इल' जोड़ दिया जाता है-
    • लंबी श्रृंखला वाले कार्बन परमाणु का नामकरण जिससे पार्श्व श्रृंखला (Side Chain) जुड़ी रहती है।
    • उपर्युक्त यौगिक का IUPAC नाम लिखने के लिए पहले कार्बन परमाणु की संख्या गिनते हैं। कार्बन परमाणु के गिनने का क्रम उस सिरे से शुरू करना पड़ता है। जिस सिरे से पार्श्व श्रृंखला नीकट हो । उपर्युक्त कार्बनिक यौगिक को दो तरह से गिना जा सकता है। 
    • उपर्युक्त कार्बनिक यौगिक में कार्बन परमाणु की संख्या 6 है अतः यह कार्बनिक यौगिक 6 कार्बन के संतृप्त हाइड्रोकार्बन हेक्सेन के व्युत्पन्न है तथा यौगिक के तीसरे कार्बन पर मेथिल समूह (-CH3) जुड़ा है इसलिए उपर्युक्त कार्बनिक यौगिक का नाम - 3 - मेथिल हेक्सेन होगा।
बहुलीकरण (Polymerisation )
  • वह पदार्थ जो एक ही यौगिक (मोनोमर) के दो या दो से अधिक अणुओं के संयोग से बनते हैं बहुलक (Polymers) कहलाते हैं तथा इस घटना को बहुलीकरण कहते हैं।
  • बहुलक तीन प्रकार के होते हैं-
    1. प्राकृतिक बहुलक (Natural Polymers) - प्राकृतिक बहुलक पौधे तथा प्राणियों में उपलब्ध रहते हैं ।
      उदा०:- प्रोटीन, न्यूक्लीक एसीड, सेलुलोज, प्राकृतिक रबड़ प्राकृतिक बहुलक हैं।
    2. अर्द्ध-संश्लिष्ट बहुलक (Semisynthetic Polymers) - वे बहुलक जो प्राकृतिक बहुलक के रसायनिक रूपान्तरण द्वारा तैयार किये जाते हैं अर्द्ध-संश्लिष्ट रबड़ कहलाते हैं।
      उदा०- सेलुलोज डाइऐसीटेट, गन कॉटन (सेलुलोज, नाइट्रेट), बल्कनित रबड़ आदि ।
    3. संश्लिष्ट बहुलक (Synthetic Polymers) - ये बहुलक कृत्रिम तरीके से तैयार किये जाते हैं ।
प्रमुख बहुलक तथा उसके मोनोमर-
  1. पोलीथीन
    Monomer - एथीन
    • पोलीथीन का उपयोग प्रयोगशाला पात्र बनाने में घरेलू कार्यों में होता है ।
  2. टेफ्लॉन (पोलीटेट्रा फ्लोरोएथीन)
    Monmer - टेट्राफ्लोरो एथीन
    • टेफ्लॉन का उपयोग स्नेहक के रूप में विद्युतरोधी के रूप खाना बनाने वाला बर्त्तन निर्माण में होता है ।
  3. पोलीविनाइल क्लोराइड (PVC)
    Monomer - विनाईल क्लोराइड
    • PVC का उपयोग वैग बनाने में, चमड़े का कपड़ा बनाने में, बरसाती बनाने में किया जाता है।
  4. पॉलीप्रोपीन
    Monomer - प्रोपीन
    • पॉलीप्रोपीन का उपयोग कारपेटो, रस्सी, मछली के जाल बनाने में किया जाता है ।
  5. प्राकृतिक रबड़
    Monomer - आइसोप्रीन
    • प्राकृतिक रबड़ का प्रयोग चदरों, गेंदो जूतों के निर्माण में होता है वल्मीनीकृत रबड़ से गाड़ी के टायर बनाये जाते हैं ।
  6. संश्लिष्ट रबड़
    Moner - ब्यूटा - 1, 3 - डाईन
    • संश्लिष्ट रबड़ का प्रयोग प्राकृतिक रबड़ के विकल्प के रूप में होता है ।
  7. नियोप्रीन
    Monomer - क्लोरोप्रीन
    • नियोप्रीन का उपयोग विद्युतरोधी तार बनाने में होता है।
  8. नाइलॉन -66
    • नाइलॉन ६६, हेक्सा मैथीलीन डाइऐमीन तथा एपिटियक एसीड के संघनन से बनता है। (Nylon-f) एक संघनन बहुलक (Condensation polymer) है ।
  9. Nylon-6
    • Nylon-6 कैप्रोलैक्टम के बहुलीकरण से बनता है।
