गति किसे कहते हैं | गति के प्रकार | गति क्या है

 गति किसे कहते हैं | गति के प्रकार | गति क्या है



General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | गति एवं गति के नियम

विराम (Rest) एवं गति (Motion) :
  • यदि किसी वस्तु की स्थिति किसी अन्य वस्तु के अपेक्षा समय के साथ नहीं बदलता है तो उस वस्तु को विराम में कहा जाता है। किसी वस्तु को गति में कहा जाता है जब उसकी स्थिति किसी अन्य वस्तु के सापेक्ष समय के साथ बदलता रहता है। सभी गतिशील वस्तु में यह समान्य लक्षण रहता है कि वे समय के साथ अपनी स्थिति बदलते रहते हैं।
  • भौतिकी वह शाखा जिसमें वस्तु के गति के बारे में अध्ययन किया जाता है यांत्रिकी (Mechanics) कहलाता I यांत्रिकी को तीन भाग में बाँटा गया है।
    1. स्थैतिकी (Statistics)— इस शाखा के अंतर्गत उन वस्तु का अध्ययन होता है जो विराम में है।
    2. गतिकी (Kinematics)– इस शाखा के अंतर्गत उन वस्तु का अध्ययन होता है जो गति में है। Kinematics शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द Kinema से हुई है। Kinema शब्द का अर्थ होता है Motion)
    3. Dynamics- यह वह शाखा है जिसमें वस्तु से गति उत्पन्न होने वाले कारणों का अध्ययन होता है।
  • किसी वस्तु में अलग-अलग तीन तरह की गति पायी जा सकती हैं-
    1. स्थानान्तरित गति (Translatory Motion ) - जब किसी वस्तु की अलग-अलग स्थिति को मिलाने वाली रेखा की दिशा नहीं बदलती है तब उसकी गति स्थानान्तरित गति कहलाती है।
      उदा० - ऊपर से गिरता गेंद, पटरी पर दौड़ता ट्रेन ।
    2. चक्रीय गति (Rotatory Motion)- जब वस्तु की गति इस प्रकार होती है कि वस्तु में प्रत्येक बिन्दु एक वृत्त पर धूमता है, तब ऐसी गति को चक्रीय गति कहते हैं।
    3. आवर्त गति (Periodic Motion)- जब वस्तु एक निश्चित समय अंतराल पर अपनी गति दुहराती रहती है तब उसकी गति आवर्त गति कहलाती है ।
      उदा० - पृथ्वी की गति, सरल लोलक की गति
दूरी (Distance) एवं विस्थापन (Displacement)
  • आम बोल चाल की भाषा में दूरी एवं विस्थापन का अर्थ एक ही होता है परन्तु भौतिकी दोनों के अर्थ भिन्न-भिन्न होते है ।
  • किसी गतिशील वस्तु द्वारा तय की गई मार्ग की वास्तविक लंबाई दूरी कहलाता है। वस्तु जब एक स्थिति से दसरी स्थिति तक चलती है, तब वस्तु की प्रारंभिक स्थिति एवं अंतिम स्थिति के बीच के सबसे छोटी दूरी को विस्थापन कहते हैं ।
  • यदि वस्तु सरल रेखा मार्ग पर बिना दिशा परिवर्तन किये चले तो तय की गई दूरी तथा विस्थापन दोनों ही बराबर होंगे।
  • किसी गतिशील वस्तु द्वारा तय की गई दूरी शून्य नहीं हो सकता है परंतु उसका विस्थापन शून्य हो सकता है। अगर गतिशील वस्तु गति करते हुए अपनी प्रारंभिक स्थिति पर पहुँच जाता है तो उसका विस्थापन शून्य होगा ।
अदिश (Scalar) तथा सदिश (Vector) राशि
  • जिस भौतिक राशि को पूर्ण रूप से व्यक्त करने हेतु केवल परिमाण ( साईज या माप) की जरूरत होती है अदिश राशि कहलाता है। जिसे भौतिक राशि को पूर्ण रूप से व्यक्त करने हेतु परिमाण एवं दिशा दोनों की जरूरत होती है सदिश राशि कहलाता है।
    • प्रमुख अदिश भौतिक राशि - द्रव्यमान दूरी, चाल आयतन कार्य, ऊर्जा, समय, विद्युतधारा, दाब, ताप आदि।
    • प्रमुख सदिश भौतिक राशि - विस्थापन वेग, बल त्वरण, संवेग, कोणीय संवेग आदि ।
चाल (Speed)
  • चाल से हमें यह पता चलता है कि कोई गतिशील वस्तु तेज चल रही है अथवा धीमी । प्रति इकाई समय में तय की गई दूरी को ही चाल कहते हैं।
  • चाल का SI मात्रक m/s है परंतु इसे cm/s तथा km/h में भी प्रायः मापा जाता है।
  • गाड़ी की चाल बताने हेतु उसमें Speedometer लगा होता है। Speedometer चाल km/h में बताता है। गाड़ी द्वारा चली गई दूरी बताने वाला यंत्र Odometer है । Odometer किलोमीटर में दूरी को रिकॉर्ड करता है।
  • यदि वस्तु बराबर समय अंतराल में बराबर दूरी तय करें, चाहे समय अंतराल कितना भी छोटा क्यों न हो तो कहा जाता है वस्तु एकसमान चाल (Uniform speed) से चल रही है। वस्तु जब समान समय अंतराल में असमान दूरी तय करती है तब उसकी चाल, असमान चाल (nonuniform speed) कही जाती है ।
वेग (Velocity) 
  • वेग वह भौतिक राशि जो गतिशील वस्तु की चाल एवं दिशा दोनों बतलाता है। वस्तु का वेग दी हुई दिशा में प्रति ईकाई समय में उसके द्वारा चली गई दूरी होती है। 


