गुरूत्वाकर्षण | गुरुत्वाकर्षण बल क्या है | गुरुत्वाकर्षण बल का क्या अर्थ है

 गुरूत्वाकर्षण | गुरुत्वाकर्षण बल क्या है | गुरुत्वाकर्षण बल का क्या अर्थ है


General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | गुरूत्वाकर्षण

  • भारतीय ज्योतिषी आचार्य भाष्कराचार्य ने 12वीं शताब्दी में एक ग्रंथ लिखा जिसका नाम था- सिद्धान्त शिरोमणि । इस पुस्तक में उन्होंने अपनी सर्वप्रमुख खोज - गुरूत्वाकर्षण और गुरूत्व की चर्चा की ।
  • आचार्य भाष्कराचार्य ने गुरूत्वाकर्षण और गुरूत्व को निम्न प्रकार से समझाया-
    • कोई वस्तु पृथ्वी पर इसलिए गिरती है कि पृथ्वी इसको अपने केन्द्र की ओर खींचती है। आकाशीय पिण्डों के बीच आकर्षण का बल कार्य करता है जिससे वे अपना कक्ष नहीं छोड़ते है।
  • बाद के समय में इसी नियम को न्यूटन ने स्वतंत्र रूप से बताया जो आजकल न्यूटन के गुरूत्वाकर्षण नियम से प्रसिद्ध है। 
आइजक न्यूटन (1642-1727)
  • आइजक न्यूटन का जन्म इंगलैण्ड में एक नि परिवार में हुआ था। वे 1661 ई. में शिक्षा ग्रहण करने कैंब्रिज विश्वविद्यालय गये। 1665 में कैंब्रिज में प्लेग फैल गया जिससे आइजक न्यूटन को 1 वर्ष की छुट्टी मिल गयी। ऐसा कहा जाता है कि इसी 1 वर्ष में उनके ऊपर सेब गिरने की घटना हुई। इसी घटना ने न्यूटन को गुरूत्व बल खोजने को प्रेरित किया तथा उन्होंने गुरूत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम खोज निकाला। न्यूटन एक महान गणितज्ञ भी थे। I की एक नई शाखा Calculus (कलन) की खोज की। न्यूटन अपनी सभी खोज तथा अनुसंधान केवल 25 वर्ष की आयु में ही पूरी कर ली थीं।
गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम (Universal law of Gravitation)
  • न्यूटन ने 1687 में गुरूत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम दिया जिसके अनुसार - ब्रह्मांड का एक वस्तु प्रत्येक दूसरे वस्तु की एक बल से आकर्षित करती है जिसका परिमाण :-
    1. वस्तु के द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती होता है ।
    2. उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है ।
      अगर दो वस्तु का द्रव्यमान m1 तथा m2 हो और उनके बीच की दूरी r हो तो 


  • G एक नियतांक है जिसे गुरूत्वाकर्षण नियतांक कहते हैं। G का मान वस्तु के प्रकृति, उनके द्रव्यमान, उनके बीच की दूरी, माध्यम, समय, ताप आदि पर निर्भर नहीं करता है तथा ब्रह्मांड के सभी वस्तु के लिए एक ही होता है जिसके कारण G को सार्वत्रिक गुरूत्वाकर्षण नियतांक कहते है।
G का SI मात्रक :


