गोलाकार घूर्णी गति | गोलाकार घूर्णी गति क्या है

गोलाकार घूर्णी गति | गोलाकार घूर्णी गति क्या है


General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | Circular & Rotational Motion

Circular Motion
अगर कोई वस्तु वृत्ताकार मार्ग पर नियत चाल से चलता है तो उसकी गति वृत्तीय गति कहलाती है ।
  • वृत्त एक बहुभुज आकृति है जिसकी अनंत भुजाएँ हैं यही कारण है कि वृत्तीय पथ पर गतिशील वस्तु अपनी दिशा लगातार बदलता रहता है। दिशा बदलने के कारण वस्तु का वेग बदलता रहता है भले ही चाल उसकी एक समान हो ।
  • वृत्तीय गति में वस्तु का वेग बदलता रहता है जिसके कारण वस्तु को त्वरित कहा जाता है अतः एक समान वृत्तीय गति त्वरित गति का उदाहरण है।
कोणीय विस्थापन (Angular Displacement) :
जब कोई वस्तु वृत्ताकार मार्ग पर गति करता है तो अपनी प्रारंभिक स्थिति के सापेक्ष वस्तु तिने कोण से घूम जाता है उसे कोणीय विस्थापन कहते हैं । 


  • रेखीय विस्थापन (l) = वृत्ताकार पथ की त्रिज्या (r) × कोणीय विस्थापन (Q)
  • कोणीय विस्थापन सदिश राशि है। इसका SI मात्रक रेडियन है। कोणीय विस्थापन की विमा नहीं होती है यह विमाहीन भौतिक राशि है ।
कोणीय वेग (Angular Velocity)
कोणीय विस्थापन के दर को कोणीय वेग कहते हैं। कोणीय वेग को (ω) के रूप में लिखा जाता है।
  • कोणीय वेग का SI मात्रक रेडियन / सेकेण्ड (Rad/ Sec) है। कोणीय वेग की विमा [T-1 ] होती है। कोणीय वेग सदिश राशि है।
  • अगर कोई वस्तु T सेकेण्ड में वृत्ताकार मार्ग की पूरा चक्कर या 2π रेडियन कोण घूमता है तो उसकी कोणीय वेग 


    T वस्तु का आवर्त्त काल (Time period) है अगर वस्तु 1 sec में n चक्कर लगाता है तो उस वस्तु का आवर्त्तकाल


अभिकेन्द्र त्वरण (Centripetal acceleration) :
जब वस्तु वृत्ताकार मार्ग पर गतिशील रहता है तो वस्तु का वेग लगातार बदलता रहता है जिसके कारण इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि वृत्तीय गति से त्वरण रहता है । वृत्तीय गति में त्वरण की दिशा वृत्त के केन्द्र की ओर होती है जिसके कारण इस त्वरण को अभिकेन्द्र त्वरण कहते हैं ।
  • इस त्वरण की दिशा गति के दिशा के लम्बवत् होती है इसलिए उसे अभिलम्ब त्वरण भी कहते हैं । 
  • अगर वस्तु r त्रिज्या वाले वृत्ताकार मार्ग पर v वेग से गतिशील हो तो अभिकेन्द्र त्वरण
अभिकेन्द्र बल (Centripetal Force) :
वृत्तीय गति पर वस्तु पर v2/r परिमाण का त्वरण 0 कार्य करता है। न्यूटन की गति नियम के अनुसार त्वरण किसी बल से ही उत्पन्न हो सकता है। वृत्तीय पथ पर गतिशील वस्तु पर एक बल कार्य करता है। जिसकी दिशा वृत्त के केन्द्र की ओर होती है। इस बल को 'अभिकेन्द्र बल कहते हैं ।