  • दी हुई दिशा में चली गई दूरी को विस्थापन कहते हैं। अतः-


  • वेग का भी SI मात्रक वही होता जो चाल का होता है। दोनों भौतिक राशि में अंतर यह है कि चाल अदिश राशि है तथा वेग सदिश राशि है ।
  • गतिशील वस्तु का चाल तथा वेग तभी बराबर होंगे जब वस्तु सीधी रेखा पर चलती है। अगर वस्तु सीधी रेखा नहीं चल रहा है तो उसका चाल एवं वेग बराबर नहीं होंगे।
  • गतिशील वस्तु का औसत चाल कभी शून्य नहीं होता है उसका औसत वेग शून्य हो सकता है।
  • हम अपने रोज की जिंदगी में Velocity या Speed शब्द का उपयोग अलग-अलग नहीं करते हैं । प्रायः दोनों के लिये Speed शब्द का ही उपयोग करते हैं।
त्वरण (Acceleration)
  • अगर वस्तु का वेग बदल रहा हो (घट रहा हो या बढ़ रहा हो ) तो कहा जाता है कि वस्तु त्वरित अवस्था में है । वेग के परिवर्तन के दर को ही त्वरण कहते हैं I
  • वेग में परिवर्त्तन = अंतिम वेग - प्रारम्भिक वेग 

  • त्वरण का SI मात्रक m/s2 या ms-2 होता है परंतु त्वरण को कभी-कभी cm/s2 तथा km/h2 में भी व्यक्त किया जाता है।
  • अगर वस्तु एक समान वेग से चल रहा हो तो उसका त्वरण शून्य होगा । वस्तु का वेग बढ़ रहा है तो त्वरण धनात्मक होगा अगर वेग घट रहा है तो त्वरण ऋणात्मक होगा। ऋणात्मक त्वरण को मंदन (Retardation) कहते हैं।
  • अगर वस्तु सीधी रेखा पर चलती है और समान समय अंतराल में उसका वेग समान दर से बढ़ता है तो वस्तु में एक समान त्वरण होगा। एक समान त्वरण गति के उदाहरण-
    1. स्वतंत्र रूप से गिरती हुई वस्तु
    2. सड़क पर ढ़ाल पर चलता साईकिल जब सवार पैर नहीं चला रहा हो और वायु का प्रतिरोध नगण्य हो ।
    3. आनत समतल से नीचे लुढ़कती गेंद ।
  • अगर समान समय अंतराल में वस्तु का वेग असमान रूप से परिवर्तित होता है तो वस्तु में असमान त्वरण होगा ।
    उदा० - भीड़-भाड़ वाली सड़क पर मोटरसाईकिल की गति ।
  • एक समान त्वरित गति के समीकरण
  • हमें ध्यान रखना होगा की -
    1. यदि वस्तु विराम से चलना शुरू करती है तब उसका प्रारंभिक वेग (u) = 0 होगा।
    2. अगर वस्तु गति करते हुए विराम में आ जाता है तो उसका अंतिम वेग (v) = 0 होगा |
    3. अगर वस्तु एक समान वेग से गतिशील है तो त्वरण (a) = 0 होगा ।
ग्राफ (Graph)
  • ग्राफ का उपयोग कर चाल अथवा वेग त्वरण तथा वस्तु द्वारा चली गई दूरी को ज्ञात किया जा सकता है। गति आधारित ग्राफों में समय सदैव x - अक्ष पर लिया जाता है और दूरी, चाल, वेग का सदैव y - अक्ष पर ही लिया जाता है ।
  • गति के विभिन्न स्थितियों में ग्राफ निम्न प्रकार से होगा-

