भारत की मृदा | भारत की मृदा क्या है | भारत की मृदा का क्या नाम है

भारत की मृदा | भारत की मृदा क्या है | भारत की मृदा का क्या नाम है


General Competition | Geography | भारत की मृदा

  • मिट्टी या मृदा अर्थात् Soil शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के Soium से हुआ है, जिसका अर्थ 'फर्श' होता है। 
  • मृदा के अध्ययन करने वाले विज्ञान को Pedology कहते हैं।
  • मृदा निर्माण की प्रक्रिया को Pedogenesis (मृदा जनन) कहा जाता है।
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने भारतीय मृदा को आठ वर्गों में बाँटा है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नामक संगठन की स्थापना 1929 ई० में हुई है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। यह संस्था कृषि मंत्रालय के अधीन काम करती है। इस संस्था के अनुसार चार प्रकार की मिट्टी जो भारत में वृहद स्तर पर पायी जाती है, जो निम्न है-
    1. जलोढ़ मिट्टी - 40% (43%)
    2. लाल-पीली मिट्टी - 18%
    3. काली मिट्टी - 15%
    4. लैटेराइट मिट्टी - 4% (लगभग)
  • जलोढ़ मृदा : जल के द्वारा बहाकर लायी गयी मृदा को जलोढ़ मृदा कहते हैं। इसे कांप या कछारी मृदा भी कहते हैं। यह मृदा भारत में सबसे ज्यादा क्षेत्रों में पायी जाती है तथा यह सबसे अधिक उपजाऊ मृदा है। यह मृदा दो प्रकार का होता है-
    (i) बांगरअ (ii) खादर
    Note : नयी जलोढ़ मृदा को खादर तथा पुरानी जलोढ़ मृदा को बांगर कहते हैं। इन दोनों में अधिक उपजाऊ खादर होता है।
  • भारत में जलोढ़ मृदा सबसे अधिक उर भारत के मैदानी भाग में तथा भारत के तटीय मैदान में देखने को मिलता है। हिमालय से बहने वाली नदियों के कारण उत्तरी भारत में जलोढ़ मृदा की व्यापक स्तर पर उपस्थिति देखने को मिलता है। वही प्रायद्वीपीय नदियों के कारण जलोढ़ मृदा की उपस्थिति तटीय भाग में अधिक देखने मिलती है। 
  • Note : सबसे ज्यादा जलोढ़ मिट्टी उत्तर प्रदेश राज्य में पायी जाती है।
  • जलोढ़ मृदा में गेहूँ, गन्ना, जौ, धान, मक्का, जूट इत्यादि उपजता है।
  • जलोढ़ मृदा में पोटाश सर्वाधिक मात्रा में पायी जाती है। पोटाश के बाद इस मृदा में चूना की अधिकता होती है। वही जलोढ़ मृदा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और ह्यूमस की कमी होती है।
  • काली मिट्टी : अवसादी चट्टानों के अपरदन से काली मिट्टी का निर्माण होता है। इसे रेगुर मिट्टी भी कहा जाता है। यह मिट्टी कपास के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। जिस कारण इसे काली कपासी मिट्टी भी कहते हैं। इसे स्वतः जुताई वाली मिट्टी भी कहा जाता है। इस मिट्टी में जल धारण करने की क्षमता अत्यधिक होती है। इस मिट्टी में बिना सिंचाई के भी कृषि कार्य किए जा सकते हैं। इस मिट्टी को अदैव मातृक मिट्टी भी कहा जाता है। इस मिट्टी को उत्तर प्रदेश में करेल के नाम से पुकारा जाता है । यह मिट्टी भारत के कुल क्षेत्रफल का 15% भूभाग पर पाया जाता है। इस मिट्टी का रंग काला टिटेनि फेरस मैग्नेटाइट की उपस्थिति के कारण होता है। इस मिट्टी में कपास के अलावे गन्ना, प्याज जैसे खाद्य पदार्थों का भी उत्पादन किया जाता है । यह मिट्टी दक्कन के पठारी क्षेत्रों में सबसे ज्यादा पायी जाती है। अगर हम राज्य विशेष की बात करें तो यह मिट्टी सबसे ज्यादा महाराष्ट्र राज्य में पायी जाती है।
  • लाल-पीली मिट्टी : इसका रंग लौह ऑक्साइड (फेरिक/फेरस ऑक्साइड) की उपस्थिति के कारण लाल होता है। यह अम्लीय प्रकृति की मिट्टी होती है। इस मिट्टी की अम्लीयता को दूर करने के लिए चूना का प्रयोग किया जाता है। यह मिट्टी दक्षिण भारतीय राज्यों में सबसे ज्यादा मात्रा में पायी जाती है। यह मिट्टी तमिलनाडु में सबसे अधिक पायी जाती है। इस मिट्टी में कॉफी, चाय, रबड़, काजू इत्यादि का उत्पादन किया जाता है।
