प्रागैतिहासिक काल में झारखण्ड | झारखण्ड सामान्य ज्ञान

प्रागैतिहासिक काल में झारखण्ड
> वह काल जिसके लिए कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं, बल्कि पूर्णतः पुरातात्विक साक्ष्यों पर निर्भर रहना पड़ता है, उसे प्रागैतिहासिक काल कहते हैं।
1. पुरापाषाण काल
> इसका कालक्रम 25 लाख ई.पू. से 10 हजार ई.पू. तक माना जाता है।
> इस काल के लोग आखेटक (शिकारी) एवं खाद्य संग्राहक थे। इस काल में कृषि का ज्ञान नहीं था तथा पशुपालन का प्रारंभ नहीं हुआ था।
> इस काल में आग की जानकारी हो चुकी थी, परन्तु उसके उपयोग का ज्ञान नहीं था।
> झारखण्ड में इस काल के अवशेष हजारीबाग, बोकारो, राँची, देवघर, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम आदि क्षेत्रों से प्राप्त हुए हैं।
> हजारीबाग से पाषाणकालीन मानव द्वारा निर्मित पत्थर के औजार मिले हैं।
2. मध्यपाषाण काल
> इसका कालक्रम 10,000 ई.पू. से 4,000 ई.पू. तक माना जाता है।
> इस काल में पशुपालन की शुरूआत हो चुकी थी।
> झारखण्ड में इस काल के अवशेष दुमका, पलामू, धनबाद, राँची, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम आदि क्षेत्रों से प्राप्त हुए हैं।
3. नवपाषाण काल
> इसका कालक्रम 10,000 ई.पू. से 1,000 ई.पू. तक माना जाता है।
> इस काल में कृषि की शुरूआत हो चुकी थी।
> इस काल में आग के उपयोग तथा कुम्भकारी का प्रारंभ हो चुका था।
> झारखण्ड में इस काल के अवशेष राँची, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम आदि क्षेत्रों से प्राप्त हुए हैं।
> छोटानागपुर प्रदेश में इस काल के 12 हस्त कुठार पाए गए हैं।
4. ताम्रपाषाण काल
> इसका कालक्रम 4,000 ई.पू. से 1,000 ई.पू. तक माना जाता है।
> यह काल हड़प्पा पूर्व काल, हड़प्पा काल तथा हड़प्पा पश्चात् काल तीनों से संबंधित है।
नोट :- झारखण्ड राज्य में आयोजित विभिन्न परीक्षाओं में पूछे गये तथ्यों को तारांकित (*) कर दिया गया है।
> पत्थर के साथ-साथ तांबे का प्रयोग प्रारंभ होने के कारण इस काल को ताम्रपाषाण काल कहा जाता है।
> मानव द्वारा प्रयोग की गई प्रथम धातु तांबा ही थी।
> झारखण्ड में इस काल का केन्द्रबिन्दु सिंहभूम था।
> इस काल में असुर, बिरजिया तथा बिरहोर जनजातियाँ तांबा गलाने तथा उससे संबंधित उपकरण बनाने की कला से परिचित थे।
> झारखण्ड के कई स्थानों से तांबा की कुल्हाड़ी तथा हजारीबाग के बाहरगंडा से तांबे की 49 खानों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
5. ताम्र / तांबा युग
> इस युग में तांबा से निर्मित उपकरणों का प्रयोग प्रारंभ हुआ।
> इस युग में असुर, बिरजिया, बिरहोर जनजाति के द्वारा तांबा के खानों से अयस्क निकालकर व उसे गलाकर विभिन्न उपकरणों का निर्माण किया जाता था।
6. कांस्य युग
> इस युग में तांबे में टिन मिलाकर कांसा निर्मित किया जाता था तथा उससे बने उपकरणों का प्रयोग किया जाता था।
> छोटानागपुर क्षेत्र के असुर (झारखण्ड की प्राचीनतम जनजाति) तथा बिरजिया जनजाति को कांस्ययुगीन औजारों का प्रारंभकर्ता माना जाता है।
7. लौह युग
> इस युग में लोहा से बने उपकरणों का प्रयोग किया जाता था।
> झारखण्ड के असुर तथा बिरजिया जनजाति को ही लौह युग से निर्मित औजारों का प्रारंभकर्ता माना जाता है।
> असुर तथा बिरजिया जनजातियों ने उत्कृष्ट में इस युग में झारखण्ड का संपर्क सुदूर विदेशी राज्यों से भी था।
> इस युग में झारखण्ड का संपर्क सुदूर विदेशी राज्यों से भी था। झारखण्ड में निर्मित लोहे को इस युग में मेसोपोटामिया तक भेजा जाता था, जहाँ दश्मिक में इस लोहे से तलवार का निर्माण किया जाता था।
विभिन्न स्थानों से प्राप्त पुरातात्विक अवशेष
( नोट:- इस्को के शैल चित्र दीर्घा में नक्षत्र मंडल, अंतरिक्ष यान एवं अंतरिक्ष मानव के चित्र अंकित हैं। इस्को गाँव में बर्फ आयु की गहरी भूमिगत गुफा स्थित है। * )