1. एक समान चाल से गति कर रही वस्तु का दूरी - समय ग्राफ हमेशा एक सरलरेखा होता है ।


विभिन्न समय पर वस्तु की स्थिति दिखानेवाला दूरी - समय ग्राफ


BC तथा AB के अनुपात को ढाल या प्रवणता (Slope) कहते हैं । यानि दूरी - समय ग्राफ की ढ़ाल द्वारा चाल का पता चलता है।


2. स्थिर वस्तु का दूरी - समय ग्राफ समय - अक्ष के समांतर होता है।


3. यदि कोई वस्तु एक समान चाल से गतिशील है तो चाल-समय ग्राफ  एक सरल रेखा होगा ।


चाल समय ग्राफ द्वारा वस्तु द्वारा तय की गई दूरी ज्ञात कर सकते हैं।
AD अथवा BC ऊँचाई चाल v है तथा AB (t2 – t1) समय अंतराल है।
तय की गई दूरी = AD या BC × AB
                     = आयत ABCD का क्षेत्रफल
                     = 20 m/s × (50s – 10s)
                      = 800 m

4. यदि वस्तु असमान चाल से चलती है तो उसका दूरी समय ग्राफ बक्र रेखा (Curved line) होता है


5. एक समान वेग की वस्तु का विस्थापन समय ग्राफ एक सरल रेखा होता है।


6. यदि कोई वस्तु एक समान वेग से गतिशील है तो वेग समय ग्राफ एक सरल रेखा होगा ।


बल (Force)
  • वस्तु की गति से लाने हेतु दबाना या खिंचना पड़ता है। दबाव अथवा खिंचाव को ही बल कहते हैं। हमें दैनिक जीवन में कई ऐसे प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है जिसें दबाना (Push), खींचना (Pull) उठाना, तानना, ऐंढना पड़ता है, इन सब के रूप में हम बल का ही प्रयोग करते हैं । बल के बारे में पूर्ण और सही जानकारी तब प्राप्त हुई जब न्यूटन ने गति संबंधि नियम • दिया । न्यूटन के गति नियम से ही बल की परिभाषा प्राप्त होती है।
  • बल को देखा तो नहीं जा सकता है परंतु बल के प्रभाव को हम देख सकते हैं बल किसी वस्तु पर लगकर पाँच तरह के प्रभव उत्पन्न कर सकते हैं-
    1. बल किसी स्थिर वस्तु को गति में ला सकता है।
    2. बल गतिशील वस्तु को रोक सकता है।
    3. बल किसी गतिशील वस्तु के चाल में परिवर्तन ला सकता है।
    4. बल गतिशील वस्तु की दिशा बदल सकता है।
    5. बल किसी वस्तु की आकृति अमाप को परिवर्तित कर सकता है ।
  • प्रकृति में होने वाले सभी घटना प्रकृति में पाये जाने वाले मूल बलों के कारण होती है। प्रकृति में चार प्रकार के मूल बल का अस्तित्व है।
    1. गुरूत्वाकर्षण बल– दो वस्तु के द्रव्यमान के कारण लगने वाले आकर्षण बल को गुरूत्वाकर्षण बल कहते है । ब्रह्माण्ड में तारों के बनावट में गुरूत्वाकर्षण बल मुख्य भूमिका अदा करता है। गुरूत्वाकर्षण बल में निम्न गुण पाये जाते हैं I
      1. गुरूत्वाकर्षण बल में हमेशा आकर्षण बल ही होता है।
      2. कम द्रव्यमान वाली वस्तु के लिये इस बल का मान कम तथा अधिक द्रव्यमान वाली वस्तु के लिए इस बल का मान अधिक होता है ।
      3. यह बल बहुत अधिक दूरी तक कर्य करता है।
      4. यह एक केन्द्रीय बल है अर्थात् यह बल वस्तु के केन्द्रों को मिलाने वाली रेखा के दिशा में काम करता है ।
      5. इस बल की खोज न्यूटन ने किया था ।
    2. विद्युत-चुंबकीय बल - दो वस्तु के बीच उसमें निहित आवेश की उपस्थिति के कारण लगने वाले बल को विद्युत चुंबकीय बल कहते हैं। विद्युत चुबंकीय बल में निम्न गुण पाये जाते हैं।