  • अभिकेन्द्र बल कोई नया बल नहीं है और वृत्तीय गति के कारण इसकी उत्पत्ति भी नहीं होती है ।
    उदा०-
    1. पत्थर को धागे से बाँधकर जब वृत्तीय गति में घूमाते हैं तो धागे का तनाव अभिकेन्द्र बल प्रदान करते हैं ।
    2. 2. सूर्य के चारों ओर ग्रहों की वृत्तीय कक्षा में गुरूत्वाकर्षण बल अभिकेन्द्र बल प्रदान करते हैं।
    3. न्यूक्लीयस के चारों ओर इलेक्ट्रॉन की वृत्तीय गति के लिए आवश्यक अभिकेन्द्र बल न्यूक्लीयस और इलेक्ट्रॉन के बीच के विद्युत आकर्षण बल से प्राप्त होता है। 
अपकेन्द्र बल (Centri Fungal Force) :
वृत्तीय गति में घूमती वस्तु पर एक कल्पीत बल कार्य करने लगता है जो अपकेन्द्री बल कहलाता है। अपकेन्द्री बल अभिकेन्द्र बल के बराबर किन्तु विपरित दिशा में होता है यानि अपकेन्द्र बल की दिशा केन्द्र के बाहर की ओर होती है ।
  • अपकेन्द्र बल वास्तविक बल नहीं है । यह काल्पनिक बल है ।
  • अपकेन्द्र (Centrifugal) के सिद्धान्त पर कई उपकरण बनाये हैं, परन्तु इस उपकरण में कहीं भी अपकेन्द्र बल कार्य नहीं करता है ।
    1. Centri pungal drier
    2. Cream Sparator
    3. Speed governor (इंजन का चाल नियंत्रक)
    4. Centripugal Pump
  • अगर पानी से भरी हुई बाल्टी को वृत्तीय पथ में घुमाया जाता है तो बाल्टी सिर के ऊपर आकर उलट जाती है फिर भी उसमें एक बूँद पानी नहीं गिरता ऐसा इसलिए होता है कि अपकेन्द्र बल पानी को बाल्टी की पेंदी की ओर दबाया रहता है।
गुरूत्व केन्द्र (Centre of gravity)
किसी वस्तु का गुरूत्व केन्द्र वह बिन्दु है जहाँ वस्तु का समसत भार कार्य करता है वस्तु को चाहे किसी भी स्थिति में क्यों न हो ।
  • वस्तु का भार गुरूत्व केन्द्र के ठीक नीचे की ओर कार्य करता है अतः गुरूत्व केन्द्र पर वस्तु के बराबर ऊपरी मुखी बल लगाकर हम वस्तु को संतुलित रख सकते हैं।
  • कुछ नियमित वस्तु (वस्तु जिसका आकार नहीं बदलता हो) का गरूत्व केन्द्र-
    1. समान छड़- छड़ के अक्ष का मध्य बिन्दु
    2. त्रिभुजाकार ठोस - माध्यिकाओं का कटान बिन्दु
    3. वर्गाकार ठोस - विकर्णों का कथन कटान बिन्दु
    4. आयताकार ठोस - विकर्णों का कटान बिन्दु
    5. ठोस गोला- गोले का केन्द्र
  • कोई वस्तु का संतुलन स्थायी बना रहे इसके लिए निम्न शर्तों को पूरा करना होता है-
    1. वस्तु का गुरूत्व केन्द्र अधिक से अधिक नीचा होना चाहिए।
    2. गुरूत्व केन्द्र से होकर गुजरने वाली ऊर्ध्वाधर रेखा (Vertically line) वस्तु के आधार होकर गुजरनी चाहिए ।
      उदा०-
      1. स्थायी संतुलन प्राप्त करने के लिए पहाड़ पर चढ़ता व्यक्ति आगे की ओर झुक जाता है। झुकने से गुरूत्व केन्द्र से होकर गुजरने वाली रेखा पैरों के पास आधार से होकर गुजरती है।
      2. स्थायी संतुलन बिगड़ने के कारण बस पर ओवर लोडिंग करने की सलाह नीं दी जाती है ।
      3. पीसा का ऐतिहासिक मीनार तिरछी होते हुए भी नहीं गिरती है क्योंकि गुरूत्व केन्द्र से होकर जानी वाली ऊर्ध्वाधर रेखा मीनार के आधार से होकर गुजरती है।
घूर्णन गति (Rotatary Motion )
  • घूर्णन गति में कोई वस्तु एक निश्चित अक्ष के 0 ( axis) पर घूमता है। यह अक्ष वस्तु के अन्दर से गुजरती है।
  • घूर्णन गति से वस्तु के भिन्न-भिन्न भागों की रेखीय गति भिन्न-भिन्न होती है। अक्ष के समीप स्थित कण का रेखीय वेग कम कि अक्ष से दूर स्थित कण का रेखीय वेग अधिक होता है । 
  • घूर्णन गति वस्तु के प्रत्येक कण का कोणीय वेग एक समान बना रहता हैं।
  • घूर्णन गति के उदाहरण
    1. बिजली के पंखे का घूमता हुआ ब्लेड
    2. नाचता लट्टू
जड़त्व आघूर्ण (Moment of Inertia)
वस्तु का वह गुण जो उसकी घूर्णन गति की अवस्था में परिवर्तन का विरोध करता है, जड़त्व आघूर्ण कहलाता है ।


कोणीय संवेग (Angular Momentum)
घूर्णन गति कर कर किसी वस्तु का कोणीय संवेग = वस्तु का जड़त्व आघूर्ण × कोणीय वेग
      L = Iω
  • कोणीय संवेग का SI मात्रक kgm2/s या Js (जूल - सेकेण्ड ) होता है इसकी विमा (ML2T-1 ) होता है I
  • घूर्णन करती वस्तु के गतिज ऊर्जा तथा कोणीय संवेग में संबंध-


