झारखण्ड का ऐतिहासिक परिचय | झारखण्ड सामान्य ज्ञान

झारखण्ड का ऐतिहासिक परिचय
> झाड़ियों एवं वनों की बहुलता' के कारण इस राज्य का नाम झारखण्ड पड़ा है।
> विभिन्न कालों में झारखण्ड प्रदेश को विभिन्न नामों से जाना जाता था: –
(नोट :- 'झारखण्ड प्रदेश का सर्वप्रथम साहित्यिक उल्लेख ऐतरेय ब्राह्मण में मिलता है )
(नोट :- 'झारखण्ड' शब्द का प्रथम पुरातात्विक प्रमाण 13वीं सदी के तामपत्र में मिलता है)
नोट:- झारखण्ड राज्य में आयोजित विभिन्न परीक्षाओं में पूछे गये तथ्यों को तारांकित (*) कर दिया गया है।
> प्राचीन काल में गुप्त शासकों एवं गौड़ शासक शशांक ने झारखण्ड क्षेत्र में सर्वाधिक समय तक शासन किया।
> मध्यकाल में झारखण्ड में क्षेत्रीय राजवंशों का शासन स्थापित था।
> ह्वेनसांग ने राजमहल क्षेत्र के लिए 'कि चिंग-काई-लॉ' तथा इसके पहाड़ी क्षेत्र के लिए 'दामिन-ए - कोह' शब्द का प्रयोग किया है।
> कैप्टन टैनर के सर्वेक्षण के आधार पर 1824 ई. में दामिन-ए- कोह की स्थापना हुयी थी।
> प्राचीन काल में संथाल परगना क्षेत्र को नरीखंड * तथा बाद में कांकजोल नाम से संबोधित किया गया है।
> 1833 ई. में दक्षिण-पश्चिमी फ्रंटियर एजेंसी की स्थापना के बाद इस एजेंसी का मुख्यालय विल्किंसनगंज या किसुनपुर के नाम से जाना जाता था जिसे बाद में राँची के नाम से जाना गया।
> वैदिक साहित्य में झारखण्ड की जनजातियों के लिए असुर शब्द का प्रयोग किया गया है। वेदों में असुरों की वीरता और करतब का उल्लेख किया गया है।
> ऋगवेद् में असुरों को 'लिंगपूजक' या 'शिशनों का देव' कहा गया है।
> इतिहासकार बुकानन ने बनारस से लेकर वीरभूम तक के पठारी क्षेत्र को झारखण्ड के रूप में वर्णित किया है।
> महाभारत काल में झारखण्ड वृहद्रथवंशी सम्राट जरासध के अधिकार क्षेत्र में था।
> जनजातियों की अधिकता के कारण झारखण्ड को 'कर्कखण्ड' भी कहा जाता है।
> झारखण्ड के छोटानागपुर क्षेत्र को 'कर्ण सुवर्ण' के नाम से भी संबोधित किया गया है।
नोट:- झारखण्ड राज्य में आयोजित विभिन्न परीक्षाओं में पूछे गये तथ्यों को तारांकित (*) कर दिया गया है।