    • नॉयलॉन रेशा का उपयोग वस्त्र, कालीन रस्सी, टायर के निर्माण में होता है। जाने वाले समय हो सकता है कि नॉयलॉन मेटल का स्थान ले लें।
  10. पॉलिएस्टर
    • हस्थैलिक एसीड तथा एथीन ग्लाइकॉल के साथ संघनन से पॉलिएस्टर का निर्माण होता है।
  11. डैक्रॉन या टैरीलीन
    • डाइमिथाईल टैरीथैलेट तथा एथिलीन ग्लाकॉल के बहुलीकरण से डेक्रॉन या शलीन का निर्माण होता है।
    • डेक्रॉन या टेलीन का उपयोग कपड़े बनाने में लाया जाता है। ट्राउजर या स्कर्ट्स में स्थायी क्रीज टेरीलीन से ही बनायी जाती है।
  12. ऑरलॉन
    • इसे प्रोपीननीनाइट्राइल फाइबर कहा जाता है। नाइट्राइल के बहुलीकरण से ऑरलीन प्राप्त होता है। यह एक प्रकार का रेशा है जिससे कपड़े बनाये जाते हैं। 
  13. बैकेलाईट
    • अम्ल उत्प्रेरक की उपस्थिति में फिनॉल तथा फॉर्मल्टिाइड मिलकर बैकलाइट का निर्माण करते हैं।
    • बैकेलाइट उत्तम विद्युतरोधी है इसका इस्तेमाल बिजली के समान बनाने में होता है।

प्रमुख कार्बनिक यौगिक के गुण तथा उपयोग

1. मिथेन (CH4)
  • मीथेन एक रंगहीन तथा गंधहीन गैस इसका खोज सर्वप्रथम Alessandro Volta ने की थी तथा इसका नाम मीथेन जर्मन वैज्ञानिक विल्हेम वॉन हॉफमैन ने रखा ।
  • मिथेन की अणु की आकृति ट्रेट्राहेड्रॉन (चतुष्फलकीय) होती है जिनमें कार्बन तथा हाइड्रोजन के बीच का बंधन कोण 109°28' होता है । 
  • मेथेन गैस तलाबों के सुके जल, दलदली स्थानों (धान का खेत पर पायी जाती । यह दलदल भरे स्थानों में वनस्पति और अन्य जीवधारियों के क्षय के कारण बुलबुले के रूप में उत्पन्न होती है ।
  • मिथेन संतृप्त हाइड्रोकार्बन का प्रथम सदस्य है इसे सभी ऐलीफैटिक कार्बनिक यौगिक का जन्मदाता माना जाता है।
  • मिथेन को मार्श गैस के नाम से भी जाना जाता है।
  • औद्योगिक स्तर पर मीथेन - ऐलुमिनियम कर्बाइड पर जल की प्रतिक्रिया से बनाया जाता है ।
    Al4C3 + 12H2O → 3CH4 + 4 Al(OH)5
  • प्रयोगशाला में सोडियम ऐसीटेट को सोडालाइम के साथ गर्म करने पर मीथेन प्राप्त होता है।
  • मीथेन गैस का इस्तेमाल ईधन के रूप में होता है। प्राकृतिक गैस, गोबर गैस तथा बायो गैस जैसे ईधन का मुख्य घटक मीथेन की है।
2. इथिलीन (C2H4)
  • इथिलीन का IUPAC नाम एथीन (ethene) है। यह एक रंगहीन ज्वलनशील गैस है जिसकी गंध हल्की मीठी जैसी प्रतीत होती है।
  • इथिलीन जल में बहुत कम, किन्तु ईथर, ऐल्कोहॉल जैसे कार्बनिक विलायक में अधिक विलेय है। इसे सूँघने से बेहोशी आ जाती है। 
  • इथलीन अणु का आकृति समतलीय एवं चपटी होती है तथा दोनों कार्बन एवं चारों हाइड्रोजन एक ही समतल से स्थित होते हैं। इथीलीन में बंधनों के बीच का कोण 120° होता है ।
  • इथलीन एक असंतृप्त हाइड्रोकार्बन है जिसमें कार्बन के दो परमाणुओं के बीच द्विबंधन रहता है।
  • इथीलीन का इस्तेमाल- निश्चेतक के रूप में, कच्चे फलों को पकाने में, पॉलीथीन नामक प्लास्टीक निर्माण में होता है।
  • ऊँचे दाब पर एथिलीन गैस ऑक्सीजन के साथ जलकर बहुत ताप देती है और धातुओं के जोड़ने (Welding) एवं काटने में काम आता है I