G का मान
  • G का मान सर्वप्रथम हेनरी केंवेंडिश ने निकाला था। G का आधुनिक स्वीकृत मान 6.673 x 10-11 Nm2/kg2 है ।
गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम का महत्व
  1. गुरूत्वाकर्षण बल के ही कारण हम सब पृथ्वी से बँधे रहते हैं।
  2. चंद्रमा पर पृथ्वी का गुरूत्वाकर्षण बल आवश्यक अभिकेंद्र बल प्रदान करता है जिसके कारण चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर वृत्ताकार पथ पर घूमता है। ठीक इसी प्रकार अन्य ग्रह के उपग्रह भी उन ग्रह की परिक्रमा करते हैं।
  3. पृथ्वी पर सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी को सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षा पर घूमते रहने के लिए आवश्यक अभिकेंद्र बल देता है। ठीक इसी प्रकार अन्य ग्रह भी सूर्य की परिक्रमा करते रहते हैं।
  4. चंद्रमा और सूर्य के गुरूत्वाकर्षण बल के कारण ही समुद्र में ज्वार-भाटा आते हैं।
गुरूत्वीय त्वरण
  • यदि दो यस्तु में एक वस्तु पृथ्वी हो तो उनके बीच लगनेवाले गुरुत्वाकर्षण बल को गुरुत्व बल कहा जाता है। इसी पल के कारण पृथ्वी सभी वस्तु को अपने केंद्र की ओर आकर्षित करती हैं।
  • स्वतंत्रतापूर्वक गिरते हुए किसी वस्तु पर गुरुत्व बल के कारण जो त्वरण उत्पन्न होता है उसे गुरुत्वीय त्वरण कहते हैं। इसे g किया जाता है।
  • गुरुत्वीय त्वरण के कारण ही ऊपर की ओर फेंकी गयी वस्तु के वेग में कमी आती है तथा नीचे आती हुई वस्तु के वेग में वृद्धि होती है ।

G तथा g के बीच संबंध

  • यदि पृथ्वी का द्रव्यमान M मान लें तथा त्रिज्या R मान ले तो पृथ्वी की सतह में नगण्य ऊँचाई पर m द्रव्यमान की वस्तु पर गुरुत्वाकर्षण नियम के अनुसार लगा गुरुत्व बल


  • g का मान गुरूत्वाकर्षण नियंताक G, पृथ्वी के द्रव्यमान M तथा पृथ्वी के त्रिज्या R पर निर्भर करता है । ४ का मान वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है।
  • हवा का प्रतिरोध नगण्य रहने पर गुरूत्व के अधीन गिरने वाली सभी वस्तु ( हलकी या भारी) के त्वरण समान होते हैं।
  • g का मान 9.8m/s2 के बराबर होता है ।


G तथा g में अंतर
  • G एक सार्वत्रिक नियतांक है, जिसका मान वस्तु के प्रकृति, द्रव्यमान, उनके बीच की दूरी, समय आदि पर निर्भर नहीं करता है तथा ब्रह्मांड के सभी वस्तु के लिए G का मान समान रहता है। इसके विपरित g का मान पृथ्वी, चंद्रमा, सूर्य, मंगल इत्यादि के लिए भिन्न-भिन्न होता है।
गुरूत्वीय त्वरण g के मान में परिवर्तन
  1. पृथ्वी के सतह से ऊपर जाने पर g का मान घटता है।
    अगर वस्तु पृथ्वी सतह से h ऊँचाई पर है तो वस्तु का पृथ्वी के केंद्र से दूरी r = R + h होगी अतः वस्तु (m) पर लगा गुरुत्व बल