  • अम्लीय मिट्टी : वैसी मिट्टी जिसमें चूना की कमी होती है अम्लीय मिट्टी कहलाती हैं।
  • क्षारीय मिट्टी : वैसी मिट्टी जिसमें चूना की अधिकता होती है क्षारीय मिट्टी कहलाती है।
  • लाल-पीली मिट्टी भारत के कुल क्षेत्रफल का 18% भू-भाग पर पायी जाती है। यह भारत की दूसरी सबसे प्रमुख मिट्टी है।
  • लैटेराइट मिट्टी : वैसा क्षेत्र जहाँ तापमान और वर्षा अधिक होता है उन क्षेत्रों में लैटेराइट मिट्टी पायी जाती है। यह मिट्टी भारत के कुल क्षेत्रफल का, 4% भू-भाग पर पायी जाती है। यह मिट्टी सबसे अधिक केरल राज्य में पायी जाती है। इस मिट्टी में चाय, कॉफी, रबड़ इत्यादि का उत्पादन किया जाता है।
  • गिट्टियों का क्रम (घटते क्रम में) : [ जलोढ़ > लाल-पीली काली मिट्टी > लैटेराइट]
  • मृदा अवकर्षण : मृदा के उर्वरता में ह्रास (कमी) का होना मृदा अवकर्षण कहलाता है।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2013 ई० में यह घोषणा किया कि मृदा के प्रति लोगों को जागरूक करने हेतु प्रत्येक वर्ष 5 दिसम्बर को विश्व मृदा दिवस मनाया जाएगा।
  • Note : 6 से 7 pH मान वाले मृदा को बेहतर मृदा माना जाता है।
    PH = Power of Hydrogen
  • पर्वतीय मृदा : यह मुख्य तौर पर भारत के पर्वतीय क्षेत्र जैसे - हिमालयी क्षेत्र, उत्तरी-पूर्वी राज्य तथा दक्षिण भारत के पहाड़ी क्षेत्र में पायी जाती है। यह मृदा पर्वतीय ढालों में विकसित हुई है। जिस कारण यह Immature (अप्रौढ़) मृदा है। इस मृदा में चाय, कॉफी, मसाला का उत्पादन किया ज है।
  • भारत के मरूस्थलीय क्षेत्रों में जो मृदा पायी जाती है उसे शुष्क अथवा मरूस्थलीय मृदा कहा जाता है। यह मृदा मुख्य तौर पर पश्चिमी राजस्थान, पश्चिमी हरियाणा, दक्षिणी पंजाब और उत्तरी गुजरात में पाया जाता है। इस मृदा में वैसे अनाज का उत्पादन होता है जिसे पानी की आवश्यकता कम होती है जैसे- ज्वार, बाजरा, रागी इत्यादि ।
  • पंजाब के क्षेत्र में लवणीय मृदा को रेह, कल्लर या उसर कहा जाता है। यह अनुर्वर मृदा होता है । लवणीय मृदा को कृषि योग्य बनाने हेतु जिप्सम या चूना का प्रयोग किया जाता है।
  • पीट एवं जैव मृदा खास तौर पर डेल्टाई इलाका में पाया जाता है।
  • मिट्टी के कणों में बालू का व्यास 2.0-1.0mm तथा मृतिका का व्यास 0.002mm से कम होता है।
  • मृदा अपरदन : मृदा के ऊपरी परतों का क्षरण या विनाश मृदा अपरदन कहलाता है। । मृदा अपरदन पाँच चरणों में होता है जिसका क्रम निम्न हैं-
    बूँद अपरदन (Splash) → परत अपरदन → रिल अपरदन → अवनालिका अपरदन → धारा चैनल अपरदन 
  • अत्यधिक पशुचारण, वनों की कटाई, झूम कृषि, वायु अपरदन, हिमानी अपरदन के कारण मृदा अपरदन होता है।
  • मृदा अपरदन को रोकने हेतु वनारोपण, कृषिवानिकी, झूम कृषि पर रोक, पशुचारण पर रोक लगाया जाता है ।
  • Note : मृदा अपरदन को रोकने हेतु भारत सरकार ने 1953 ई० में केन्द्रीय मृदा संरक्षण बोर्ड का गठन किया।

Objective ( भारत की मृदा )

  • बैसाल्ट लावा के अपक्षय के कारण काली मिट्टी का निर्माण होता है ।
  • दक्षिणी ट्रैप की रेगुड़ मिट्टियाँ काली होती है।
  • लावा मिट्टियाँ मालवा पठार में पायी जाती है।
  • मालवा पठार की प्रमुख मिट्टी काली मिट्टी है |
  • झारखंड में काली मिट्टी राजमहल के पहाड़ी प्रदेश में पायी जाती है।
  • क्रेब्स के अनुसार रेगुर मिट्टी अनिवार्य रूप से परिपक्व मिट्टी है।
  • भारत के उत्तरी मैदान की मृदा सामान्यतः तलोच्चन से बनी है।
  • जलोढ़ मिट्टी के लिए न्यूनतम उर्वरक की आवश्यकता होती है।
  • अम्लीय मिट्टी में जिप्सम का प्रयोग करके उसे फसल उगाने के उपयुक्त बनाया जाता है।
Previous Post Next Post