      1. इस बल में आकर्षण और विकर्षण दोनों का गुण पाया जाता है। यह बल कूलम्ब के नियम के अनुसार कार्य करता है।
      2. इस बल का प्रभाव कम दूरी तक होता है।
      3. गुरुत्वाकर्षण बल के तरह यह बल भी केन्द्रीय बल है ।
      4. यह बल गुरूत्वाकर्षण बल से 1036 गुणा तथा दुर्बल या मंद बल से 10 गुणा अधिक शक्तिशाली होता है ।
    3. न्यूक्लीयर बल- परमाणु के नाभिक में पाये जाने वाले प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन (अथवा प्रोटॉन प्रोटॉन, न्यूट्रॉन न्यूट्रॉन) के बीच लगने बल न्यूक्लीयर बल कहते हैं । इस बल का पता तब चला जब युकावा ने Mesonfield theory प्रत्येक परमाणु के नाभिक इसी बल के कारण स्थायी होता है। न्यूक्लीयर बल में निम्न गुण पाये जाते हैं--
      1. प्रकृति सबसे अधिक शक्तिशाली बल न्यूक्लीयर बल है। यह बल गुरूत्वाकर्षण बल से 1038 गुणा, विद्युत चुंबकीय बल से 102 गुणा तथा दुर्बल या मंद बल से 1013 गुणा अधिक शक्तिशाली होता है।
      2. इस बल में आकर्षण होता है तथा यह बल बहुत कम दूरी (10-14m) तक ही लगता है ।
      3. यह केन्द्रीय बल नहीं है यह अकेन्द्रीय बल है ।
      4. यह बल परमाणु के नाभिक पर पाये जाने वाले आवेश पर निर्भर नहीं करता है।
    4. दुर्बल या मंद बल (Weak Force)- जब परमाणु के इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन आपस में प्रतिक्रिया करते हैं तो पोजिट्रॉन, एन्टी-न्यूट्रीनों जैसे कण उत्सर्जित होते हैं । इन अतिरिक्त कणों का उत्सर्जन दुर्बल या मंद बल के कारण ही होता है दुर्बल बल में निम्न गुण पाये जाते हैं-
      1. इस बल का विस्तार बहुत कम होता है। इसका प्रभाव सिर्फ प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के भीतर ही होता है ।
      2. यह बल गुरूत्वाकर्षण बल से 1035 गुणा अधिक शक्तिशाली होता है ।
संतुलित (Balanced ) तथा असंतुलित (Unbalanced ) बल
  • किसी वस्तु पर कार्यरत सभी बल के परिणामी शून्य होते हैं तो बलों को संतुलित बल कहा जाता है।
  • संतुलित बल किसी वस्तु पर लगता है तो उस वस्तु की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता है तथा ऐसा प्रतीत होता है कि वस्तु पर कोई बल ही नहीं लग रहा है। 
  • किसी वस्तु पर प्रभाव डालने वाले बलों का परिणामी यदि शून्य नहीं है तो बलों का असंतुलित बल कहा जाता है।
  • असंतुलित बल लगने पर वस्तु की स्थिति बदल जाती है अर्थात् यह बल से उत्पन्न प्रभाव को हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं ।
  • आम बोल-च -चाल की भाषा में अगर बल शब्द का उपयोग करते हैं, वह बल असंतुलित बल ही होता है परन्तु हम असंतुलित शब्द का प्रयोग नहीं करते हैं | न्यूटन के गति नियम में जितनी बार बल का उल्लेख होता है वह असंतुलित बल ही होता है।
स्पर्श (Contact) तथा असम्पर्क (non-contact) बल
  • स्पर्श बल वह बल जिसको आरोपित करने हेतु वस्तु को स्पर्श करना पड़ता है I