  2. पृथ्वी के सतह के नीचे जाने पर भी g का मान घटता है।
  3. g का मान ध्रुवों पर अधिकतम तथा भूमध्य रेखा (विषुवत रेखा) पर न्यूनतम होता है । भूमध्य रेखा पर g का मान 9.85m/s2 होता है तथा विषुवत रेखा पर g का मान 9.78 m/s2 होता है।
    • इस परिवर्त्तन का कारण है कि पृथ्वी पूर्ण रूप से गोलाकार नहीं है। ध्रुवों पर यह चपटी है तथा भूमध्य रेखा पर उभरी हुई है तथा  ध्रुवीय त्रिज्या पृथ्वी का 6357 km है जबकि पृथ्वी का विषुवतीय त्रिज्या 6378 km है।
    • पृथ्वी के घूर्णन पर भी g का मान निर्भर करता है। यदि पृथ्वी घूर्णन करना बंद कर दें तो g का मान ध्रुव को छोड़कर सभी स्थानों पर बढ़ जाएगा तथा ध्रुव के मान के बराबर हो जाएगा
    • यदि पृथ्वी का घूर्णन वेग अधिक हो जाए तो ध्रुवों को छोड़कर शेष सभी स्थानों पर गुरूत्वीय त्वरण का मान घट जाएगा और यदि पृथ्वी के घूर्णन का वेग वर्त्तमान के 17 गुणा हो जाए तो विषुवत रेखा पर गुरूत्वीय त्वरण का मान शून्य हो जाएगा ।
गुरुत्व के अधीन गिर रही वस्तु का गति समीकरण :
जब हम वस्तु को ऊपर फेकते हैं तो वस्तु एक निश्चित ऊँचाई तक जाती है, वहाँ क्षणभर के लिए रूकती है और अंत में त्वरीत गति से नीचे की ओर गिरती है । इस प्रकार की गति मुक्तपतन ( Free Fall) कही जाती है।
ऊर्ध्वाधरतः नीचे की ओर गति के लिए निम्नलिखित समीकरण प्राप्त होते हैं-
     V = u+ gt
     h = ut + ½ gt2
     v2 = u2 + 2gh
NOTE :- वस्तु की नीचे की ओर गति धनात्मक मानी जाती है ।
ऊर्ध्वाधरतः ऊपर की ओर गति के लिए निम्नलिखित समीकरण प्राप्त होते हैं--
      v = u - gt
      h = ut – ½ gt2
      v2 = u2 – 2gh
NOTE:- ऊपर की ओर दिशा ऋणात्मक मानी जाती है।
यदि गेंद को ऊपर की ओर प्रारंभिक वेग u से फेंका जाए तो -
(i) वह ऊपर जाएगा और वेग घटता जाएगा ।
(ii) महत्तम ऊँचाई h पर जाकर उसका वेग शून्य हो जाएगा ।
(iii) अंतः वस्तु नीचे ओर पृथ्वी पर गिरेगा

1. उच्चतम बिंदु पर पहुँचने में लगा समय :

मान लें की उच्चतम बिन्दु पर पहुँचने में समय लगता है और यहाँ पहुँचने पर गेंद का वेग (v) शून्य हो जाएगा


2. ऊपर जाकर नीचे आने में लगा कुल समय

अगर गेंद वापस अपनी प्रारंभिक स्थिति पर आ जाती है तो विस्थापन

3. उच्चतम बिन्दु से नीचे आने में लगा समय

यदि उच्चतम बिन्दु से नीचे आने में लगा समय T हो तो
T = (ऊपर जाकर नीचे आने में लगा कुल समय) - ऊपर जाने में लगा समय
ऊपर जाने में लगा समय = नीचे आने में लगा समय

भार (Weight)