  • इथीलीन (C2H4) सल्फर मोनोक्लोराइड के साथ प्रतिक्रिया करके बिषैली गैस- मस्टर्ड गैस बनाती है। मस्टर्ड गैस का इस्तेमाल प्रथम विश्व युद्ध में जर्मन सेना के द्वारा किया गया था । 
 3. एसीटीलीन (C2H2)
  • एसीटीलीन का IUPAC नाम एथाइन है। यह Akyane श्रेणी का पहला और महत्वपूर्ण यौगिक है। यह रंगहीन गैस है किन्तु फॉस्फीन अशुद्धि की उपस्थिति के कारण ऐसीटीलीन को लहसून जैसी गंध होती है।
  • प्रयोगशाला में कैल्शीयम कर्बाइड पर जल की अभिक्रिया से ऐसीटीलीन गैस बनाई जाती है।
  • ऐसीटीलीन का उपयोग ऑक्सी-ऐसीटीलीन ज्वाला में Welding करने हेतु काम आता है। ऐसीटीलीन फलों को कृत्रिम रूप से पकाने प्रयुक्त होता है। प्रकाश उत्पन्न करने के लिये हॉकर लैम्प में ऐसीटीलीन का प्रयोग होता है।
  • ऐसीटीलीन ट्रेटाक्लोराइड (C2H2Cla) को वेस्ट्रॉन कहा जाता है इसका उपयोग विलायक के रूप में होता है।
4. क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CCI2F2) – CFC
  • इसे डाईक्लोरोडाई फ्लोरो मिथेन तथा फ्रीऑन (Freon) के नाम से भी जाना जाता है।
  • CFC का इस्तेमाल एयर कंडीशनर, और फ्रिज में रेफ्रिजरेंट्स के रूप में होता है ।
  • रेफ्रिजरेंट्स एक तरल पदार्थ है जो गर्मी को अवशोषित करता है।
  • CFC से ओजोन परत को काफी क्षति पहुँचती है अतः मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत इसका उपयोग चरणवद्ध तरीके से बंद किया जा रहा है।
5. इथेनॉल (C2H5OH) या इथाइल एल्कोहॉल
  • एथानॉल (C2H5OH) को साधारणतः ऐल्कोहॉल के नाम से जाना जाता है। बियर, वाईन, व्हिस्की, कफ सिरप, पाचक सिरप इत्यादि जैसे सभी ऐल्कोहली पेय में इथेनॉल ही रहता है।
  • इथनॉल फलों के रसो से किण्वन प्रक्रिया द्वारा तैयार किया जाता है।
  • आजकल औद्योगिक रूप से इथेनॉल, एथीन के जल के साथ सान्द्र सल्फरिक अम्ल की उपस्थिति में अभिक्रिया द्वारा बनाया जाता है।
  • नीली ज्वाला इथेनॉल रंगहीन द्रव है। यह काफी ज्वलनशील होता है। नीली ज्वाला के रूप में है। लकर कार्बनडाई ऑक्साइड तथा जल प्रदान करता है।
  • इथेनॉल एक विलायक के रूप में उपयोग होता है तथा यह प्रतिरोधी (Antiseptic) के तरह भी काम आता है।
  • एथनॉल पेय पदार्थ के रूप में उपयोग में लाया जाता है अतः इसके पीने के दुरूपयोग को रोकने के लिये इसमें मैर्थेनॉल, पिरिडीन अथवा कॉपर सल्फेट जैसे विषाक्त पदार्थ मिला दिये जाते है, जिससे ये पीने हेतु अयोग्य हो जाता है। ऐसे ऐथेनॉल विकृतिकृत स्पिरिट (denatured alcohal) कहलाता I
  • एथेनॉल में जब 5% जल होता है तब इसे रेक्टीफॉइड स्पिरिट कहा जाता है। जबकि 100% एथेनॉल को Absolute alcohal कहा जाता है।
  • एथेनॉल तथा पेट्रोल के मिश्रण को गैसोहॉल कहा जाता है इसका इस्तेमाल ईधन के रूप में किया जाता है । 
  • इथेनॉल को Grain Alcohal (अनानो के किण्वन से प्राप्त) भी कहा जाता है । 
6. मेथेनॉल (CH3OH) या मिथाइल एक्लोहॉल
  • इसे काष्ठ आल्कोहल या काष्ठ स्पिरिट भी कहते हैं क्योंकि एक समय में यह लकड़ी के भंजन आसवन से प्राप्त की जाती थी।