    उदा०-- पेशीय बल, तनाव, अभिलंब बल, घर्षण बल
  • कुछ बल बिना स्पर्श किये आरोपित होते हैं ये बल असम्पर्क बल कहलाते हैं-
    उदा० - चुंबकीय बल, स्थिर वैद्युत बल, गुरूत्वाकर्षण बल 
न्यूटन के प्रथम गति नियम
  • अगर वस्तु विराम अथवा गति में हैं तो वह विराम अथवा गति में ही रहना चाहती हैं जब तक उस पर कोई बल आरोपित नहीं हो।
  • न्यूटन का प्रथम गति नियम इटली के महान वैज्ञानिक गैलीलियों के जड़त्व के नियम के समान है जिस कारण प्रथम गति नियम को जड़त्व का नियम कहते हैं ।
  • जड़त्व (Inertia) जड़त्व वस्तु का वह गुण है जिसके कारण स्थिर वस्तु स्थिर तथा गतिशील वस्तु गति में रहना चाहती है। जड़त्व वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर करता है। अधिक द्रव्यमान वाली वस्तु का जड़त्व अधिक तथा कम द्रव्यमान वाली वस्तु का जड़त्व कम होता है।
  • जड़त्व तीन प्रकार के होते हैं:-
    1. स्थिर जड़त्व (Inertia of Rest)- स्थिर जड़त्व के कारण वस्तु स्थिर ही रहना चाहती है ।
      उदा०-- घोड़ा एकाएक दौड़ता है तो सवार पीछे की तरफ गिर जता है । यह स्थिर जड़त्व के कारण होता है
    2. गति जड़त्व (Inertia of Motion)- गतिज जड़त्व वस्तु का वह गुण है, जिस गुण के कारण अगर वस्तु गति में है तो गति में ही रहना चाहता है। 
      उदा०-- तीव्र गति से दौड़ता घोड़ा एकाएक रूकता है तो सवार आगे की ओर झुक जाता है।
    3. दिशा जड़त्व (Inertia of direction)– यह वस्तु का वह गुण है जिस गुण के कारण वस्तु अपनी गति के दिशा में ही रहना चाहता हैं ।
      उदा०- तीव्र गति से घूमते पहीए में लगा कीचड़ स्पर्शीय रूप से छिटकते हैं।
  • न्यूटन के प्रथम गति नियम से बल की परिभाषा प्राप्त होती है जो इस प्रकार है- बल वह भौतिक कारण है जो किसी वस्तु पर लगकर उसकी विराम अवस्था या गति अवस्था में परिवर्तन लाता है या लाने की चेष्टा करता है ।
  • जड़ या न्यूटन के प्रथम नियम पर आधारित उदाहरण-
    1. बस या रेलगाड़ी के अचानक चलने से उसमें खड़ा यात्री पीछे की ओर गिर जाता है।
    2. कंबल को तेजी से झटकने पर उसके धूलकण अलग हो जाते हैं ।
    3. छड़ी से पीटने पर कंबल का धूल निकलना ।
    4. पेड़ की शाखा को जोड़ से हिलाने पर फल और पत्तियों का गिरना ।
    5. काँच की खिड़की पर बंदूक की गोली तथा एक बड़े पत्थर का अलग-अलग प्रभाव पड़ना ।
    6. चलती हुई गाड़ी अचानक रूकने पर यात्री का आगे की ओर झुक जाना ।
    7. दौड़ता हुआ व्यक्ति का एकाएक रूक नहीं पाना ।
    8. लंबी कूद वाले खिलाड़ी का कूदने से पहले तेज दौड़ना ।
    9. एक समान वेग से चल रही रेलगाड़ी में ऊपर की ओर उछाली गई गेंद उछालने वाले के हाथ में ही लौट जाना ।
    10. चलती बस की दिशा बदलने से यात्री का एक ओर झुक जाना ।
संवेग (Momentum)
  • वस्तु के गति एवं उसके द्रव्यमान के गुणनफल को संवेग कहते हैं। अगर वस्तु गति में न होकर विराम में है तो उसका संवेग शून्य होगा।
  • संवेग = द्रव्यमान × वेग
         p = mv
  • संवेग का SI मात्रक किलोग्राम मीटर प्रति सेकण्ड (Kg.m/s) होता है।
न्यूटन के गति का दूसरा नियम