  • किसी वस्तु को पृथ्वी जिस बल से अपने केंद्र की ओर आकर्षित करती है, उसे गुरूत्व-बल कहते हैं।
  • किसी वस्तु का भार पृथ्वी द्वारा उसपर लगाए गए गुरुत्व बल के बराबर होता है । भार को प्रायः W से सूचित करते हैं। यदि वस्तु का द्रव्यमान m हो, तो वस्तु का भार
    भार का मात्रक न्यूटन होता है।
  • वस्तु का भार चन्द्रमा पर = 1/6 (उसी वस्तु का भार पृथ्वी पर ) चन्द्रमा पर गुरुत्वीय त्वरण का मान पृथ्वी पर के मान 1/6 होता है।
द्रव्यमान और भार में अंतर
  1. द्रव्यमान वस्तु के द्रव्य की मात्रा है जबकि भार पृथ्वी द्वारा वस्तु पर पृथ्वी के केंद्र की ओर लगे गुरुत्व बल के बराबर होता है ।
  2. द्रव्यमान में केवल परिमाण होता है । यह अदिश राशि है जबकि भार में परिमाण और दिशा दोनों होते हैं यह सदिश राशि है ।
  3. द्रव्यमान को दंड तुला मापा जाता है जबकि भार कमानीदार तुला द्वारा मापा जाता है I
  4. द्रव्यमान का SI मात्रक किलोग्राम है जबकि भार का SI मात्रक न्यूटन है ।
  5. स्थान के परिवर्तन से द्रव्यमान नहीं बदलता है जबकि स्थान के परिवर्तन से भार बदल जाता है I
केप्लर का नियम :
  • केप्लर ने सूर्य के चारों ओर गति करने वाले ग्रहों के लिये तीन नियम प्रतिपादित किये-
    1. केप्लर का प्रथम को कक्षा का नियम (Law of orbits) कहते हैं जो इस प्रकार है- सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर एक दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में परिक्रमण करता है तथा कक्षा के एक फोकस पर सूर्य स्थित रहता है ।
    2. केप्लर के दूसरे नियम को क्षेत्र का नियम (Law of area) कहते हैं जो इस प्रकार है- किसी भी ग्रह को सूर्य से मिलानेवाली रेखा समान समय में समान क्षेत्रफल तय करती है।
      • केप्लर का दूसरा नियम कोणीय संवेग संरक्षण के नियम पर आधारित है I
    3. केप्लर का तीसरा नियम को परिभ्रमण काल का नियम (Law of Periods) कहते हैं जो इस प्रकार है- किसी भी ग्रह का सूर्य के चारों ओर परिक्रमण काल का वर्ग ग्रह के दीर्घवृत्ताकार कक्षा के अर्द्ध दीर्घ अक्ष के तृतीय घातके समानुपाती होता है
                                                           T2 α r3
      • केप्लर के तीसरा नियम से यह स्पष्ट है कि जो ग्रह सूर्य से जितना दूर है उसका परिभ्रमण काल उतना ही अधिक होगा।
उपग्रह की गति
  • जिस से ग्रह का उपग्रह अपनी कक्षा में चक्कर लगाता है तो उसे ग्रह / उपग्रह का कक्षीय वेग कहते हैं। 
कक्षीय वेग की गणना :
अगर पृथ्वी का द्रव्यमान M और इसकी त्रिज्या R है तथा पृथ्वी के केन्द्र से r दूरी वाले (r > R) कक्ष पर m द्रव्यमान का उपग्रह कक्षीय वेग v से पृथ्वी का चक्कर लगा रहा है। पृथ्वी द्वारा उपग्रह पर क्रियाशील गुरूत्वीय बल F = GMm/r2 है जो उपग्रह पर अभिकेन्द्र बल प्रदान करता है। इसी बल के फलस्वरूप कक्षा पर गतिशील रहता है ।
  • अतः उपग्रह का कक्षीय वेग उपग्रह के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है लेकिन कक्षा की त्रिज्या (r) पर निर्भर करता है । त्रिज्या अधिक होने पर कक्षीय वेग का मान कम होता है ।
  • अगर कोई उपग्रह पृथ्वी के सतह से बहुत निकट की कक्षा में चक्कर लगाता है तो उसे ध्रुवीय उपग्रह कहते हैं तथा उसकी कक्षीय वेग v = √gR होता है जहाँ R = पृथ्क्वी की त्रिज्या । ध्रुवीय उपग्रह का कक्षीय वेग 8 × 103 m/sec तथा आवर्त्तकाल 84 sec होता है। इस उपग्रह का उपयोग मौसम संबंधी जानकारी प्राप्त करने हेतु किया जाता है। 