बल-आघूर्ण (Torque)-
किसी वस्तु को किसी अक्ष के परितः घुमाने के लिए बल की आवश्यकता होती है। बल द्वारा किसी वस्तु को अक्ष के परितः घुमाने की प्रवृत्ति को बल-आघूर्ण कहते है ।


अगर वस्तु को XY अज्ञ के परितः घूर्णन करना है तो वस्तु पर F बल आरोपित करना होगा। वस्तु अगर XY अक्ष के d दूरी पर हो तो बल आघूर्ण
L = d × F
बल-आघूर्ण (L) = बल (F) × बाहुभुजा (d)
  • बल-आघूर्ण सदिश राशि है इसका SI मात्रक Nm (न्यूटन - मीटर) है।
  • बाहुभुजा (अक्ष XY से वस्तु की दूरी - d) जितनी अधिक होगी बल-आघूर्ण का मान उतना ही अधिक होगा और घूर्णन गति कराने के लिए समान बल आरोपित कर अधिक बल-आघूर्ण प्राप्त किया जा सकता है जैसे-
    1. घरों में पीसने के काम में आनेवाला जाँता ( Quern) का हत्था कील से दूर लगाया जाता है ताकि कम बल लगाकर जाँता को असानी से घूमाया जा सके।
    2. दरवाजा का हैण्डल हमेशा कब्जे से दूर लगाया जाता है ।
    3. चापाकल के हैण्डल का हत्था लम्बा बनाया जाता है।
    4. कुम्हार के चाक में घुमाने के लिए लकड़ी फँसाने का गड्ढा चाक के परिधि के पास बनाया जाता है।
बल युग्म (Couple)
किसी वस्तु पर दो बराबर किन्तु विपरित दिशाओं में कार्य करने वाले समान्तर बलों को बल युग्म कहते हैं ।
  • बल युग्म के प्रभाव से वस्तु अपने अक्ष के परितः घूर्णन करता है ।
    बल युग्म (Couple) = आरोपित बल (F) × बल युग्म भुजा (L)
  • बल युग्म सदिश राशि है इसका SI मात्रक N. m होता है ।
कोणीय संवेग संरक्षण के सिद्धान्त
अगर क़िसी अक्ष के परितः घूर्णन कर रही वस्तु पर कोई बल आघूर्ण नहीं लगाया जाए तो वस्तु के कोणीय संवेग का मान नियत रहता है । इसे कोणीय संवेग संरक्षण का सिद्धान्त कहते हैं ।
  • कोणीय संवेग संरक्षण के उदाहरण:-
    1. डोरी से बँधी पत्थर को हाथ से पकड़कर घूमाते हैं। यदि हाथ को एकाएक रोक लिया जाए तो डोरी स्वयं हाथ से लिपटती जाती है और पत्थर के टुकड़े का वेग बढ़ता जाता है इसका कारण है पत्थर जैसे-जैसे हाथ के समीप आता है उसका जड़त्व आघूर्ण घट जाता है और कोणीय संवेग संरक्षण सिद्धान्त के अनुसार कोणीय वेग बढ़ता जाता है।
    2. व्यक्ति हाथ फैलाकर एक घूर्णी मंच (Turn table) पर खड़ा घूम रहा है अगर व्यक्तिं अपना दोनों हाथ अपनी ओर मोड ले तो मंच की गति तेज हो जाती है इसका कारण है कि व्यक्ति के हाथ अपने ओर मोड़ने पर जड़त्व आघूर्ण का मान घट जाता है और कोणीय वेग बढ़ जाता है।
    3. घूर्णन करने वाले disc (चकती) पर जब कोई मच्छड़ बैठता है तो द्रव्यमान बढ़ने से जड़त्व आघूर्ण का मान बढ़ जाता है फलस्वरूप कोणीय वेग घट जाता है।
    4. पृथ्वी जब सूर्य के निकट आता है तो घूर्णन त्रिज्या का मान कम होता है जिससे जड़त्व आघूर्ण का मान घट जाता है और पृथ्वी, का कोणीय वेग बढ़ जाता है।
    5. तैराक पानी में कूदने से पहले अपने हाथ-पाँव मोड़ लेता है ताकि वह अपने जड़त्व आघूर्ण को कम कर सके ऐसा करने पर कोणीय संवेग संरक्षण सिद्धान्त से वह हवा में आसानी से कलैया (loop) ले लेता है क्योंकि उसका कोणीय वेग बढ़ जाता है।
बल का आवेग (Impulse of Force)
  • बल तथा जब तक बल लगता है उस समय अंतराल के गुणफल को बल का आवेग कहते हैं।