  • किसी वस्तु के संवेग परिवर्तन की दर उस पर लगाये जाने वाले बल के समानुपाती है तथा यह परिवर्तन बल की दिशा में होता है।
  • न्यूटन के द्वितीय गति नियम बल एवं संवेग के बीच संबंध बतलाता है तथा इसी संबंध से बल व्यंजक प्राप्त होता है।
  • द्वितीय गति के अनुसार-
    बल =  द्रव्यमान × त्वरण
    F = ma
  • बल का SI मात्रक kgm/s2 होता है जिसे महान वैज्ञानिक न्यूटन के सम्मान में न्यूटन कहते हैं ।
  • न्यूटन के दूसरे गति नियम पर आधारित उदाहरण-
    1. कराटे के खिलाड़ी द्वारा एक ही प्रहार से ईट को समूह को तोड़ डालना ।
    2. ऊँची कूद की खिलाड़ी के गिरने की जगह पर स्पंज का गद्दे रखा होना ।
    3. कच्चे फर्श के तुलना में पक्के फर्श पर गिरने से अधिक चोट लगना ।
    4. बॉल को कैच करते समय खिलाड़ी अपने हाथ को पीछे खिंचता है ।
    5. बॉक्सर सामने के बॉक्सर के पंच प्रभाव को कम करने हेतु सिर पीछे कर लेता है।
    6. गाड़ी में उत्पन्न धक्का को मंद करने हेतु उसमें  स्प्रिंग लगा होता है ।
न्यूटन के गति का तीसरा नियम
  • जब कभी एक वस्तु किसी दूसरी वस्तु पर बल लगाती है, दूसरी वस्तु पहली वस्तु पर बराबर और विपरित बल लगाती है। पहली वस्तु द्वारा लगाये बल को क्रिया (action) कहते हैं तथा दूसरी वस्तु द्वारा लगाये बल को प्रतिक्रिया (Reaction) कहते हैं ।
  • तृतीय नियम को इस प्रकार भी कहा जाता है- प्रत्येक क्रिया के बराबर और विपरित प्रतिक्रिया होती है।
  • क्रिया और प्रतिक्रिया बल हमेशा दो भिन्न-भिन्न वस्तु पर कार्य करते हैं परन्तु वे साथ-साथ कार्य करते हैं ।
  • तृतीय गति नियम पर आधारित उदाहरण:-
    1. मनुष्य जब नदी के किनारे नाव से बाहर कूदता है तो नाव पीछे हट जाती है।
    2. जेट वायुयान: रॉकेट का उड़ान भरना
    3. मनुष्य का जमीन पर टहलना
    4. पानी में तैरना या नाव खेना
    5. कुए से जल खींचते समय रस्सी टूटने पर पीछे गिर जाना
    6. घोड़ा गाड़ी का घोड़े द्वारा खींचना
संवेग संरक्षण के नियम
  • संवेग संरक्षण नियम:- जब दो या दो से अधिक वस्तु एक दूसरे के ऊपर कार्य करती है, तो उसका सम्पूर्ण संवेग स्थिर रहता है, बशर्ते कोई बाहरी बल उस पर न लगे ।
  • संवेग संरक्षण नियम इस प्रकार भी कहा जा सकता है- संवेग को कभी उत्पन्न या नष्ट नहीं किया जा सकता है।
  • अगर गति करते हुए दो वस्तु टकराती है तो टकराने से पूर्व तथा टकराने के बाद का संवेग बराबर होता है ।
  • संवेग संरक्षण नियम के उदाहरण-
    1. रॉकेट और जेट वायुयान संवेग संरक्षण सिद्धान्त पर कार्य करते हैं ।
    2. गोली दागने से पहले गोली और बंदूक का कुल संवेग शून्य होता है अतः गोली छूटने के बाद बंदूक गोली के विपरित दिशा में चलता है ताकि संवेग शून्य बना रहे ।
    3. जब हवा से भरे गुब्बारा में छेद होता है तो हवा तेजी से बाहर निकलती है। इससे हवा के संवेग में परिवर्तन के बराबर एवं विपरित गुब्बारा का संवेग परिवर्तन होता है. इसी कारण गुब्बारा हवा निकलने के विपरित दिशा में चलने लगता है।

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