  • भू-स्थिर उपग्रह- ऐसा उपग्रह जो पृथ्वी के भूमध्य रेखा के किसी खास स्थान के सामने हमेशा रहता है, पृथ्वी के उस स्थान के सापेक्ष्ज्ञ स्थिर होता है भू स्थिर उपग्रह कहलाता है। इस उपग्रह की पृथ्वी से ऊँचाई 35870 km (लगभग 3600 km) होता है तथा इसका आवर्त्तकाल 24 घंटे का होता है ।
  • भूस्थिर उपग्रह का उपयोग संचार संदेश प्रेपित एवं प्राप्त करने में किया जाता है जिसके कारण इसे संचार उपग्रह भी कहते हैं। भारत का प्रथम भूस्थिर उपग्रह APPLE है।
  • दूर - संवेदी उपग्रह या सूर्य-सम्बद्ध उपग्रहः- वह उपग्रह जो पृथ्वी के किसी भी स्थान के ऊपर से वहाँ के समायानुसार एक खास समय पर गुजरता है सूर्य - सम्बद्ध उपग्रहं कहलाता है।
  • दूर - संवेदी उपग्रह एक स्थान के ऊपर नियत समय पर गुजरता है। अतः वहाँ के क्षेत्र का इसके द्वारा लिया गया चित्र रोज की स्थिति का जायजा लेने एवं तुलनात्मक अध्ययन में काम आता है।
  • भारहीनता का अनुभव कृत्रिम उपग्रह के अंदर होता होता है। किसी भी उपग्रह पर हमेशा त्वरण (g) पृथ्वी की केन्द्र की ओर लगता- है तथा उसमें रखी वस्तु अथवा मानव का आभासी भार शून्य होता है क्योंकि उसपर लगने वाला सम्पूर्ण गुरूत्वीय बल उसको घुमाने के लिए अभिकेन्द्र बल का कार्य करता है।
भारहीनता के प्रभाव :
  1. पृथ्वी पर स्थित मानव खाना खाते हैं तो कंठ के नीचे गुरुत्व बल से खाया गया पदार्थ खींच लिया जाता है। परंतु कृत्रिम उपग्रह के अंदर मानव को खाना खाने में दिक्कत होती है।
  2. एक गिलास में रखा पानी पृथ्वी पर उलटने पर गिर जाता है । पर उपग्रह में गिलास उलट देने पर पानी नहीं गिरता ।
  3. उपग्रह के अंदर आर्कमिडीज का उत्ल्वाक बल कार्य नहीं करता है।
  4. उपग्रह के अंदर ऊपर-नीचे का भेद नहीं है। वस्तु को छोड़ देने पर भी वह नीचे नहीं गिरता है ।
  5. उपग्रह के अंदर सरल दोलक घड़ी बंद हो जाती है।
पलायन वेग
किसी ग्रह या आकाशीय पिंड के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से भाग जाने मात्र के लिए जितना न्यूतम वेग आवश्यक होता है वही उस ग्रह या आकशीय पिंड के लिए पलायन वेग कहलाता है।
पृथ्वी पर पलायन वेग (vc) का मान
m = पृथ्वी का द्रव्यमान
R = त्रिज्या पृथ्वी का मान
  • पलायन वेग का परिमाण छोटी वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है ।
  • पलायन वेग का परिमाण ग्रह के द्रव्यमान एवं त्रिज्या के अनुपात का समानुपाती होता है।
  • पलायन वेग का मान उपग्रह के कक्षीय चाल का √2 गुणा होता है । अतः उपग्रह के चाल को √2 गुणा कर दें तो वह अपनी कक्षा से पलायन कर जाएगा।
  • पृथ्वी के सतह के लिए पलयन वेग का मान 11.2 km/sec होता है ।
चन्द्रमा पर वायुमंडल नहीं होने का कारण
  • जब सूर्य के ताप से चन्द्रमा का वायु गर्म होता है तो वायु में उपस्थित गैसीय पदार्थ की चाल काफी बढ़ जाती है। इस चाल चन्द्रमा पर के पलायन वेग के मान 2.4 km/sec से अधिक हो जाता है, जिसके कारण गैस-अणु पलायन कर जाते हैं और वहाँ वायुमंडल नहीं पाया जाता है I
कृष्ण पिंड (Black hole)
जब अत्यधिक आपसी गुरुत्वाकर्षण बल के कारण पिंड सिकुड़ता है तो उसका द्रव्यमान समान रहता है परंतु त्रिज्या घट जाती है जिसके कारण पलायन वेग का मान बढ़ता है क्योंकि-


इस क्रम एक स्थिति ऐसी आती है जब पलायन चाल का मान प्रकाश की चाल 3 × 108 m/sec से अधिक हो जाता है। ऐसी स्थिति में प्रकाश पिंड पर जाता है लेकिन गुरुत्व बल को पार कर हमारी ओर नहीं आ पाता । अतः इस पिंड का कृष्ण पिंड या Black hole कहते हैं। Black hole के लिए।

- सभी तारे जीवन के अंतिम अवस्था में कृष्ण पिंड में परिवर्तित हो जाता है।
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