  • अगर F बल किसी वस्तु पर t1 से t2 समय तक लगता है तो बल का आवेग = F × (t2−t1
  • आवेग का SI मात्रक kg ms-1 होता है तथा इसकी विमा MLT-1 होता है।
  • बल का आवेग वस्तु के रेखीय संवेग के परिवर्तन के बराबर होता है आवेग = P2 - P1
  • किसी वस्तु पर प्रबल बल अल्प समय तक लगे तो वस्तु का संवेग में काफी परिवर्तन आ सकता है ऐसे बल को आवेगी बल (Impulsive Force) कहते हैं। टक्कर (Collision) एवं विस्फोट (Explosian) के समय उत्पन्न बल आवेगी बल के उदाहरण हैं ।
  • सामान्यतः टक्कर में बहुत कम समय लगता है परंतु वस्तुओं के संवेग में बहुत अधिक परिवर्तन होता है जिसके कारण आवेगी बल का परिमाण बहुत अधिक प्रबल होता है-
    उदा०—
    1. क्रिकेट का खिलाड़ी तेजी से आती हुई गेंद को पकड़ते समय अपने हाथ को थोड़ा पीछे की ओर हटा लेता है। क्योंकि कैच लेने की क्रिया में खिलाड़ी के हाथों में धक्के (बल) का आवेग संवेग परिवर्तन के बराबर होता है। चूँकि आवेग बल × समय–अंतराल अतः खिलाड़ी जिद्दल अधिक समय गेंद को रोकने में लगाऐगा उतना ही उसके हाथों में धक्का कम लगेगा। इसलिए खिलाड़ी गेंद के हाथ में आते ही अपना हाथ पीछे खींचता है और इस प्रकार खिंचता है कि t का मान बढ़ जाए जिससे F का मान कम हो ।
    2. सीमेंट के बने पक्के फर्श की अपेक्षा रेतीले या कच्चे फर्श पर कूदने से कम चोट लगती है क्योंकि कच्चे या रेतीले फर्श पर कूदने से फर्श थोड़ा नीचे धँसता है, जिससे पैर के स्थिर होने में अपेक्षाकृत अधिक समय लगता है और समय बढ़ जाने से बल का मान कम हो जाता है। यही कारण है कि ऊँची कूट, कुश्ती के लिए जमीन मुलायम रखी जाती है।
    3. कार में स्प्रिंग और धक्का अवरोधक का उपयोग ऊँची-नीची अथवा टेढ़ी-मेढ़ी सड़कों पर चलते समय लगने वाले झटको को काफी हद तक कम करने के लिए होता है। 
टक्कर (Collision )
  • टक्कर का ऐसा Process है जिसमें दो या दो से अधिक वस्तु आपस में टकराते हैं या फिर परस्पर अन्योन्याक्रिया (mutual interaction) से प्रभावित होकर अपना गति-पथ बदल देते हैं।
  • ऊर्जा के विचार से टक्कर तीन प्रकार के होते हैं-
    1. पूर्णतः प्रत्यास्थ टककर या प्रत्यास्थ टक्कर ( Perfectly elastic or Elastic collision)- यदि टक्कर के पहले और बाद में निकाय की कुल गतिज ऊर्जा संरक्षित रहे तो इसे प्रत्यास्थ टक्कर या पूर्णतः प्रत्यास्थ टक्कर कहते हैं।
    2. अप्रत्यास्थ टक्कर ( Inelastic Collision ) - यदि टक्कर में निकाय की कुल गतिज ऊर्जा घट जाती है तो इसे अप्रत्यास्थ टककर कहते हैं।
    3. पूर्णतः अप्रत्यास्थ टक्कर (Perfectly inelastic Collision)- यदि दो वस्तु टक्करके बाद एक साथ सट जाये तथा एक ही साथ गतिशील हो तो इसे पूर्णतः अप्रत्यास्थ टक्कर कहा जाता है ।
    4. विस्फोटी टक्कर (Explosive Collision)— यदि दो वस्तु की टक्कर के क्रम में उनका कोई विस्फोटक पदार्थ अचानक विस्फोट कर दे तो निकाय की गतिज ऊर्जा अचानक बढ़ जाती है, किंतु निकाय का कुल संवेग हमेशा नियत रहता है । इस प्रकार के टक्कर को विस्फोटी टक्कर कहा जाता है।
NOTE:- टक्कर के सभी प्रकारों में गतिज ऊर्जा अनिवार्यतः अचर नहीं रहती है लेकिन रैखिक संवेग अनिवार्यतः अचर रहता है।
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