  • मेथेनॉल हल्का, वाष्पशील, रंगहीन, ज्वलनशील द्रव है जिसकी गन्ध ऐथेनॉल (C2H5OH) की तरह ही होती है।
  • मेथेनॉल पीने के लिये बिल्कुल अनुपयुक्त होता है क्योंकि यह अत्यंत बिषैला होता है। बहुत कम मात्रा भी लेने से व्यक्ति अंधा हो सकता है।
  • इसका उपयोग विलायक के रूप में तथा ईथर के रूप में किया जाता है ।
7. इथीलीन ग्लाईकॉल (C2H2O2)
  • शुद्ध इथीलीन ग्लाईकॉल गंधहीन, रंगहीन, तथा मीठाद्रव है । यह विषैला होता है ।
  • एथीलीन ग्लाईकॉल को पानी से मिलाने पर पानी का हिमांक गिर जाता है। अतः इसका इस्तेमाल ठंडे प्रदेशों में वाहनों के रेडियेटर में एन्टीफ्रीज के रूप में होता है ।
  • औद्योगिक स्तर पर इथीलीन और जल की अभिक्रिया से इथीलीन ग्लाईकॉल बनाया जाता है।


8. ग्लीसीरॉल या ग्लिसरिन (C3H8O3)
  • यह रंगहीन, गंधहीन एवं श्याम द्रव है जिसका प्रयोग औषधि निर्माण में बहुतायत से होता है।
  • यह नमी शोषक (आइताग्राही) होता है जिसके कारण इसका उपयोग श्रृंगार - प्रसाधन में भी किया जाता है ।
  • ग्लिसरिन की एक विशेषता है इसका न सूखना जिस पदार्थ में यह डाला जाता है, वह वायु में सदा भीगा ही रहता है जिसके कारण इसका उपयोग ठप्पा या सुद्रण की स्याही बनाने में किया जाता है।
  • नाइट्रीक अम्ल के साथ अभिक्रिया कर यह नाइट्रोग्लिसरीन बनाता है जो एक प्रकार का विस्फोटक है ।
9. क्लोरोफॉर्म CHCl3
  • क्लोरो फॉर्म या ट्राईक्लोरो मिथेन एकरंगहीन तथा सुगंधित तरल पदार्थ है जिसका इस्तेमाल चिकित्सा के क्षेत्र में सर्जरी करानेवाले रोगी को बेहोश करने में निश्चेतक तरह होता है।
  • क्लोरोफॉर्म की खोज जर्मन रसायनज्ञ यूजीन सोबेरन और जस्टस वॉन लीबिग ने की थी ।
  • क्लोरोफार्म पानी में सरलता से घुलनशील होता है। ऑक्सीजन और सूर्य के प्रकाश से क्रिया करने पर इससे फॉस्जीन नामक बिषैली गैस बनाती है ।
10. आयडोफॉर्म (CHI3)
  • एल्कोहॉल या एसीटोन में थोड़ा सा आयोडीन डालकर यह बनाया जाता है। यह चमकदार पीले रंग के होते हैं तथा इसमें बहुत खराब गंध होती है।
  • आयोडोफार्म का उपयोग चिकित्सा में किटाणुनाशक गुणों के कारण घाव पर लगाने में होता था परन्तु इसमें विचित्र गंध होने के कारण अब इसका इस्तेमाल एन्टीसेप्टीक के रूप में नहीं होता है। 
11. कार्बन टेट्राक्लोराइड (CCI4)
  • कार्बन ट्रेराक्लोराइड रंगहीन तथा मीठी सुगंध वाला द्रव है। इसको टेट्राक्लोरोमीथेन, कार्बनटेट, Halon-104, Retrigerant - 10 पायरीन इत्यादि नामों से भी जाना जाता है । 
  • इसका इस्तेमाल बिजली से लगी आग को बुझाने में किया जाता है।
  • फ्रिऑन बनाने में भी इसका इस्तेमाल होता था, परन्तु ओजोनक्षय के कारण अब फ्रिऑन का इस्तेमाल नहीं के बराबर होता है।
  • इसका इस्तेमाल विलायक के रूप में होता है।
12. डाइएथाइल ईथर (C4H10O or C2H5OC2H5)
  • इसका अविष्कार वेलिरीयस कोरडस (Valerius cordus) ने किया था उन्होंने इसका नाम Swwet oil of Vitriol रखा था।
  • इसका इस्तेमाल निश्चेतक (संवेदनाहारी) के रूप में इस्तेमाल 1846 में अमेरिका के विलियम मॉर्टन द्वारा किया गया था।
13. फॉर्मल्डी हाइड (HCHO)
  • इसका IUPAC नाम मैथेनल है। यह सबसे सरलतम ऐल्डीहाइड है।
  • फार्मेल्डिहाइड का 35-40% जलीय विलयन फॉर्मेलिन कहलाता है तथा फार्मेल्डिहाइड इसी रूप में बाजार में उपलब्ध होता है।
  • मैथेनल का जलीय विलयन (फॉर्मेलिन) रोगाणुनाशी होता है जिसके कारण इसका इस्तेमाल परिरक्षक के रूप में होता है ।
  • फार्मेल्डिहाइड तथा फिनॉल द्वारा बैकेलाइट प्लास्टीक तैयार किया जाता है। बैके लाइट का उपयोग बिजली स्वीच बनाने में होता है ।
14. फॉर्मिक अम्ल (HCOOH या CH2O2)
  • यह तीव्र गंधवाला रंगहीन द्रव है। त्वचा पर गिरने पर इससे बहुत जलन होती है तथा फफोले बन जाते हैं।
  • यह अम्ल लाल चीटी, शहद की मक्खी, बिच्छू के डंक में पाया जाता है। इन कीड़ों के काटने या डंक मारने पर थोड़ा अम्ल शरीर में प्रविष्ट हो जाता है, जिससे वह स्थान फूल जाता है और दर्द करने लगता है।
15. एथेनॉइक अम्ल (ऐसीटीक अम्ल) - CH3COOH
  • एथेनॉइक अम्ल को साधारणतया ऐसीटीक अम्ल के नाम से जाना जाता है। इसका 5-8% प्रतिशत जलीय विलयन सिरका के नाम से जाना जाता है जिसका उपयोग खाद्य पदार्थों सौसेजो, आचारों इत्यादि के परिरक्षण के लिये होता है ।
  • एथेनॉल के वायु में, ऐसीटोबैक्टर नामक एंजाइम की उपस्थिति में उपचयन द्वारा सिरका तैयार होता है।
  • एथेनॉइक अम्ल कृत्रिम सिरका बनाने में, रसायन प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में तथा सफेद लेड [2PbCO3 . Pb(OH)2] के निर्माण में उपयोग होता है।
16. प्रापेनोन या ऐसीटोन (CH3COCH3)
  • यह रंगहीन तथा वाष्पशील दूध है। इसका निर्माण क्यूमीन [ (C6H5 – CH. (CH3)2)] के द्वारा किया जाता है।
  • ऐसीटोन का उपयोग प्रयोगशाला में विलायक के रूप में तथा नाखून पॉलिस हटाने ( Remover ) में होता है I
  • ऐसीटोन का इस्तेमाल कृत्रिम चमड़ा तथा संश्लेषित रेजीन (राल) बनाने में किया जाता है।
17. ऑक्जेलिक अम्ल (C4H2O4)
  • यह अम्ल पोटाशियम और कैल्शीयम लवण के रूप में बहुत से पौधे में पाया जाता है ।
  • इसका उपयोग कपड़ों में लगा स्याही के दाग हटाने में किया जाता है। यह अत्यंत बिषैला अम्ल है ।
18. लैक्टीक एसीड (C3H6O5)
  • इसका अविष्कार सर्वप्रथम स्वीडेन के रसायन विज्ञानी कार्ल विहलेल्म शीले ने किया था I
  • मानव शरीर में लैक्टीक एसीड के जमाव से थकावट का अनुभव होता है I
19. बेंजीन (C6H6)
  • सर्वप्रथम इसका खोज फैराडे ने किया था। बेंजीन रंगहीन मीठीगन्ध वाला अत्यंत ज्वलनशील द्रव है I
  • बेंजीन का ऑक्टेन मान उच्च होता है जिसके कारण इसकी कुछ मात्रा पेट्रोल में मिलाया जाता है।
  • बेंजीन को ऐरोमैटिक कार्बनिक यौगिक का जन्मदाता माना जाता है। इसका उपयोग घोलक के रूप में तथा कपड़ों के शुष्क धुलाई में किया जाता है ।
20. फिनॉल (C6H5OH)
  • इसे कार्बोलिक अम्ल भी कहते हैं । इसमें तीव्र गंध होती है तथा यह विषैला होता है ।
  • इसका इस्तेमाल सैलिसिलिक अम्ल [C6H4(OH)COOH] बनाने तथा जीवाणुनाशक, कवकनाशक के रूप में होता है।
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